अंतर्राष्ट्रीय पुस्तक एवं कॉपीराइट दिवस..
Book Review on International Day of Book and Copyright
माना जाता है कि शिक्षा, ज्ञान और विवेक यदि तीनों हमारे पास है तो हम किसी भी समस्या का समाधान निकाल सकते है, किताबें उन्हें प्राप्त करने का सर्वश्रेष्ठ माध्यम हैं। विद्वानों के साथ संवाद और सत्संग भी हमें शिक्षाप्रद करता है। कोई एक पुस्तक भी हमें एक नई राह दे सकती है। पुस्तकों/ किताबों का एक अनोखा संसार है, सफ़दर हाशमी ने किताबों के बारे में कहा है-
किताबें कुछ कहना चाहती है।
तुम्हारे पास रहना चाहती है।।
किताबों में साइंस की आवाज़ है।
किताबों में रॉकेट के राज हैं।।
हर एक इल्म की इनमें भरमार है।
किताबों का अपना ही संसार है।।
किताबें कुछ कहना चाहती हैं।।
तुम्हारे पास रहना चाहती है।।
स्वामी विवेकानंद ने कहा है- ज़िंदगी में समय बहुत कम हैं किताबें बहुत ज़्यादा, इसलिए ज्ञान का रहस्य इस बात में है कि क्या आवश्यक है। आपको चयन करना है कि क्या पढ़े किसको पढ़ें । (“Books are infinite in numbers and time is too short therefore the secret of knowledge is to take what is essential.”) यह तभी सम्भव है जब आप और हम पुस्तक समीक्षा (BOOK REVIEW) से परिचित हों।
पुस्तकों का मूल्यांकन करने का एक सरल तरीका यह हो सकता है, कि हम स्थापित और प्रतिष्ठित लेखकों और प्रकाशकों की पुस्तकों को ही पढ़ें। विषय विशेष पर उनका मानक द्रष्टिकोण हमारे ज्ञान को विस्तार प्रदान करता है। परंतु पाठकों का स्वयं को स्थापित लेखकों की रचना तक सीमित करना, नए लखकों/ प्रकाशकों और किसी हद तक खुद को भी सीमित करना है। कोई नवीन लेखक और प्रकाशक अपने नवीन दृष्टिकोण और नवोन्मेष (Innovative) विचार से किसी विषय विशेष पर अद्भुत और नवीन पक्ष प्रस्तुत कर सकता है। जो निसंदेह हमारे ज्ञान को अलग तरह से आलोकित करने में सक्षम होगा। नवीन लेखकों को पढ़ना इसलिए भी आवश्यक है कि स्थापित लेखक प्राय: किसी विचार से और कई बार अपने अनुभव से इतने संबद्ध हो जाते है कि उनके लिए सही गलत के मायने मत्वपूर्ण नहीं रह जाते है।
आज इस विषय पर बात करते है कि किसी पुस्तक की समीक्षा हेतु या कहें, कि उसे खरीदने के लिए क्या पूर्व शर्त (Prerequisite) और आधार होना चाहिये। पहली आवश्यकता है कि पुस्तक जिस विषय या शीर्षक पर लिखी गई है, उसकी समस्त संकल्पनाएं तथा विषयवस्तु (Concepts & Contents) और उसके सभी आयाम (Dimensions) पुस्तक में शामिल है। यानी कि पुस्तक अपने विषय-विशेष को पाठक को समग्र तरह से समझाने में सक्षम है।
दूसरी आवश्यकता यह समझने की है कि क्या पुस्तक अपनी प्रकृति में मौलिक है (Original in Nature)? या उसको कॉपी, कट, पेस्ट (कॉपीराइट कानून का उल्लंघन कर) के आधार पर लिखा गया है। विषयवस्तु और विश्लेषण दोनों (Both Content & Analysis) मौलिक है। यहाँ यह भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि पुस्तक के लेखन में प्राथमिक स्रोतों (Primary Sources) का उपयोग कितना किया गया है। प्राथमिक स्रोतों का उपयोग लेखन को प्रमाणिकता प्रदान करता है।
तीसरी बात भाषा की, पुस्तक किसी भी भाषा में लिखी गयी हो, यह जानना आवश्यक होता है कि लेखक ने सरल है या परिष्कृत किस तरह की भाषा का उपयोग किया है। दोनों ही तरीके अच्छे हो सकते है, परंतु पाठक किस तरह की भाषा के साथ सहज है, यह जानना जरूरी है। अन्यथा अध्ययन के दौरान पाठक को शब्दों के मायने देखने हेतु शब्दकोश (Dictionary) पर निर्भर रहना होगा। प्राय: अनुवादित पुस्तकों में भाव के स्थान पर शब्द के मायने तलाशने में पुस्तक की आत्मा (Soul) चोटिल हो जाती है और पुस्तक का स्वाध्याय कठिन हो जाता है।
अब बात करते है वस्तुनिष्ठता और विषयनिष्ठता (Objectivity and subjectivity) की। वस्तुनिष्ठता लेखन (Objectivity Writing ) से तात्पर्य है- वैज्ञानिक (scientific), तार्किक(Rational), सम्यक (Right) अनेकांतवादी ( Holistic/ Multifold/ Pluralist) पूर्वाग्रह रहित लेखन, यानी तर्करहित छद्म चेतना से मुक्त लेखन। पूरी वस्तुनिष्ठता प्राप्त करना महान योगियों और दार्शनिकों के लिए ही संभव है परन्तु लेखक यदि धर्म-जाति-क्षेत्र-संप्रदाय- देश और अपने निजी अनुभवों से मुक्त रहकर मानवता को लक्ष्य कर लेखन करें तो पुस्तक प्रामाणिक और वैश्विक हो सकती है। कहा गया है कि सच्ची प्रतिभा वैश्विक होती है। उच्च शिक्षा (Higher Education) को विश्वविद्यालय शिक्षा (University Education) कहा जाना यह इंगित करता है की हमें इस शिक्षा से वैश्विक मानव (Universal Human) का निर्माण करना है। पुस्तक की वैश्विक स्वीकार्यता (Universal Appeal) होने पर पुस्तक महत्वपूर्ण हो जाती है।
वस्तुनिष्ठता और विषयनिष्ठता (Objectivity and subjectivity) के बाद पुस्तक समीक्षा में यह भी जानना आवश्यक है कि क्या लेखक, लेखन में किसी विचारधारा (Ideology or Schools of thought) से प्रभावित है? या उसका अनुयायी (Follower) है, जैसे- साम्राज्यवादी, नवउपनिवेशवादी, राष्ट्रवादी, मार्क्सवादी, नारीवादी, उपाश्रयवादी, उत्तरआधुनिकतावादी, नवमार्क्सवादी, वामपंथी और दक्षिणपंथी आदि (Imperialism, Neo Colonialism, Nationalism, Marxism, Feminism, Subaltern, Postmodernism, Neo Marxism, Leftist or Rightist) । यदि लेखक इन विचारों में किसी से प्रभावित होकर सत्य को विश्लेषित (Analysis of Facts) कर रहा है तो लेखक के निष्कर्षों का झुकाव अपनी विचारधारा को स्थापित करने में चला जायेगा जो पुस्तक को विषयनिष्ठ (Subjective) बना देगा। यदि पाठक को यह पता होगा कि वह किस विचारधारा (Schools of Thought) से प्रभावित लेखक को पढ़ रहा है तो वह पुस्तक को सही परिप्रेक्ष्य में समझ पायेगा।
यह सब समझने के पश्चात् यह जानना आवश्यक है कि पुस्तक की सीमा (Limitation) क्या है ? समीक्षक यह आसानी से बता सकता है कि और क्या ऐसा है जो उस पुस्तक में जोड़ने से वह और बेहतर बन सकती है। जैसे- फोटोग्राफ (Photography), सारणी (Tables), चित्र (Figures), ग्राफ (Graph) या कुछ और विषय-वस्तु (Content) आदि ।
अनुक्रमिणीका (Index) और सन्दर्भ ग्रन्थ सूची (Bibliography/ Reference) का सही उपयोग भी पुस्तक को बेहतर बनाता है। एक Classified Index पुस्तक में कोई शब्द, व्यक्ति या परिभाषा आदि ढूंढने में बड़ा उपयोगी हो सकता है। सही सन्दर्भ ग्रन्थ सूची पाठक को आगामी अध्ययन (Further Studies) का मार्ग प्रशस्त करती है।
इन्ही उद्देश्यों को लेकर यूनेस्कों (UNESCO-United Nations Educational Scientific and Cultural Organisation) ने 23 April 1995 को प्रथम बार अंतर्राष्ट्रीय पुस्तक दिवस (International Day of the Books) को आयोजित (Celebrate) किया यह दिवस पाठन प्रकाशन और कॉपीराइट (Reading Publishing and Copyright) के लिए समर्पित है । इस तिथि का चुनाव यूनेस्कों द्वारा विभिन्न साहित्यकारों / लेखकों के जन्मदिवस एवं पुण्यतिथि के आधार पर किया गया।
यह दिवस स्पेनिश लेखक मिगुयल दे सर्बान्तेस साबेद्रा (Spanish writer Miguel de Cervantes Saavedra) के जन्मदिवस और इंगलिश लेखक विलियम शेक्सपियर (William Shakespeare) की पुण्यतिथि से विशेषकर जुड़ा हुआ हैं । किताबों की दुनिया को, कलम के सिपाहियों को पुनः नमन करते हुए आप सभी को अंतर्राष्ट्रीय पुस्तक एवं कॉपीराइट दिवस (International Day of the Book and Copyright )की शुभकामनाएं।
डॉ. किशोर कुमार
एसोसिएट प्रोफेसर, इतिहास विभाग
निदेशक, स्वामी विवेकानंद अध्ययन केंद्र
राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बादलपुर, ग्रेटर नॉएडा
मोबाइल न.- 9990257272
dr.kumarkishor@gmail.com