लॉक डाउन ने अमीर-गरीब की खाई के बीच ईद को किया फीका
एम बिलाल मंसूरी
मुसलमानो के लिए सिर्फ दो त्यौहार ही ऐसे हैं जिसमे मुसलमान काफी दिनों पहले से उन त्यौहार के लिए तैयारी करता है और मुसलमान अपनी खुशी का इजहार करते हैं वो दो त्यौहार हैं – ईद उल फितर, व ईद उल अजहा। 30 दिनों तक रोज लगभग 16 घंटे भूखे प्यासे रहकर अल्लाह की इबादत करते हैं फिर उन 30 दिनों को पूरा करने की खुशी में ईद उल फितर मनाई जाती हैं हालांकि रमज़ान के महीने को भी खुशी से गुजारते हैं लेकिन लॉक डाउन में न तो रमज़ान में खुशी खुशी इबादत कर पाए और न ही 30 रोज़े पूरे करने की खुशी का इजहार कर पाए। इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ कि मुसलमानो ने दोनों बार ईद उल फितर की नमाज़ ईद गाह में नहीं पढ़ी। लॉक डाउन के कारण न सिर्फ मुसलमान ईद की नमाज़ और खुलकर खुशी जाहिर करने से वंचित रहे बल्कि इससे गरीबों के साथ बहुत बड़ा अन्याय और नजर अंदाजी भी हुई क्योंकि मुसलमान रमज़ान के महीने में अपनी दौलत का कुछ हिस्सा गरीबों को देते हैं जिसे फितरा कहते हैं। मुसलमानो ने हर साल की भांति गरीबों को फितरा तो इस बार भी दिया है लेकिन पुलिस के डंडे के कारण दूर के गरीबों तक नहीं पहुंच पाएं न ही गरीब लोग घर घर ही जा पाए जिससे इस ईद ने अनेक घरों के चेहरे मुरझा दिए हैं। इसी तरह सामान्य परिवार भी लॉक डाउन की सख्ती के कारण सामान्य तरीके से दुकानदारी न कर पाने की वजह से अपने बच्चों को नए कपड़े व खर्च करने के लिए पैसे नहीं दे पाए। भारत की परंपरा के अनुसार मुसलमान ईद पर शीर बनाते हैं शीर में डलने वाले सामान आसमान छू रहे हैं जिस कारण शीर बनाना भी महाभारत हो गया है इस बार अनेक घरों में या तो शीर कम बना है या बना ही नहीं है, अपनी गरीबी को लेकर लोग आसपास के लोगो ने मोहल्ले के लोगो को भी दावत पर नहीं बुलाया है। बढ़ती हुई बीमारी और महंगाई ने अनेक परिवारों की हालत को खस्ता कर दिया लॉक डाउन में जहां एक ओर छोटे दुकानदारों पर लाठियां बरस रही हैं वहीं बड़े दुकानदार खूब चांदी काट रहे हैं, ऑक्सीजन, दवाई व अन्य चीजों की काला बाजारी करने वालो ने खूब आनंद लिया तो गरीब ने मजबूरी में मुंह बोले पैसे दिए। दर्द की टीस को लेकर मुसलमानों के बीच कुछ सवाल चर्चा का विषय बने रहे कि 5 राज्यों में चुनाव के दौरान लाखो लोगो की भीड़ जुटती थी, कुंभ के मेले में खूब भीड़ जुटी थी, त्रिस्तरीय चुनाव खूब जोर शोर से हुए, शराब बिक रही है, लेकिन मुसलमानो को दूरी बनाकर भी ईद गाह में नमाज़ पढ़ने की अनुमति क्यों नहीं मिली? एक कहावत है कि “ईद तो पैसे वालो की होती है।” ये कहावत एक दम सटीक बैठती है। इस लॉक डाउन ने अमीर – गरीब की खाई को बढ़ाया है और गरीब की ही नहीं बल्कि सामान्य लोगो की ईद को भी फिका कर दिया है। सरकार को चाहिए कि लॉक डाउन के दौरान सिर्फ राशन ही नही जरूरत की चीज़े और आर्थिक मदद भी की जाए और कालाबाजारी करने और दबंगई दिखाने वाले पुलिस कर्मियों पर लगाम लगाए।
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