मकर संक्रांति
संक्रांति का पर्व है आया
हल्की धूप साथ में लाया
खुशियां मेरे मन में छाई
सखियों के मन को भी भाई।
लाल हरी या फिर हो पीली
आसमान की चादर नीली
हम सब छत पर इन्हें उडाते
हंसी -खुशी से मौज मनाते।
मेरे मन में उठी तरंग
चली उडाने लाल पतंग
मन में जीव दया के भाव
हर प्राणी से मुझे लगाव।
तोता ,मैना,चील,कबूतर
आसमान में उडते तीतर
इनकी देखो शामत आई
सबकी रक्षा करना भाई।
सबसे कहना यही हमारा
मकर सक्रांति पर्व है न्यारा
लहू किसी का बह न पाये
तभी पर्व यह महान कहाये।
सरिता जैन मुरैना ✍🏻