पोस्ट मार्टम हाउस के बोर्ड पर लिखे अल्फ़ाज मानवीय भाषा शैली पर उठा रहे सवाल

रूह लरज़ जाती है क्यूँ ………………???
(काज़ी अमजद अली)
सभ्यता की पहचान शालीनता और मृदु भाषा से होती है। शालीनता और शगुफ़्तगी की ज़बान राहत का एहसास कराती हैं। कठोरता व्यवहार में हो या शब्दों में सुहाती नही है।अच्छे शब्दो का प्रयोग अच्छा अहसास कराता है तो कर्कश शब्द वाण बनकर चुभते हैं। फिर बात चाहे पोस्टमार्टम हाउस के बाहर लगे बोर्ड की ही क्यूँ न हो जहाँ बोर्ड पर अंकित शब्द शालीनता के दायरे से बाहर नज़र आते हैं। तथा सभ्यता की भाषा शैली पर सवाल उठाते हैं.
जीवित रहते किसी प्रति बनी दुर्भावना भी शरीर पूरा हो जाने के बाद समाप्त हो जाती है। और उसी व्यक्ति के लिये अच्छे शब्दों का चयन किया जाता है।मानवता के इसी तकाज़े को मद्देनजर रखते हुवे। मुज़फ्फरनगर में भोपा मार्ग पर जट मुझेड़ा में स्थित पोस्टमार्टम हाउस के बाहर लगे बोर्ड के शब्द मानवता की भाषा का जैसे चीर हरण करते हैं। यह वही भयानक स्थान है जहाँ कोई किसी सूरत में भी जाने की ख्वाहिश नही रखता। आवश्यकताओं ने इस स्थान का निर्माण किया है ।तो उसका नाम भी आवश्यक ही है। स्थान का नाम उसे और भयानक रूप दे इस पर सवाल है। विकलांग शब्द के स्थान पर दिव्यांग शब्द सम्मान का बोध कराता है उसी प्रकार पोस्टमार्टम हाउस के बाहर लिखे शब्द जिन्हें लिखने में भी रूह लरज़ जाती है। उनका प्रयोग निष्ठुरता का बोध करा रहा है क्या ही अच्छा हो कि पोस्टमार्टम हाउस के बाहर लगे बोर्ड से चीर घर शब्द हटाकर मानवीय शब्दो का प्रयोग किया जाये।