निकाह में डोनेशन का नया ट्रेंड—मदरसा, मस्जिद और अब तालीम!

UP के बागपत ज़िले का असारा गांव, जो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुस्लिम आबादी और सामाजिक जागरूकता के लिए जाना जाता है, एक बार फिर चर्चा में है। यहां के साजिद चौधरी और शिकारपुर के नंबरदार परिवार ने अपने बच्चों के निकाह को सिर्फ एक पारंपरिक रस्म नहीं, बल्कि सामाजिक बदलाव का जरिया बना दिया।
निकाह की महफ़िल में रौशनी की बात हुई,
तालीम को तरजीह मिली, एक नई शुरुआत हुई।
असारा ने दिखाया रास्ता, शिकारपुर ने साथ दिया,
तरक़्क़ी की राह में, हर दिल ने हाथ दिया।
💸 डोनेशन की पहल और उसका मकसद..
निकाह के मौके पर इन परिवारों ने तरक़्क़ी फाउंडेशन नामक NGO को ₹6201 का डोनेशन दिया। यह फाउंडेशन मुस्लिम समुदाय में शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए काम करता है।
उनका कहना है:
> “जिस तरह से हम मदरसे और मस्जिद को शादी में सहयोग देते हैं, उसी तरह तालीम के लिए काम कर रहे संगठनों को भी मदद मिलनी चाहिए।”
यह पहल एक नई सोच को जन्म देती है—कि धार्मिक और सामाजिक जिम्मेदारियों के साथ-साथ शिक्षा को भी प्राथमिकता दी जाए।
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📚 इस्लामी नज़रिया और तालीम की अहमियत..
इस्लाम में तालीम को सबसे ऊँचा दर्जा दिया गया है। पैग़म्बर मोहम्मद (स.अ.) ने फरमाया:
> “Ilm hasil karna har Musalman mard aur aurat par farz hai.”
(ज्ञान प्राप्त करना हर मुसलमान पुरुष और महिला पर अनिवार्य है।)
इस सोच के तहत अगर हर शादी में कुछ हिस्सा तालीम के लिए रखा जाए, तो यह पूरे समुदाय के भविष्य को रौशन कर सकता है।
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🌱 समाज के लिए संदेश और आगे की राह..
यह पहल सिर्फ एक डोनेशन नहीं, बल्कि एक आंदोलन की शुरुआत है। इससे समाज को ये संदेश जाता है कि:
– शादी सिर्फ खर्च और रस्मों का नाम नहीं, बल्कि सामाजिक ज़िम्मेदारी निभाने का मौका भी है।
– तालीम को सहयोग देना एक सवाब का काम है।
– अगर हर परिवार इस सोच को अपनाए, तो मुस्लिम समाज में शिक्षा का स्तर तेज़ी से ऊपर उठ सकता है।




