अपना मुज़फ्फरनगर

“ऐ सैयदा के लाल तुझको उम्रभर रोएंगे हम, हम फख्त पैदा हुए रोने रुलाने के लिए”

सोगवारों ने इमाम हुसैन की याद में बहाए आंसू
-मुजफ्फरनगर में 10 मोहर्रम को निकला जुलूस ए जुलजुनाह
मुजफ्फरनगर। ‘ऐ सैयदा के लाल तुझको उम्रभर रोएंगे हम, हम फकत पैदा हुए रोने रुलाने के लिए”। इन पंक्तियों के साथ नोहाख्वानी व सीनाजनी करते हुए शिया सोगवारों ने नवासाए रसूल हजरत इमाम हुसैन की याद में आंसू बहाए। 10 मोहर्रम यानी रोजा ए आशूरा के दिन मंगलवार को मोहर्रम का जुलूस नगर में कदीमी रास्तों से होकर गुजरा, जिसमें हजारों सोगवारों ने शिरकत कर शोहदाए करबला को खिराज-ए-अकीदत पेश की। मुजफ्फरनगर में 10 मोहर्रम 1444 हिजरी यौमे आशुरा को हजरत इमाम हुसैन अलै. व करबला के शहीदो की याद मे मातमी जुलूस निकाला गया। जुलूस में या हुसैन या हुसैन की सदाओं के साथ मातम करते हुए शिया सोगवार आगे बढ़े। अकीदत मंदो ने जंजीर मे बंधी छुरियों से मातम कर अपने आपको लहुलुहान कर लिया। इमामबारगाह में मौलाना ने बयान किया। उन्होंने कहा कि इमाम हुसैन ने मैदान ए करबला में अपनी और अपने जां निसारों की बेशुमार कुर्बानियां पेश कर अपने नाना के दीन को बचा लिया। उन्होने कहा कि इमाम हुसैन ने यजीद की बेयत न कर बता दिया कि हक के लिए शहादत भी दी जा सकती है। उन्होंने हजरत इमाम हुसैन की कुर्बानी का पसे मंजर पेश किया। उसके बाद जुलूस आगे बढ़ गया। मौलाना की तकरीर के बाद जुलजुना (घोड़ा इमाम) बरामद हुआ। जुलूस शहर में इमामबारगाह अबुपुरा होते हुए नदीवाला, खादरवाला पर आया। दूसरा जुलूस मोती महल, गढीगोरवान, नियाजुपुरा, मिमलाना रोड़, मल्हुपुरा, कटेहरा सैयादान होते हुए पुराने रास्ते से आगे बढ़ा। शिया सोमवार जंजीरों तथा कमा का मातम करते व नोहाख्वानी करते आगे बढ़े। नोहाख्वानी साहिबे आलम, असकरी, मो. जमा, शबीह हैदर, अरशद, सलीम आदि ने की। उधर बघरा में मजलिस को मोलाना सयैद मोहम्मद मेहँदी (आजमगढ़) ने खिताब फरमाया। मौलाना ने कहा कि इमाम हुसैन (अ.स.) ने यजीद का विरोध किया। उस समय यजीद इस्लाम को पूरी तरह पामाल करने पर तुला हुआ था। उसने मदीने में कई लोगो से बैत कर ली थी। जब इमाम हुसैन (अ. स.) ने यजीद की बैत से इनकार किया तो उसने इमाम हुसैन (अ.स.) को कत्ल करने का हुक्म दे दिया। सन 61 हिजरी में इमाम ने यजीद के विरुद्ध कियाम किया। जब शासकीय यातनाओं से तंग आकर हजरत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम मदीना छोड़ने पर मजबूर हो गये तो उन्होने अपने कियाम के उद्देश्यों को इस प्रकार स्पष्ट किया कि मैं अपने व्यक्तित्व को चमकाने या सुखमय जीवन यापन करने या उपद्रव फैलाने के लिए कियाम नहीं कर रहा हूँ। बल्कि मैं केवल अपने नाना (पैगम्बरे इस्लाम) की उम्मत (इस्लामी समाज) को बचाने के जा रहा हूँ तथा मेरा निश्चय मनुष्यों को अच्छाई की ओर बुलाना व बुराई से रोकना है। मैं अपने नाना पैगम्बर (स.) व अपने पिता इमाम अली अलैहिस्सलाम की सुन्नत (शैली) पर चलूँगा। मोलाना ने कहा की इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने करबला के मैदान मे बड़ी शान से कुरबानी पेश की क्योंकि वह जानते थे कि इस कुरबानी के बदले इस्लाम को नई जि“ंदगी मिल रही है। इस कुरबानी से साबित हो रहा है कि यजीद और यजीदियत का इस्लाम से कोई लेना देना नहीं है अस्ली इस्लाम तो वह है जिसकी नुमाइंदगी इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम कर रहे हैं। इस तरह देखा जाए तो बेशक कर्बला में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम कत्ल कर दिए गए और यजीदी फौज में शामिल लोग जीवित रहे लेकिन विजय इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को मिली क्योंकि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने इस्लामी की हिफाजत के लिए जंग की थी और वह महफूज हो गया जबकि यजीद अस्ली इस्लाम को मिटा कर इस्लाम के नाम पर अलग ही तौर तरीकों को इस्लामी दुनिया पर थोपना चाहता था और वह इस मकसद में नाकाम रहा। बाद में एक जुलूस मोहल्ला इमाम बाड़ा से शुरू होकर दरगाहें आलिया पहुँचा। जुलूस में नौहखानी, हसन मोहमद, रिजवी, रियासत अली, अब्बास अली आदि ने की। इस मौके पर रिजवान प्रधान, इंजीनियर आरिफ, इमरान आदि मौजूद रहे। मोरना मे करबला के शहीदों की याद में शिया सौगवारों द्वारा दिल दहला देने वाला खूनी मातम किया गया। ताजियों का जूलूस निकाला गया, जिसमें अलम बरामद किये गये तथा जुलजनाह को बरामद किया गया। धर्मगुरूओं द्वारा करबला के वाक्ये को बयान किया गया। जुलूस के दौरान भारी संख्या में पुलिस बल तैनात किया गया।

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