‘एक के नब्बे’ का लालच ले डूबा लाखों परिवार

एक बार लत लगी, हजार कोशिशों के बावजूद नहीं छूटेंगी
(लियाकत मंसूरी)
मुजफ्फरनगर। सट्टे की लत अगर एक बार लग तो यह कभी नहीं छूटेंगी। इसका कारण है ‘एक के नब्बे’ मिलने का लालच। यह ऐसा नशा है जो लोगों के घरों को बरबाद कर रहा है। मेहनत से कमाई हुई दौलत को 90 गुना करने के चक्कर में धीरे-धीरे गवायी जा रही है। सट्टा माफिया इस दौलत से अमीर हो रहे हैं। जनपद के आधा दर्जन से अधिक थाना क्षेत्रों में सट्टे का कारोबार तेजी से बढ़ रहा है। देहात में भी यह धंधा जोरों पर है। हालांकि, पुलिस कार्रवाई करती है, लेकिन मामूली धाराएं होने के कारण सट्टा माफिया अधिक समय तक पुलिस गिरफ्त में नहीं रहता। सूत्रों की माने तो पुलिस की सेटिंग यह कारोबार चल रहा है।
‘सट्टा’ ये ऐसा गेम है, जिसकी लत अगर एक बार लग गई तो फिर कभी नहीं छूटेंगी। इसका कारण है एक रुपये को 90 गुना करने का लालच। दरअस्ल, सट्टे के खेल में एक से लेकर सौ तक अंक होते है, जिन पर दांव लगाना होता है। यह दहाई और हरूप में खेला जाता है। एक रुपये की दहाई लगाने पर 90 रुपये मिलते हैं, जबकि एक रुपये का हरूप लगाने पर नौ रुपये। जैसा कि एक व्यक्ति ने 12, 32, 42 नम्बरों की दहाई लगाई। इन अंकों पर उसने दस-दस रुपये लगाए। यह गेम सुबह और शाम को खेला जाता है। शाम के समय गेम खेला तो सुबह में गेम खुलता है, व्यक्ति द्वारा लगाया गया अंक 12 खुला तो व्यक्ति को 900 रुपये मिलेंगे। इसी तरह किसी व्यक्ति ने 3 का हरूप खेला और अगले दिन नम्बर 32 खुला तो उक्त व्यक्ति को 90 रुपये मिलेंगे। दस रुपये को 900 रुपये करने का यही लालच सट्टा खेलने के लिए मजबूर करता है। इस खेल में गरीब से लेकर अमीर तक शामिल है। बड़ी मात्रा में लोग धनराशि लगाते है। यह राशि दस रुपये से लेकर सौ, एक हजार, दस हजार रुपये तक पहुंच जाती है। एक व्यक्ति अगर रोजाना सौ रुपये इस गेम में लगाता है तो वह माह भर में लगभग तीन हजार से अधिक रुपये सट्टे की भेंट चढ़ा देता है। तीन हजार रुपये कम से कम है, सूत्रों की माने तो एक व्यक्ति माहभर में दस रुपये तक का गेम खेल लेता है।
माफियाओं तक नहीं पहुंचते पुलिस के हाथ
शहर के कोतवाली व सिविल लाइन थाना क्षेत्र में सट्टा बड़ी मात्रा में खेला जाता है। एक इलाका तो ऐसा है जहां गली-गली में यह गेम खिलता है। सवाल है कि शहर का कोई ऐसा थाना नहीं, जहां सट्टा न खेला जाता हो। दबिश के नाम पर पुलिस खानापूर्ति करती है और माफियाओं पर हाथ नहीं डालती, बल्कि सट्टा खेलने वालों को पकड़ लेती है, उनसे पर्चियां बरामद कर चालान कर देती है।
माफिया का पूरा परिवार लिप्त
सट्टा माफियाओं ने दूध की डेयरी खोल रखी है, जिसकी आड़ में गेम खेला जाता है। दूसरी ओर, कबाड़ के गोदाम भी बना रखे हैं। डेयरी खोलकर गलियों पर कब्जा जमा रखा है। पशुओं का गोबर नालियों में बहा दिया जाता है, जो विरोध करता है उसको पुलिस से धमकवा दिया जाता है। सूत्रों पर विश्वास करें तो सट्टा माफिया का पूरा परिवार इस खेल को खिलवाता है।
नम्बरों के चक्कर में अंधविश्वास हो रहा हावी
सट्टा खेलने वाले एक व्यक्ति ने बताया कि नम्बरों को खेलने के लिए कभी-कभी भगत व तांत्रिकों के पास भी जाना पड़ता है। मस्त व साधु संत के साथ मौलवी तक की हैल्प ली जाती है, क्योंकि ये ईश्वर की इबादत करते हैं, इनका मुंह से निकलने वाला अंक अक्सर आ जाता है। कुछ भविष्यवाणी करने वाले लोग भी ज्ञानी होते है, जो भविष्य के बारे में बता देते हैं। इसके अलावा ख्वाब में दिखने वाली चीजों पर भी दांव लगाया जाता है। जैसे कि ख्वाब में सांप दिखा तो 7 नम्बर की दहाई लगा दी जाती है। मुर्दा दिखा तो मुर्दा अंक, पुलिस दिखी तो पांच, आदमी पर 8, औरत पर जीरो अंक खेला जाता है। इस तरह की चीजों ख्वाब में दिखने पर हजारों रुपये तक अंक पर लगा दिए जाते हैं।