निकाय चुनाव: भावी प्रत्याशियो ने टिकट के लिए की जोर आजमाइश

पार्टी से टिकट न मिलने पर निर्दलीय किस्मत आजमाने की तैयारी
मुजफ्फरनगर में निकाय चुनाव की आहट के साथ ही चुनाव लड़ने के दावेदारों के बीच विभिन्न पार्टियों से टिकट पाने की होड़ लग गयी है। आरक्षण सूची जारी होने के बाद जहां कई लोगों के अरमानों पर पानी फिर गया था, वहीं कई चेहरे ऐसे सामने आये, जो पहले मैदान में नहीं थे, परन्तु अब वह चुनाव में पूरी ताकत के साथ अपनी दावेदारी ठोंक रहे हैं। जिन पार्टियों से ज्यादातर टिकट की दावेदारी की जा रही है, उनमें भाजपा, गठबंधन व बसपा प्रमुख हैं, इसके अलावा एआईएमएम, कांग्रेस व अपना समाज से भी टिकट पाने की जुगत चल रही है।
बता दें कि यूपी में निकाय चुनाव होने हैं, जिसके लिए पिछले दिनों आरक्षण सूची जारी की गयी थी। आरक्षण सूची जारी होेने के बाद मुजफ्फरनगर की दो नगरपालिकाओं में से मुजफ्फरनगर नगर पालिका महिला के लिए आरक्षित हो गयी, जबकि खतौली नगर पालिका पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षित की गयी है। नगरपालिका मुजफ्फरनगर की बात करें, तो इस सीट पर पूर्व में कांग्रेस के टिकट पर अंजु अग्रवाल चुनाव जीतकर चेयरमैन बनी थी, परन्तु बाद में वह राजनीतिक दबाव के चलते भाजपा में चली गयी थी। हालांकि भाजपाइयों ने उन्हें कभी भाजपा का सदस्य नहीं समझा और उनकी हर मौके पर अनदेखी की गयी। इतना ही नहीं अपनी ही पार्टी के लोगों से वह पूरे कार्यकाल उलझती रही, जिसमें उनके अधिकारी भी सीज हुए। एक बार फिर मुजफ्फरनगर नगरपालिका महिलाओं के लिए आरक्षित की गयी है। महिला सीट होने के कारण जो लोग यहां से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे थे, वह या तो बैकफुट पर पहुंच गये हैं या फिर अपनी पत्नियों को इस सीट से चुनाव लड़ाना चाह रहे हैं। इस सीट पर सबसे ज्यादा दावेदार भाजपा से हैं। भाजपा में टिकट पाने के लिए घमासान मचा हुआ है, सभी अपने-अपने तरीके से ऐडी से लेकर चोटी तक का जोर लगा रहे हैं। अब देखना यह होगा कि भाजपा किस पर अपना विश्वास जतायेगी और किसे अपना उम्मीदवार घोषित करेगी। इस सीट पर जहां भाजपा से कई वेश्य उम्मीदवार हैं, वहीं ब्राह्मण समाज व पिछड़े समाज के भी लोग अपनी दावेदारी कर रहे हैं। दूसरी ओर गठबंधन से भी टिकट पाने के लिए कई उम्मीदवार मैदान में हैं। इसके अलावा बसपा से भी टिकट पाने के लिए कई लोग लाइन में लगे हुए हैं। इस बार माना जा रहा है कि परिसीमन के बाद इस सीट की परिस्थिति बदल गयी हैं, जहां पूर्व में यह सीट वैश्य बाहुल्य मानी जाती थी, वहीं इस सीट पर अब मुस्लिम व पिछड़ों का दबदबा हो गया है। इसके अलावा दलित वोट भी बड़ी संख्या में इस सीट पर बढ़ा है। ऐसे में यदि किसी भी दो जातियों का सामंजस्य बन जाता है, तो वह इस सीट का विजेता हो सकता है। दूसरे शब्दों में कहें, तो इस सीट पर इस बार यह तय करना मुश्किल होगा कि कौन विजयी उम्मीदवार है। इस बार इस सीट पर आमने-सामने का मुकाबला न होकर त्रिकोणीय मुकाबला भी हो सकता है।