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जन्मदिन पर विशेष: युवाओं के हीरो भगत सिंह..

(डॉ. रश्मि जहां)

अपने वतन के लिए जान कुर्बान कर देने वाले शहीद भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर, 1907 को लायलपुर जिले बंगा में हुआ था। उनके पैतृक गांव खट्कड़ कलां है जो पंजाब भारत में है। उसके पिता का नाम सरदार किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती कौर था। उनका जन्म एक सिंधु जाट और स्वतंत्रता कार्यकर्ताओं के परिवार में हुआ। दरअसल जिस दिन भगत सिंह का जन्म हुआ उस दिन उनके पिता और दो चाचा जेल से रिहा हुए थे। वे गदर पार्टी के सदस्य थे, जो भारत में ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकने के लिए गदर आंदोलन चला रहे थे। वह एक ऐसी पार्टी से ताल्लुक रखते थे जो भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के दो निर्णायक चरणों में हस्तक्षेप करती थी, पहला,लाल-बाल-पाल के चरमपथ का चरण और दूसरा अहिंसक सामूहिक कार्यवाही का गांधीवाद चरण। अमृतसर में 13 अप्रैल 1919 को हुए जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह के दिलों दिमाग पर गहरा प्रभाव डाला था। लाहौर के नेशनल कॉलेज की पढ़ाई छोड़कर भगत सिंह ने भारत की आजादी के लिए नौजवान भारत सभा की स्थापना कर डाली और देश की आजादी की कहानी में नया अध्याय जोड़ दिया। भगत सिंह करतार सिंह सराभा और लाला लाजपत राय से अत्यधिक प्रभावित थे ।

भगत सिंह को भारत के सबसे महान स्वतंत्रता सेनानियों में से एक माना जाता है। उनके बलिदान और साहस ने भारत की स्वतंत्रता आंदोलन को प्रेरित किया था। वे अपनी युवा उम्र में ही भारत की स्वतंत्रता के लिए लड़ने के लिए प्रेरित हुए थे। भगत सिंह एक भारतीय क्रांतिकारी थे, जो विशेष रूप से युवाओं के बीच अपने साहस और वीरता के लिए असाधारण सम्मान और मान्यता प्राप्त करते हैं। भगत सिंह को भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के सबसे प्रभावशाली राष्ट्रवादी नेताओं में से एक माना जाता है।

भगत सिंह को अक्सर “शहीद “भगत सिंह कहां जाता है।”शहीद” शब्द का अर्थ शहीद होना है। अगर बहरों को सुनना है तो आवाज बहुत तेज होनी चाहिए। जब हमने बम गिराया तो हमारा इरादा किसी को मारना नहीं था, हमने ब्रिटिश सरकार पर बम गिराया है, अंग्रेजों को भारत छोड़ना होगा और इसे आजाद करना होगा। भगत सिंह ने यह बात असेंबली बम विस्फोट के बाद कही थी इन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिए अभूतपूर्व साहस के साथ शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार का मुकाबला किया । वो कई क्रांतिकारी संगठनों के साथ मिले और उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में अपना बहुत बड़ा योगदान दिया था। उन्हें लाहौर षड्यंत्र केस में दोषी ठहराया गया, जिसमें ब्रिटिश सरकार के खिलाफ बम विस्फोट में उनकी भागीदारी शामिल थी।
भगत सिंह को महज़ 23, 24 साल की उम्र में ब्रिटिश सरकार ने फांसी पर चढ़ा दिया। भगत सिंह के साथ राजगुरु और सुखदेव को भी सजा-ए-मौत दी गई थी। कहते हैं फांसी पर जाने से पहले वे लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे, और जब उनसे उनकी आखिरी इच्छा पूछी गई तो उन्होंने कहा कि वह लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे और उन्हें वह पूरी करने का समय दिया जाए। कहा जाता है ,की जेल के अधिकारियों ने जब उन्हें यह सूचना दी कि उनके फांसी का वक्त आ गया है,तो उन्होंने कहा था- ठहरिए। पहले एक क्रांतिकारी दूसरे से मिल तो ले। फिर एक मिनट बाद किताब छत की ओर उछाल कर बोले- “ठीक है अब चलो।”
फांसी पर जाते समय वे तीनों मस्ती में गा रहे थे।
मेरा रंग दे ,बसंती चोला,मेरा रंग दे। मेरा रंग दे बसंती चोला।माय रंग दे बसंती चोला।।
तीनों ने हंसते-हंसते देश के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया।
शहीद भगत सिंह और उनके साथियों के बलिदान को ता कयामत याद किया जाएगा। हर साल हर भारतीय उनकी पैदाइश को जश्न और उनकी शहादत को शहीद दिवस के रूप में मनाता है और मनाता रहेगा। जय हिन्द!


डॉ. रश्मि जहां

Assistant professor department of education
Shri Dronacharya PG College Dankaur Greater Noida में कार्यरत हैं।

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