धर्म

यौमे आशूरा पर शिया सोगवारो ने किया दिल दहला देने वाला मातम, कड़ी सुरक्षा में निकला मुहर्रम का जुलूस

मुजफ्फरनगर जनपद भर में यौमे आशूरा पर शिया सोगवारो ने दिल दहला देने वाला मातम कर करबला के शहीदों को याद किया। कोविड-19 के चलते पिछले दो साल से मोहर्रम के जुलूस पर पाबंदी चल रही थी, लेकिन इस बार जनपद में या हुसैन की सदाओ की गूंज सुनाई देती रही। जिले में लॉ एंड आर्डर बरकरार रखने के लिए पुलिस प्रशासन ने भी पुख्ता इंतजाम किए हैं। मंगलवार को पुलिस के मुस्तैदी के बीच शहर में 10वीं मोहर्रम ‘यौमे-आशूरा’ का जुलूस ताजिये लेकर निकाला गया।

 

हर तरफ हुसैन,या सकीना की याद में मातम की आवाजें गूज उठी। जिला प्रशासन ने जुलूस के मद्देनजर सुरक्षा की कड़ी व्यवस्था की थी। कलेक्ट्रेट स्थित कंट्रोल रूम में लगे सीसी कैमरों से चप्पे चप्पे की निगहबानी होती रही। जगह-जगह भारी मात्रा में पीएसी बटालियन, आरआरएफ आरएफ समेत कई थानों की पुलिस फोर्स तैनात रही। जवानों ने कई रूटों पर मार्च करके हालात का जायजा भी लिया। अजादारों ने मातम कर करबला के शहीदों को पुरसा दिया। वही पुलिस अफसर भी जायजा लेने के लिए सड़क पर मौजूद रहे। खुद पुलिस कप्तान विनीत जायसवाल ने अफसरों की टीम के साथ कमान संभाली।

खालापार से लेकर लोहिया बाजार तक रहा बंद

जुलूस के चलते नगर में दिन भर सड़के जाम रही। बता दे कि मोहर्रम के यौमे-आशूरा जुलूसों के चलते देर रात कई रास्ते बंद कर दिए गए । दो व चार पहिया सहित बड़े वाहनों के मार्ग भी बदल दिए गए थे। संकरी गलियों से लोगो ने अपने वाहन निकाले।

तिरंगे झंडे के साथ मुहर्रम का मातमी जुलूस

 

चरथावल कस्बे में मंगलवार को शिया सोगवारो ने तिरंगे झंडे के साथ मुहर्रम का मातमी जुलूस निकालते हुए इमाम हुसैन को याद कर अपने आप को छुरियों से लहूलुहान किया।सुरक्षा की दृष्टि से चरथावल थाना प्रभारी राकेश शर्मा एवं व कस्बा इंचार्ज आशुतोष भारी पुलिस बल के साथ ताजिया जुलूस में मौजूद रहे वही चरथावल चैयरमैन सतेंद्र त्यागी ने भी अपनी टीम के साथ ताजिया जुलूस में शामिल होकर एकता की मिसाल कायम की।
वही दूसरी और चरथावल कस्बे में आयोजित शिया सोगवारो के मातमी जुलूस में तकरीर करते हुए मौलाना ने फरमाया की इस्लाम को मौहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन ने अपना व 72 शहीदों की कुर्बानी देकर बचाया था जिसकी याद में शिया मोहर्रम मनाते है।अंजुमन फौजे हुसैनी के द्वारा मुहर्रम का मातमी जुलूस निकाला गया।मातमी जुलूस उर्दू केलेण्डर के मोहर्रम महीने की 10 तारीख को निकाला जाता है जुलूस इमाम बाडा स्थित बारगाह से शुरू हुआ।बाजार कलां व तकिया वाली मस्जिद से होते हुये करबला पहुँचा इसके पहले शिवचौक पर शिया सोगवारों ने हज़रत इमाम हुसैन को याद करते हुए घंटों खूनी मातम करते हुए अपने आप को लहूलुहान किया सोगवार ज़ंजीर, ब्लेडों से मातम कर रहे थे खूनी मातम को देखकर लोगो के हलक सुख गये जुलूस के दौरान कर्बला में ताजिये भी दफन किये गए सुरक्षा की दृष्टि से चरथावल थाना प्रभारी राकेश शर्मा एवं व कस्बा इंचार्ज आशुतोष भारी पुलिस बल के साथ ताजिया जुलूस में मौजूद रहे वही चरथावल चैयरमैन सतेंद्र त्यागी ने भी अपनी टीम के साथ ताजिया जुलूस में शामिल होकर एकता की मिसाल कायम की।

बघरा में हुआ दिल दहलाने वाला मातम

 


तितावी इलाके के कस्बा बघरा मे भी मजलिस का 10 वा दिन था। मजलिस को मोलाना सयैद मोहम्मद मेहँदी (आज़मगढ़) ने खिताब फरमाया। मौलाना ने कहा कि इमाम हुसैन (अ.स.) ने यज़ीद का विरोध किया । उस समय यज़ीद इस्लाम को पूरी तरह पामाल करने पर तुला हुआ था। उसने मदीने में कई लोगो से बैत कर ली थी । जब इमाम हुसैन (अ. स.) ने यज़ीद की बैत से इनकार किया तो उसने इमाम हुसैन (अ.स.) को कत्ल करने का हुक्म दे दिया। सन 61 हिजरी में इमाम ने यज़ीद के विरुद्ध क़ियाम किया। जब शासकीय यातनाओं से तंग आकर हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम मदीना छोड़ने पर मजबूर हो गये तो उन्होने अपने क़ियाम के उद्देश्यों को इस प्रकार स्पष्ट किया। कि मैं अपने व्यक्तित्व को चमकाने या सुखमय जीवन यापन करने या उपद्रव फैलाने के लिए क़ियाम नहीं कर रहा हूँ। बल्कि मैं केवल अपने नाना (पैगम्बरे इस्लाम) की उम्मत (इस्लामी समाज) को बचाने के जारहा हूँ। तथा मेरा निश्चय मनुष्यों को अच्छाई की ओर बुलाना व बुराई से रोकना है। मैं अपने नाना पैगम्बर(स.) व अपने पिता इमाम अली अलैहिस्सलाम की सुन्नत(शैली) पर चलूँगा।
मोलाना ने कहा की इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने करबला के मैदान मे बड़ी शान से क़ुरबानी पेश की क्योंकि वह जानते थे कि इस क़ुरबानी के बदले इस्लाम को नई ज़िंदगी मिल रही है। इस क़ुरबानी से साबित हो रहा है कि यज़ीद और यज़ीदियत का इस्लाम से कोई लेना देना नहीं है अस्ली इस्लाम तो वह है जिसकी नुमाइंदगी इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम कर रहे हैं।
इस तरह देखा जाए तो बेशक कर्बला में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम क़त्ल कर दिए गए और यज़ीदी फ़ौज में शामिल लोग जीवित रहे लेकिन विजय इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को मिली क्योंकि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने इस्लामी की हिफ़ाज़त के लिए जंग की थी और वह महफ़ूज़ हो गया जबकि यज़ीद अस्ली इस्लाम को मिटा कर इस्लाम के नाम पर अलग ही तौर तरीक़ों को इस्लामी दुनिया पर थोपना चाहता था और वह इस मक़सद में नाकाम रहा।  बाद में एक जुलूस मोहल्ला इमाम बाड़ा से शुरू होकर दरगाहें आलिया पहुँचा। जुलूस में नौहखानी , हसन मोहमद, रिज़वी, रियासत अली , अब्बास अली आदि ने की । इस मौके पर रिज़वान प्रधान , इंजीनियर आरिफ , इमरान आदि मौजूद रहे ।

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