“जनता के हाथ में सबकी चाबी है।”….
बॉलीवुड में काम करने वाले अभिनेता अभिनेत्रियों को कोसते लोग कभी यह सोचने की जहमत करते हैं कि वह इस दुनिया में काम करने आएं हैं।उनका मकसद वैसे ही पैसा कमाना है जैसा कि एक मजदूर का।यह बात सही है कि मजदूर सिर्फ पेट भरने लायक ही कमा पाता है लेकिन इन लोगों की मेहनत उस भरे पेट को बचाने के लिए होती है।वरना कितने ही गुमनाम कलाकार बदहाली में दुनिया को छोड़कर चले गए।कोई नहीं आया उन्हें सहारा देने।
बॉलीवुड में वही बिक रहा है जो जनता खरीद रही है।चाहे वह धर्म का मखौल हो या अपराधी को नायक बनाना या फिर एक अभिनेत्री को अपना बदन दिखाना।
जनता कितनी मासूम है कि उन अभिनेत्रियों को जल्द ही भूल जाना पसंद करती है जिस अभिनेत्री ने कुछ न दिखाया हो।
हकीकत यही है कि वह जो कर रही हैं वह जनता देखना चाहती है और जनता की माँग पर काम नहीं किया जायेगा तो इनकी इस इंडस्ट्री में जगह ही नहीं।तभी तो रामलीला और बाजीराव मस्तानी जैसी फिल्मों में उम्दा अभिनय करनी वाली दीपिका पादुकोण को भी पठान में नग्न होना पड़ गया।दीपिका पादुकोण के ऊपर बेशर्मी का रंग कुछ इस कदर हावी हुआ कि वह अंगप्रदर्शन के हर मापदंड को तोड़ने पर उतारु हो गई हैं।शायद दर्शक यही देखना चाहते हैं!!
कुछ लोग यह भी कहेंगे कि उन्हें तो साफ सुधरी फिल्में पसंद है लेकिन यह नहीं कहेंगे कि यदि साफ सुधरी ,दुपट्टा पहनी कितनी फिल्मों को सफलता मिली है?.
फिल्मों की बातें छोड़िए यहाँ तो टीवी पर चलने वाले शो भी साजिश अनैतिक रिश्तों पर ही सफल हो रहे हैं।अनुपमा देख लीजिए।सभी का एक्सट्रा मैरिटल अफेयर चल रहा है और अनुपमा घर घर चल रहा है।
उसकी टीआरपी लोगों को पसंद के कारण ही बढ रही है।इन अभिनेत्रियों के लिए वेश्या जैसे शब्दों का इस्तेमाल करने वाली यह जनता इन्हें सामने देखकर चरणों में लोट लगाने से भी पीछे नहीं रहेगी।कितनी घटिया शब्दावली है यह।जो तुम्हें चाहिए यदि वह यह सब नहीं है तो क्यों ऐसी फिल्मों को इतनी भीड़ मिल रही है!
यह कलाकार वैसे ही काम कर रहे जैसे कि बाकी सभी।बस क्षेत्र अलग होने से क्या उनके काम की मजबूरियों और लिमिटेशन को नजरअंदाज करना सही है!
आज भी न जाने ऐसे ओटीटी चल रहे हैं जहां पर जनता वह देख रही है जिसका विरोध वह अपने मुँह से करती रहती है।
सच में कितना विरोधाभास है जनता की कथनी और करनी में।
दिव्या शर्मा
गुडगांव