क्षेत्रीय अनुकूलित बीजो के माध्यम से जैव विविधता संरक्षण की ओर बढ़ते कदम
डॉ.बनवारी लाल/मौ.अनस
(कृषि विश्वविद्यालय जोधपुर)
कृषि विश्वविद्यालय जोधपुर विभिन्न कृषि शोधों व नवाचारों के साथ-साथ स्थानीय स्तर की लुप्त होती किस्म को बचाने के लिये कार्य कर रहा है। इटली देश की राजधानी रोम में स्थित इंटर नेशनल बायोडायवर्सिटी व ग्लोबल इनवायरमंेट फेसेलिटी (जेफ) व कृषि विश्वविद्यालय जोधपुर के मध्य राजस्थान में उगने वाली प्रमुख फसलों के प्राचीन देसी किस्मों के बीजों के संरक्षण को लेकर एक साझा कार्यक्रम चल रहा है।राजस्थान राज्य में संचालित 5 कृषि विश्वविद्यालय में से कृषि विश्वविद्यालय, जोधपुर अंतर्राष्ट्रीय परियोजना हासिल करने वाला प्रदेश का पहला विश्वविद्यालय है। इस परियोजना के अंतर्गत राजस्थान राज्य में प्राकृतिक जैव विविधता का संरक्षण करते हुए राज्य के विभिन्न स्थानों पर अलग-अलग फसलों को बोने की बात की गई है, इस परियोजना के अंतर्गत कृषि महाविद्यालय में जैव विविधता संरक्षण से सम्बंधित कार्य किया जा रहा हैै।
परियोजना में राजस्थान में उगने वाली प्राचीन देसी किस्मों के बीजों को संरक्षित करके उनकी खेती की जा रही है। सबसे पहले अलग-अलग फसलों कीे देसी बीज किस्मों का चयन करके उनकी सूची बनाकर निश्चित माप की भूमि का चयन करके परिक्षण के लिये बोया जाता है और उनकी प्राकृतिक जैव विविधता के वातावरण के अनुसार बीज बोने से लेकर फसल कटनेे तक प्रगति रिपोर्ट तैयार की जाती है। उसके बाद बोयी गयी फसल में से जो फसल अपनेे परीक्षण के अनुसार अच्छी साबित होती है, उसे किसानांे को बोने के लिए दिया जाता है। किसान अपने खेतों में चयनित स्थान पर उस फसल को उगाते हैं और उसी प्रकार बीज बोने से लेकर फसल कटनेे तक प्रगति रिपोर्ट तैयार करते हैं।
किसान के पास जिस फसल का अच्छा परिणाम आता है। उस फसल के बीज का संरक्षण करने के लिये परियोजना के अंतर्गत किसानो के लिये गांव क्षेत्र स्तर पर बीज बैंक की स्थापना की जाती है अच्छे बीज का उत्पादन बढ़ाने के लियेे किसान अगले फसल वर्ष में बुवाई के लिये किसानो को बीज वितरण करते है और अगले फसल वर्ष में प्राप्त बीजो का संरक्षण करने के लिये किसानो के लिये समूह के आधार पर बीज बैंक की स्थापना करायी जाती है इस प्रकार के परिक्षण से प्राप्त चयनित बीज को जब किसानो द्वारा बोया जाता है तो इस तरह की फसल में जैव विविधता के प्रति अनुकूल होने के कारण उसमें बीमारियों और कीट पतंगे कम लगते हैं उत्पादन अच्छा होता है और लागत भी कम आती है और यह बीज किसी भी तरह के रसायन से मुक्त होता है जिसके खाने के बाद मनुष्य को स्वास्थ्य संबंधी बीमारियां होने की संभावना कम हो जाती हैै। इस परियोजना के अंतर्गत कृषि विश्वविद्यालय, जोधपुर द्वारा जोधपुर जिले के ओसियां के गोविंदपुरा व मानसागर तथा बाड़मेर के चौहटन के धीरासर व धोंक गांव में कार्य किया जा रहा है।
इस परियोजना के अंतर्गत कृषि विश्वविद्यालय जोधपुर द्वारा जैसलमेर बाड़मेर और जोधपुर जिले में किसानों को के साथ विभिन्न संस्थानों का सहयोग लेकर किसानों के साथ मिलकर जैव विविधता आधारित खेती की जा रही है।
इस परियोजना के अंतर्गत कृषि विश्वविद्यालय जोधपुर द्वारा जैसलमेर बाड़मेर और जोधपुर जिले में किसानों को के साथ विभिन्न संस्थानों का सहयोग लेकर किसानों के साथ मिलकर जैव विविधता आधारित खेती करने के साथ साथ किसानो में कृषि तकनीकी दक्षता को बढ़ाने के लिये समय समय पर विभिन्न कृषि एवं तकनीकी से सम्बन्धित संस्थानों का भ्रमण कराने और प्रशिक्षण भी दिया जाता है
किसानों को इस परियोजना के अंतर्गत मूंग, मोठ, बाजरा, तिल, सरसांे, अश्वगंधा, जीरा, मेहंदी, आदि फसलों के बीज चयन कर दिए गए हैं। इस वर्ष विश्वविद्यालय द्वारा सरसों की स्थानीय किस्मों के कृषि विष्वविद्यालय, जोधपुर वार्षिक प्रतिवेदन 2022 के अंतर्गत सरसांे के 316 किलांे, चनेे के 66 किलो व जौे के 36 किलो बीज तैयार कर किसानांे को वितरित किये गये हैै। किसान कृषि विष्वविद्यालय, जोधपुर से प्राप्त किये गये बीजो को अपने खेतो पर उगाकर इनसे पैदा होने वाले बीज को बीज बैंक में जमा करेंगे फिर वृहद स्तर पर बीज बैंक की स्थापना करके यह बीज किसानो को दिए जाएगे। इस परियोजना के अंतर्गत राजस्थान राज्य के लगभग दो हजार किसानो को लाभान्वित करने के साथ उन्हें जैव विविधता के प्रति जागरूक करने की दिशा में कार्य किया जा रहा है।