” सोच भले ही नयी रखो मगर संस्कार हमेशा पुराने होने चाहिये”!
“ सोच भले ही नयी रखो मगर संस्कार हमेशा पुराने होने चाहिये”!
“राष्ट्रीय युवा दिवस” पर विशेष…
स्वामी विवेकानंद का मानना है, कि किसी भी राष्ट्र का युवा जागरुक और अपने उद्देश्य के प्रति समर्पित हो, तो वह देश किसी भी लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है। युवाओं को सफलता के लिए समर्पण भाव को बढ़ाना होगा, तथा भविष्य की चुनौतियों से निपटने के लिए तैयार रहना होगा, विवेकानंद युवाओं को आध्यात्मिक बल के साथ-साथ शारीरिक बल में वृद्धि करने के लिए भी प्रेरित करते हैं।
युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत के रूप में विवेकानंद के जन्मदिवस,12 जनवरी को भारत में राष्ट्रीय युवा दिवस तथा राष्ट्रीय युवा सप्ताह मनाया जाता है। विवेकानंद जी का मानना है, कि भारत की खोई हुई प्रतिष्ठा तथा सम्मान को शिक्षा द्वारा ही वापस लाया जा सकता है। किसी देश की योग्यता तथा क्षमता में वृद्धि उस देश के नागरिकों के मध्य व्याप्त शिक्षा के स्तर से ही हो सकती है। स्वामी विवेकानंद ने ऐसी शिक्षा पर बल दिया जिसके माध्यम से विद्यार्थी की आत्मोन्नति हो और जो उसके चरित्र निर्माण में सहायक हो सके। साथ ही साथ ऐसी होनी चाहिए जिसमें विद्यार्थी ज्ञान प्राप्ति में आत्मनिर्भर तथा चुनौतियों से निमटने में स्वयं सक्षम हो। विवेकानंद एक मानवतावादी चिंतक थे, उनके अनुसार मनुष्य का जीवन ही एक धर्म है। धर्म ने तो पुस्तकों में है, नहीं धार्मिक सिद्धांतों में, प्रत्येक व्यक्ति अपने ईश्वर का अनुभव स्वयं कर सकता है।
उठो,जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य ना प्राप्त हो जाए। स्वामी विवेकानंद का मानना था कि “मनुष्य का संघर्ष जितना कठिन होगा,उसकी जीत भी उतनी बड़ी होगी। जितना बड़ा आपका लक्ष्य होगा, उतना बड़ा आपका संघर्ष”। स्वामी विवेकानंद के विचार आज के इस आधुनिक युग में हम सभी के लिए प्रेरणा स्रोत है जो हमारे जीवन में आशा की एक नदी के सामान है। उनके द्वारा दिए गए ओजस्वी भाषण तथा प्रेरणादाई उपदेश जीवन में आगे बढ़ाने एवं सफलता हासिल करने में वरदान के सामान है विवेकानंद जी के विचार को पढ़ने मात्र से है युवाओं के अंदर कुछ हासिल करने की उम्मीद पैदा हो जाती है। स्वामी विवेकानंद जी इस बात को हर युवा को आत्मसात करने की जरूरत है कि युवा वर्ग के पास ताकत होती है कि वह अपने आने वाले कल को अच्छा बना सके। परंतु यह पूर्णतया उन पर निर्भर करता है कि वह कितने सकारात्मक लगनशील एवं परिश्रमी है। हर युवा को इसे सीखने की जरूरत है उनका मानना था कि नास्तिक वह नहीं जो भगवान को नहीं मानता बल्कि नास्तिक वह है जो अपने आप में विश्वास नहीं रखता। वे कहते थे कि व्यक्ति को केवल उसकी आत्मा ही सिखा सकती है व्यक्ति की आत्मा उसका सबसे अच्छा गुरु है।
स्वामी विवेकानंद केवल एक महान आत्मा ही नहीं बल्कि एक सोच है, और हम युवाओं को इस सोच को आत्मीकरण करने की आवश्यकता है। उनके विचार और कर्म आज भी युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत है जो उन्हें ऊर्जा प्रदान करते हैं स्वामी जी मानते थे कि अगर युवाओं की ऊर्जा को सही दिशा प्रदान की जाए तो राष्ट्र विकास को नए आयाम तक ले जाया जा सकता है। समस्त युवा वर्ग के लिए स्वामी जी के विचार सदैव एक गुरु की तरह मार्गदर्शन भाव में स्थापित रहेंगे उनके व्यक्तित्व निर्माण में सहायक होंगे और उन्हें महान कार्य करने हेतु प्रेरित उत्साहित करते रहेंगे।
लेखिका :- डॉ. रश्मि जहाँ