साहित्य

नदलेस ने आयोजित की वर्ष की अंतिम स्वतंत्र काव्य पाठ गोष्ठी

नई दिल्ली। नदलेस द्वारा आयोजित 2022 की आखिरी गोष्ठी स्वतंत्र काव्य पाठ पर केंद्रित रही। इसकी अध्यक्षता डा. कुसुम वियोगी ने की और संचालन डा. अमित धर्मसिंह ने किया। गोष्ठी में सामाजिक परिवर्तन, समानता और न्याय की पक्षधर एक से बढ़कर एक कविता प्रस्तुत की गई। ये कविताएं जितनी कथ्य में विविध रहीं उतनी ही शिल्प और विधा में वैविध्य लिए हुए रहीं। तहत और तरन्नुम से पढ़ी गई अधिकांश कविताएं और गजलें खूब पसंद की गई।
काव्यपाठ करने वाले रचनाकार डा. प्रेरणा उबाले, अनिल कुमार गौतम, जोगेंद्र सिंह, तरुण कुमार, उमेश राज़, डा. धीरज वनकर, डा. पूनम तुषामड, डा. घनश्याम दास, सुरेश सौरभ गाजीपुरी, सईद परवेज़, डा. खन्नाप्रसाद अमीन, डा. नविला सत्यादास, भगवान दास सुजात, डा. मनोरमा गौतम, ममता अंबेडकर, डा. अमिता मेहरोलिया, मोहनलाल सोनल मनहंस, पुष्पा विवेक, बिभाष कुमार, आर. पी. सोनकर, इंदु रवि, बंशीधर नाहरवाल, चितरंजन गोप लुकाटी, डा. अनिल गौतम, हरीश पांडल, विनोद सिल्ला, सिद्धार्थ प्रकाश, डा. सुनीता मंजू, योगेंद्र प्रसाद अनिल, तिलक तनौदी स्वच्छंद, एस. एन. प्रसाद, और डा. कुसुम वियोगी रहे। उक्त के अतिरिक्त गोष्ठी में आर. सी. यादव, डा. एल. सी. जैदिया, महिपाल, डा. गीता कृष्णांगी, अफसा मश्याक, सोमी सैन, पल्लवी प्रियदर्शनी, असीर मुलानी, खुशवंत मेहरा, कश्मीर सिंह, मामचंद सागर, लोकेश कुमार, आर. एस. मीणा, राकेश कुमार धनराज, बृजपाल सहज, अंजली दुग्गल, डा. अनिल कुमार, आर. एस. आघात, रविद्र नाथ पिडाला, सीता देवी आदि साहित्यकार उपस्थित रहे।


गोष्ठी का आरंभ डा. प्रेरणा उबाले की कविताओं से हुआ। उन्होंने बाबा साहब अम्बेडकर और बुद्ध से संबंधित कविताएं पढ़ी -“बाबा देख रहे हो ना- देख बाबा जगाई!तुमने जों मनुष्यता, उसके सामने झुक गई निर्दयता, परास्त हुई व्यवस्था, गगन में विस्तीर्ण, निलाई को, आज सलाम करती है दुनिया, सलाम करती है दुनिया l अनिल कुमार गौतम ने संविधान को केंद्र में रखकर “मैं संसद का श्रृंगार संविधान बोल रहा हूं।” शीर्षक से औजपूर्ण कविता का पाठ किया। लोकतंत्र को केंद्र में रखकर सुरेश सौरभ गाजीपुरी ने कविता पढ़ी- “मैं भारत का लोकतंत्र हूँ गणमान्य के हाथों में। सत्ता के लोभी नेताओं के फँसता हूँ बातों में।।” मानता अंबेडकर की कविता की काव्य पंक्तियां कुछ इस प्रकार रहीं “अपने खुश हाल जीवन के लिए रमाबाई ने भी तो देखे थे ख्वाब ना जाने कितने लेकिन। माता रमाबाई के दिल में दलितों की पीड़ा के जाग उठे थे दर्द ना जाने कितने।” डा. धीरज वनकर ने भारत में व्याप्त जातिवाद को अपनी कविता का केंद्र बनाया और पढ़ा -“हम दलित जाति में पैदा हुए, इससे क्या हो गया, समझ में आता नहीं, हम भी भारत देश की संतान हैं। जैसे तुम हो…तुम्हारा और हमारा शरीर है समान!” सिद्धार्थ प्रकाश ने भी ओजस्वी वाणी में काव्यपाठ किया -“संविधान के अनुच्छेदों की रक्षा करने निकला हूँ। संसद हार चुकी है तब मैं कविता पढ़ने निकला हूँ।।” तिलक तनौदी स्वच्छंद ने कविता कुछ यूं पढ़ी -“आतंक अशिक्षा अत्याचार घटाने को। भुखमरी,कुपोषण जड़ से मिटाने को। कोई व्रत प्रार्थना नमाज़ अदा क्यों नहीं। देश-दुनिया से विषमता हटाने को। अब कोई कन्हैया न आएगा, तेरी लाज बचाने नारी। बन ‘फूलन’ टूटो दुष्टों पर, प्रहार करो तुम भारी॥” शायर आर पी सोनकर जी की ग़ज़ल काफी सराही गई। जो कुछ इस प्रकार रही -“जिस मज़हब में मानव को छू लेने भर से पाप लगे/तू उसमें सुख से रह लेगा ,इस ग़फ़लत में मत रहना।”
उमेश राज़ ने दलित अस्मिता और अस्तित्व को चिन्हित करती हुई कविता प्रस्तुत की – “जब-जब तुम मुझे, मिट्टी में दबाने की कोशिश करोगे, मैं हर बार अंकुरित होकर पुष्पित-पल्लवित हो जाऊंगा, क्योंकि मैं बेहया का बीज हूँ। जब-जब तुम हमारे घरो को जलाकर, हमारी हस्ती मिटाने की कोशिश करोगे, मैं हरबार बस्ती बसाकर, तुम्हारे सामने खड़ा हो जाऊंगा, क्योंकि मैं बाबा साहेब का बहुजन मूल निवासी हूँ।” जोगेंद्र सिंह ने दलित जागरण से जुड़ी रचना पढ़ी – “ए बहुजन समाज के जिंदा लोगों, जागो, उठो कि संविधान खतरे में है, संघर्ष, तपस्या, मेहनत और बलिदान बाबा साहब का सम्मान खतरे में है।” तरुण कुमार ने सड़कों पर दहशतों का हुजूम शीर्षक से कविता प्रस्तुत की -” मकान बंद हो जाते हैं, दुकानें बंद हो जाती हैं, उस समय सब घरों में, ताले नजर आते हैं, सब जगह सन्नाटा तैरता है।” डा. पूनम तुषामड ने उमंग शीर्षक से स्त्री चेतना की सशक्त कविता प्रस्तुत की -“मैं पर्वतों के पार जाना चाहती हूं… मैं जिंदगी के गीत गाना। चाहती हूं। ये आसमां जाने क्यों इतना दूर तक है… मैं इसको नाप आना चाहती हूं।” मोहनलाल सोनल मनहंस ने सावित्रीबाई फुले पर कविता पढ़ी -“सावित्रीबाई जन्मजयंती, आओ दिव्य चरण छू ले। सामाजिक बदलाव के अग्रदूत क्रांति जनक ज्योति बा फूले।।” डा. नवीला सत्यादास ने आर्थिक और सामाजिक विसंगति से जुड़ी गंभीर कविता प्रस्तुत की – “जब तक बहता रहता है शिराओं में गर्म लहू, आदमी जिंदा रहता है। इसलिए कैसी भी आग हो दहकते रहो, आदमी को ठण्डा गोश्त मत बनने दो, अन्यथा कुछ भी बाकी नहीं रहता न ज़मीर, न सपना, न संघर्ष, न आदमी, इसलिये मैं आग से डरना नहीं लड़ना चाहता हूँ।” डा. घनश्याम दास ने कविता शीर्षक से कविता कुछ यूं प्रस्तुत की- “कविता मात्र कविता नहीं होती, वह होती है दस्तावेज, विराट जीवन का, वह पीड़ाओं कि कहानी है, दुखों का प्रस्फुटन है, थके हुए का विश्राम स्थल है।” बिभाष कुमार ने इंद्र कुमार मेघवाल से संबंधित सनहा से पहले शीर्षक से भावप्रवण कविता पढ़ी ” दर्ज होने वाले सनहा से पहले, लिख लो रपट एक हमारी, कि मटका था मिट्टी का, मिट्टी थी उर्वर खेत की, कि खेत किसका था, अनुसंधान करो दरोगा जी!” इंदु रवि ने जिज्ञासा शीर्षक से कविता प्रस्तुत की – “नारी कर दो त्याग, स्वयं के समय का, खुद के भावनाओं का, खुद के ख्वाहिशों का, तुम्हें परिवार रूपी वृक्ष के टहनियों को संभालना है…।” चितरंजन गोप लुकाटी ने संगीत शीर्षक से कविता प्रस्तुत की -“बार-बार यह गीतम् , वाद्यम् तथा नृत्यम् का मनमोहक परिवेश सुनाता है–क्रंदन और हाहाकार!” डा. कुसुम वियोगी ने देश के बिगड़ते हालातों पर अभिव्यक्ति दी और रचना के माध्यम से जनमानस को चेताने का काम किया -” तुम सभी मिलकर कोई,युक्ति निकालो !, लड़खड़ाती सभ्यता फिर से संभालो !!, तुम सुलगती आग को काबू करो, या, आंधियों से देश को मेरे बचालो !!
इसी प्रकार अन्य कवियों की कविताएं भी समाज और जीवन के विविध पक्षों से जुड़ी रही। करीब तीन घंटे तक चली काव्य गोष्ठी में सभी कवियों की रचना तल्लीनता से सुनी और सराही गई। अध्यक्ष डा. कुसुम वियोगी ने कहा कि नदलेस ने बहुत कम समय में अपनी पहचान बनाई है। इसने देश भर के प्रतिष्ठित और युवा रचनाकारों को जोड़ने का महत्त्वपूर्ण कार्य किया है। उन्होंने यह भी कहा कि युवाओं को संपादन के साथ साथ मौलिक सृजन की ओर भी ध्यान देने की जरूरत है। नदलेस का केंद्रीय भाव है कि हक से पढ़े हक से लिखे हक से छपे और सबको जोड़े सबसे जुड़े। नदलेस इस ओर निरंतर प्रयासरत है। डा. अमित धर्मसिंह ने नदलेस की वर्ष भर की गतिविधियों पर संक्षिप्त प्रकाश डालते हुए नए साथियों को नदलेस का सदस्य बनने का आह्वान किया और सदस्य बन चुके रचनाकारों को सोच के आगामी अंक के लिए रचनाएं भेजने के लिए कहा। एस. एन. प्रसाद ने कहा कि नदलेस के मंच पर काव्य पाठ करने का चाव प्रत्येक कवि का होता है। देश भर से लोग जुड़ते हैं। नदलेस मौका भी सबको देता है। किसी के भी प्रति उपेक्षा का व्यवहार नहीं करता। नदलेस की लोकप्रियता का यह भी एक बड़ा कारण है। सभी रचनाकारों का धन्यवाद ज्ञापन डा. अमिता मेहरोलिया ने किया।

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