साहित्य

काश हम गाँधी बन पाते.. काश हम गाँधी को समझ पाते..!

हम गाँधी बन पाते

काश हम गाँधी बन पाते!
क्या सच में हम गाँधी बन पाते?
सूट बूट छोड़ धोती कुर्ता अपनाते?
वकालत छोड़ पैदल हो पाते?
परिवार बना संसार बसाते
पत्नी- बच्चों को लेकर बेपरवाह बन जाते?
क्या सच में हम गाँधी बन पाते?

अपने पाँव के काँटे की
पीड़ा तक हम न सह पाते,
तो क्या अपने बेटे-बहु को मरता छोड़
महामारी से लोगों की जान बचाते?
क्या सच में हम गाँधी बन पाते?

सुख त्याग फकीरी अपनाते,
गोली-बम, पत्थरों की वर्षा पर चलते जाते,
हिंसक समाज में अहिंसा के फूल खिलाते?
क्या सच में हम गाँधी बन पाते?

चंपारण, खेड़ा, मील, खिलाफत,
असहयोग, ग्यारह सूत्री मांगें कर,
साबरमती के तट पर
सविनय अवज्ञा की हुंकार भर पाते,
दांडी मार्च में 78 साथी लेकर
नमक-कानून तोड़ने 241 मील
पैदल यात्रा की हिमाकत कर,
सीख सत्याग्रह की बच्चों को दे पाते,

गाँधी- इरविन समझौते पर
विरोध अपनों का झेल
क्या गोलमेज की टेबल में भी
मान भारत का शान से बढ़ाते?
क्या हम गाँधी बन पाते?

सांप्रदायिक पंचाट का विरोध कर
प्राण दाव पर लगाकर
पूना समझौता कर पाते,
क्या सच में हम गाँधी बन पाते?

“भारत भारतीयों के लिए व्यवस्थित रूप में छोड़ो”,
अंग्रेजों से यह कह पाते,
अपने देश में अपनों से-
देश की बालू से कांग्रेस से बड़ा
आंदोलन खड़ा करने की बगावत वाली बात कह पाते?
क्या हम गाँधी बन पाते?

आजादी के जश्न को छोड़
बुझे दीपकों की चिंता- तड़प में
क्या हम घरों से निकल पाते?
क्या हम गाँधी बन पाते?
काश हम गाँधी बन पाते..
काश हम गाँधी को समझ पाते..!!

डॉ. नाज़ परवीन

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