साहित्य

धरती पुत्रः चौ. चरणसिंह और विजयसिंह पथिक

पुण्य तिथि 29-मई पर विशेष

डॉ. राकेश राणा
दोनों महापुरुषों का जीवन किसान संघर्षोंं को समर्पित रहा है। दोनों के जीवन में बहुत कुछ एक जैसा है। कुदरत ने दोनों धरती पुत्रों को जैसे गांव-गरीब और किसान-मजदूर की आवाज बुलन्द करने के लिए ही बनाया था। उसी जीवन मिशन में दोनों ने अपना सर्वस्व होम कर दिया। दोनों ने आजादी के संघर्ष से जिन जीवन-मूल्यों को ग्रहण किया उनके प्रति ईमानदार और प्रतिबद्ध जीवन जीने के साथ-साथ किसान राजनीति को मजबूत करने का काम किया। दोनों धरती-पुत्र बुलन्दशहर की पावन धरा पर किसान परिवार में जन्में। दोनों आजादी के लिए संघर्षरत देश्भक्त परिवारों में पले-बढ़े। दोनों का जीवन लगभग समान तरह के जीवन संघर्षों की उठा-पटक से गुजरता रहा। आजादी के संघर्ष में संलग्न दोनों परिवार एक स्थान से दूसरे स्थान विस्थापित होते रहे। जीवन स्थितियों के चलते भी और आजादी के लिए खुला विद्रोही रवैया अपनाने के कारण भी। जीवन के मुख्य उददेश्यों के केन्द्र में गांव-गरीब और किसान-मजदूर ही बराबर बने रहे। दोनों महान नेताओं की महानता का बड़ा प्रमाण यही है कि जीवन भर खोज-खोजकर दोनों देशभक्त समर्पित युवा नेताओं की फौज खड़ी की। जिन्होनें राष्टृ-निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान निभायी। दोनों महान और दूर-दृष्टा नेताओं ने देश के लिए द्वितीय पंक्ति के नेताओं की कतार खड़ी की। जिन्होनें बहुत हद तक उनके मिशन को आगे बढाया। दोनों किसान नेता रहे जिनके जहन में यह बात साफ थी कि देश की तरक्की का रास्ता खेत-खलिहानों से ही निकलेगा। जब तक गांव-गरीब के बेटे पढ़ लिखकर नीति-निर्माताओं के साथ अपनी भागीदारी नहीं करेगें तक तक असली भारत पीछे ही रहेगा। इसलिए दोनों ने अपने जीवन में शिक्षा को समान महत्व दिया। ग्रामीणों को शिक्षा के जरिए समझ बढ़ाने और राजनीतिक रुप से परिपक्कव बनने के लिए प्रेरित किया।
देश में सामंती जमीदारी प्रथा इन दोनों किसान नेताओं के संघर्षों से ही समाप्त हो सकी। विजयसिंह पथिक जहां सामंतवाद, रियासतों और राजे-रजवाड़ों से सीधे टकराएं। ’चिड़ियन ते बाज़ लडाउं.तब गोविन्दसिंह नाम कहांउ’ की शैली में पथिक जी ने रियासतों को सर के बल खड़ा कर दिया। सत्याग्रह कि जिस शैली को ईजाद किया। वह देशभर में स्वतंतता संघर्ष की मुख्य विधि बन गया। किसान समुदाय में राजाओं द्वारा किए जा रहे शोषण के खिलाफ राजनीति चेतना और मुक्ति की समझ पैदा कर बडें किसान आन्दोलन देशभर में खड़े किए। उस समय चूंकि राजस्थान सर्वाधिक रजवाड़ों का गढ़ था और वहां किसानों का शोषण चर्म पर था। विजयसिंह पथिक ने उसी गढ़ को तोड़ने का दुस्साहसिक निर्णय किया। बिजौलिया, बेगु, बरार और सिरोही के बड़े किसान संघर्षों को मेहनत कर आयोजित किया।
जिनके सुखद परिणाम जल्दी ही आने शुरु हो गए। ठीक उसी तरह अपना महान योगदान चौधरी चरणसिंह उत्तर-प्रदेश में निरन्तर संघर्षों के साथ कर रहे थे। सदियों से ज़मी हुई जमीदारी प्रथा का उन्मूलन उनके अथक प्रयासों से ही संभव हो सका। जब भी उन्हें शक्ति मिली उन्होनें बिना समय गंवाए उसका सदुपयोग किसानों को सशक्त करने में किया। प्रदेश में चकबंदी कानून, जमीदारी उन्मूलन अधिनियम और भूमि-सुधार प्रयास निरन्तर किए। जिसका परिणाम यह निकला कि आज उत्तर-प्रदेश का किसान देश के उन्नत कृषि क्षेत्रों में शुमार होता है। वह जमीदारों के शोषण और उत्पीड़न से मुक्ति पा सका। उत्तर-प्रदेश देश में किसान राजनीति का बड़ा प्रयोग-स्थल चौधरी चरण की पहचान से जुड़कर ही बन सका। दोनों महान किसान नेताओं का जीवन किसानों की दशा सुधारने और उनके जीवन में बदलाव लाने की अनगिनत घटनाओं से गुथा पड़ा है। क्रांतिकारी विजयसिंह पथिक जहां किसानों को राजे-रजवाडे़ और रियासतों से मुक्ति दिलाने का व्यवहारिक कार्यक्रम किसानों के लिए लाए, आन्दोलन खड़े किए जिससे किसानों में चेतना का संचार वास्तविक ढ़ंग से करने में सफल रहे। वहीं चौधरी साहब ने अपनी उच्च शिक्षा और कानूनी समझ का व्यवहारिक उपयोग करते हुए किसानों को शोषण से निकालने की जो सैद्धांतिक समझ देश और समाज में विकसित की वह अतुलनीय योगदान है। जिस ढ़ंग से एक के बाद एक कानून चौधरी चरणसिंह किसानों के पक्ष में लाए उसी का परिणाम है, आज देश का किसान खुली हवा में सांस ले पा रहा है। उन्नति तथा प्रगति के नए-नए मानक गढ़ रहा है। चौधरी साहब की यह विरासत ही किसान राजनीति की असली थाती है।
जिस तरह विजयसिंह पथिक ने देश को शानदार नेता दिए। देशभक्त युवाओं को खोज-खोज कर इसमें शामिल किया। माणिक्य लाल वर्मा, राम नायारण चौधरी, हरिभाई किंकर, नैनूराम कोठा और मदनसिंह करौला जैसे देशभक्त और आजाद भारत के बडे नेता पथिक जी के राजस्थान सेवा संघ की ही देन है। वैसे ही चौधरी चरणसिंह जी भी जानते थे कि ये देश कैसे बनेगा। उन्होनें भी राजनीतिक समझ रखने वाले युवाओं की ढ़ूंढ़-ढूंढ़ कर राजीतिक भर्तियों की। उन्हें सत्ता का महत्व समझाया, प्रेरित किया और सक्रिय राजनीति के लिए प्रशिक्षित। यह लम्बी फेहरिस्त है शरद-मुलायम उसमें जाने-माने नाम है। जिन्होनें आधुनिक भारत की राजनीति को ही बदलकर रख दिया। रामविलास पासवान को बिहार से बिजनौर लाकर चौधरी साहब ने खुद चुनाव लड़वाया। जो भविष्य का एक कददावर दलित नेता साबित हुआ। यह चौधरी चरणसिंह ही कर सकते थे न कि कोई भाई-भतीजावादी संकीर्ण नेता। इसी तरह जब संजय गांधी की मृत्यु के बाद अमेठी सीट पर पुनः चुनाव होना था तो

पूरा विपक्ष राजीव गांधी के खि़लाफ़ लड़ने के नाम पर सहमा हुआ था। तो फिर देश की राजनीति ने अपने चौधरी की तरफ देखा, चौधरी साहब अपने देखे-भाले साहसी नौजवान शरद यादव को जबलपुर से अमेठी लाए और चुनाव मैदान में उतारा। यह देन चौ0 चरणसिंह की इस देश की सियासत को है। उन्होनें अनगिनत ऐसे होनहार युवाओं को राजनीति में आगे बढ़ाया जो इस देश सियासत के तेवर बदलने में अदभुत साबित हुए। आज दोनों महान किसान नेताओं को उनकी पुण्य तिथि 29 मई पर शत् शत् नमन।

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