भारतीय कृषि के 75 वर्ष: आजादी का अमृत महोत्सव

डॉ. बनवारी लाल,मौ. अनस,कमलेश गुर्जर,शीतल बिश्नोई।
स्वतंत्रता के 75 वर्ष बाद भी भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि का एक महत्वपूर्ण स्थान है और यह भारतीय अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण अभिन्न अंग है। भारत की आधी आबादी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर है। निश्चित ही भारत ने लगभग हर क्षेत्र में आश्चर्यजनक तरक्की की है। शिक्षा, तकनीक, परिवहन आदि में भारत का लोहा दुनिया ले रही हैं। सूचना तकनीक में तो हमने चमत्कारिक परिवर्तन किए हैं। लेकिन किसी भी तरह के बदलाव की कल्पना कृषि क्षेत्र के योगदान के बिना नहीं की जा सकती है और भारत दुनिया के उन देशों में से है, जहाँ की अर्थव्यवस्था सदियों से कृषि पर निर्भर है और प्राचीन काल से कृषि संबंधित कार्य करके ही यहाँ की अधिकांश जनता फलती-फूलती रही। कालांतर में खेती-बाड़ी भारत की सांस्कृतिक परम्परा बन गई। मध्यकालीन काल में भूमाप, नक्शा एवं कृषि संबंधी अनेक सुधार हुए। इसके बाद भारत में ब्रिटिश काल का प्रारंभ हुआ और ब्रिटिश शासक अपने साथ पश्चिमी विज्ञान और बुद्धिवादी मानवीय मूल्य भारत लाए। इससे ब्रिटिश शासन के दौरान भारत में दूरगामी असर वाले परिवर्तन हुए, जिनसे देश की अर्थव्यवस्था का नक्शा बदल गया और यहाँ आधुनिकीकरण की प्रक्रिया शुरू हो गई। 1947 के पहले भारतीय कृषि की स्थिति वर्तमान से भिन्न थी और पूरी तरह ब्रिटिश अर्थव्यवस्था के फायदे के लिए की जाती थी और भारतीय किसान को कोई लाभ नहीं होता था। किसान पहले जमींदार के खेत में खेती करते थे और प्राप्त उपज का अधिकांश हिस्सा ब्रिटिश सरकार और जमींदार को उच्च कर के रूप में देना पड़ता था।
1947 में जब भारत स्वतंत्र हुआ, तब कृषि उत्पादकता बहुत कम (लगभग 50 मिलियन टन) थी। 1950 से पहले, भारत में कृषि की विकास-दर सिर्फ 0.5 प्रतिशत वार्षिक से भी कम थी, आजादी के बाद नवगठित भारत सरकार ने ब्रिटिश सरकार द्वारा लगाए गए सभी करों को हटा दिया और किसानों को उनके अपने खेत में कार्य करने की स्वतंत्रता प्रदान की। प्रारंभ में कृषि मुख्य रूप से बारिश निर्भर होती थी और मुख्य रूप से श्रम शक्ति और पारंपरिक उपकरणों का उपयोग करके जीवन निर्वाह के रूप में की जा रही थी। भारत सरकार ने कृषि स्थिति को सुधारने के लिए एक नई प्रकार की सिंचाई प्रणाली विकसित करके नए उर्वरक, नए कीटनाशक और नई मशीनों का आविष्कार किया गया। जिसके परिणामस्वरूप आजादी के बाद के वर्षों में कृषि उत्पादन 2.6 प्रतिशत वार्षिक की अभूतपूर्व दर से बढ़ा। हालाँकि जनसंख्या में भारी वृद्धि और बढ़ती हुई प्रति व्यक्ति आय को देखते हुए कृषि की विकास दर आवश्यकता से काफी कम थी, जिसमें सुधार के लिए चरणबद्ध रूप से कृषि के विकास की अलग-अलग नीतियां अपनाई र्गईं। सामुदायिक विकास कार्यक्रमों के जरिए विकास का फायदा देश भर में पहुँचाने का प्रयास किया गया।
समाज की बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू द्वारा सन् 1951 में भारत की पहली पंचवर्षीय योजना की शुरूआत की गई जो मुख्यरूप से कृषि, मूल्य स्थिरता, बिजली और परिवहन पर केंद्रित थी। यह हैरोड-डोमर मॉडल पर आधारित था जिसने बचत और निवेश में वृद्धि के माध्यम से भारत की आर्थिक वृद्धि को गति प्रदान की गई। पंचवर्षीय योजना ने अर्थव्यवस्था को 3.6 प्रतिशत की वार्षिक दर प्रदान की और यह 2.1 प्रतिशत के लक्ष्य को भी पार कर गई। दूसरी पंचवर्षीय योजना ने तेजी से औद्योगिकीकरण पर ध्यान केंद्रित किया और इस योजना ने एक तरह से आत्मनिर्भरता की नींव रखी। भारत में कृषि में 1960 के दशक के मध्य तक पारंपरिक बीजों का प्रयोग किया जाता था जिनकी उपज अपेक्षाकृत कम थी। उन्हें सिंचाई की कम आवश्यकता पड़ती थी। किसान उर्वरकों के रूप में गाय के गोबर आदि का प्रयोग करते थे। भारत के दूसरे प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री को चीन के साथ युद्ध के बाद भोजन की कमी और बढ़ती कीमत के समाधान के लिए भारत में कृषि पर ध्यान केंद्रित करने और निजी उद्यमों व विदेशी निवेशों के लिए अनुमति देने की आवश्यकता थी। इसलिए हरित क्रांति, श्वेत क्रांति व अन्य कृषि एवं ग्रामीण भारत के कल्याण से संबंधित योजनाओं को प्रोत्साहन दिया गया। इस अवधि में कृषि उत्पादन 3.1 प्रतिशत वार्षिक की औसत दर से बढ़ा। इसी तरह कृषि-भूमि में 58 प्रतिशत वृद्धि हुई और कृषि पदार्थों की पैदावार में 42 प्रतिशत बढ़ोत्तरी हुई। वर्ष 1960-61 से आगे के दूसरे दौर में सघन क्षेत्र विकास कार्यक्रमों के जरिए देश के चुने हुए क्षेत्रों में खेती का आधुनिक साज-सामान और सुधरी हुई विधियाँ अपनाकर उपज बढ़ाने की ओर विशेष ध्यान दिया गया।
हरित क्रांति- भारत में हरित क्रांति की शुरुआत सन 1966-67 से हुई. हरित क्रांति प्रारम्भ करने का श्रेय नोबल पुरस्कार विजेता प्रोफेसर नारमन बोरलॉग को जाता है. और भारत में हरित क्रांति की शुरूआत की थी कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन ने इस क्रांति के जरिए अच्छे बीजों और रासायनिक खादों का इस्तेमाल कर उत्पादन बढ़ाना था। 1960-1961 में रासायनिक उर्वरकों का उपयोग प्रति हेक्टेअर दो किलोग्राम होता था, जो 2008-2009 में बढ़कर 128.6 किग्रा प्रति हेक्टेअर हो गया। देश में अधिक उपज देने वाले उन्नतशील बीजों का प्रयोग बढ़ा तथा बीजों की नई-नई किस्मों की खोज की गई़। 1951-1952 में देश में खाद्यान्नों का कुल उत्पादन 5.09 करोड़ टन था, जो क्रमशः बढ़कर 2008-2009 में बढ़कर 23.38 करोड़ टन हो गया। वर्ष 1950-1951 में खाद्यान्नों का उत्पादन 522 किग्रा प्रति हेक्टेअर था, जो बढ़कर 008-2009 में 1,893 किग्रा प्रति हेक्टेअर हो गया।
श्वेत क्रांति- दूध उत्पादन में भारत विश्व में सबसे आगे है। श्वेत या सफेद क्रांति को ऑपरेशन फ्लड के रूप में जाना जाता है। डॉ॰ वर्गीज़ कुरियन को फादर ऑफ़ द वाइट रेवोलुशन माना जाता है। उन्हीं की बदौलत भारत दूध के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन सका। सन 1970 में राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड द्वारा शुरु की गई इस योजना ने भारत को विश्व मे दूध का सबसे बड़ा उत्पादक देश बना दिया ऑपरेशन फ्लड कार्यक्रम 1970 में शुरू हुआ था। प्रथम चरण के दौरान ऑपरेशन फ्लड ने देश के 18 प्रमुख दुग्ध शेड़ों को देश के चार मुख्य महानगरों दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नई के उपभोक्ताओं के साथ जोड़ा और दूध का पाउडर बनाकर इसकी शुरूआत की। धीरे-धीरे यह योजना 18 से बढ़कर 136 हो गई। दूध 290 नगरों के बाजारों में उपलब्ध होने लगा। 1985 के अंत तक 43,000 आत्मनिर्भर ग्राम दूध सहकारी समितियों की व्यवस्था बन चुकी थी। घरेलू पाउडर उत्पादन जो योजना के पूर्व वर्ष में 22,000 टन था, वह 1989 में बढ़ कर 1,40,000 टन हो गया। अर्थव्यवस्था में 4 फीसदी हिस्सेदारी के साथ डेयरी क्षेत्र सबसे बड़ा इकलौता कृषि कॉमेडिटी है, लगभग 190 मिलियन मीट्रिक टन उत्पादन के साथ भारत विश्व स्तर पर दूध का सबसे बड़ा उत्पादक है।
कृषि शिक्षा एवं अनुसंधान को बढ़ावा:-
भारत का पहला कृषि विश्वविद्यालय सन् 1903 में ब्रिटिश शासन काल में बिहार राज्य के समस्तीपुर जनपद में पूसा में स्थापित किया गया। इसे ब्रिटिश काल में इम्पीरियल कृषि अनुसंधान संस्थान के नाम से जाना जाता था। बिहार में वर्ष 1934 में भयंकर भूकंप आने के बाद यह संस्थान बुरी तरह तबाह हो गया जिसके पश्चात् इसे नई दिल्ली स्थानान्तरित कर दिया गया। आजादी के बाद में यह संस्थान भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान बन गया। कृषि शिक्षा को देशभर में फैलाने के लिए कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग की स्थापना दिसम्बर, 1973 में की गई थी। वर्तमान समय में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् के द्वारा कृषि क्षेत्र में नई तकनीक और सकारात्मक विकास को आसानी से कृषक समुदाय तक पहंुचाने के उद्देश्य से संपूर्ण भारतवर्ष में कृषि विश्वविद्यालय, कृषि विज्ञान केन्द्र, अनुसंधान केन्द्र आदि की स्थापना की गई है जिनके माध्यम से समय-समय पर कृषि क्षेत्र में नई तकनीक, नवीन ज्ञान का सर्जन किया जाता है और किसानों, युवाओं, महिलाओं को उनकी भौगोलिक परिस्थिति के अनुसार प्रशिक्षित किया जाता है।
कृषि मशीनरी– किसान पहले बैलों से खेत जोतकर किसान खून-पसीना बहाकर अपने परिवार के पेट भरने लायक ही अनाज पैदा कर पाता था, कृषि में मशीनीकरण की शुरूआत के बाद आज वही किसान उतनी ही जमीन में मशीनों का इस्तेमाल कर न केवल पूरे साल खेत से पैदावार ले रहा है, बल्कि उस मशीन के आधार पर अतिरिक्त आमदनी भी कर रहा है। कृषि मशीनरियों में ट्रैक्टर मशीनों में सबसे पहले आता है और किसानों द्वारा खेत पर सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है। हरित क्रांति में ट्रैक्टर की भूमिका भी प्रमुख रही है। किसान ट्रैक्टर से ही जमीन को जोतकर तैयार करना, बीज डालना, पौध लगाना, फसल लगाना, फसल काटना, सिंचाई करना, थ्रेशिंग करना, पशुओं के लिए चारा काटना आदि काम कर रहा है। इन सब के बाद जब फसल कट कर तैयार हो जाती है तो उसे मंडी भी ट्रैक्टर के द्वारा ही पहुंचाया जाता है। और अब तो कृषि की इतनी मशीनें आ चुकी हैं कि इसका एक अलग ही बाजार खड़ा हो गया है। वर्तमान समय में भारत में लगभग 45 प्रतिशत कृषि मशीनरी का प्रयोग होता है। जिसे सरकार द्वारा कस्टमर हाईरिंग सेंटर और कृषि मशीनीकरण की अन्य योजनाआंे के माध्यम से बढ़ावा दिया जा रहा है।
सहकारिता– दुनिया का कोई ऐसा देश नहीं है, जिसका सहकारिता आंदोलन भारत जितना मज़बूत होगा, श्वेत क्रांति हो या हरित क्रांति सभी की सफलता सहकारिता के माध्यम से ही संभव हो पाई है। सहकारिता के चलते देश आर्थिक रूप से समृद्ध हुआ है और बेरोजगारी भी कम हुई है। भारत में लगभग पांच लाख सहकारी समितियां हैं। देश की लगभग 50 फ़ीसदी चीनी उत्पादन में सहकारी समितियों का योगदान है। दूध के क्षेत्र में खेड़ा सहकारी दु्ग्ध उत्पादन संघ (अमूल) की सफलता किसी से छिपी नहीं है। रासायनिक उर्वरक जिनके बल पर भारत ने हरित क्रांति की, उसका सबसे बड़ा उत्पादक इफको या इंडियन फार्मर्स फर्टिलाइजर कोआपरेटिव लिमिटेड विश्व का सबसे बड़ा उर्वरक सहकारिता संस्था है। इफको में 40 हजार सहकारिताएं हैं। भारत के ज्यादातर जनपदों में जिला सहकारी बैंक और कृषि सहकारी समितियों के माध्यम से किसानों की हर जिले में सस्ती दरों पर खाद, बीज, कृषि उत्पाद, ऋण, ब्याज में छूट व विभिन्न प्रकार के किसानों से जुड़े प्रशिक्षण देकर किसानों को लाभान्वित किया जा रहा है।
जागरूक किसान– कृषि क्षेत्र में अच्छे उत्पादन के लिए नवीन तकनीकी की आवश्यकता होती है और उन लोगों की भी आवश्यकता होती है, जो वैज्ञानिकों द्वारा आविष्कार की गई तकनीक को अपनाकर अपने कृषि कार्यों में प्रयोग कर सके। शिक्षा, संसाधन, मशीनरी आदि होने के बाद भी अगर किसानों में कुछ नया करने की ललक ना हो तो सब विकास और अनुसंधान व्यर्थ है। हमारे जागरूक किसान भाइयों के द्वारा नवीन तकनीकी अपनाकर कृषि क्षेत्र का विकास हो रहा है किसानों ने अपने अनुभव के आधार पर वैज्ञानिकों की सोच को प्रभावित करने का कार्य किया है। किसानों की वैज्ञानिक प्रगतिशील सोच के कारण कृषि वैज्ञानिकों ने उनकी बात को स्वीकार किया है। जागरूक किसानों द्वारा अपनी नई और प्रगतिशील सोच के कारण युवाओं को भी कृषि की ओर आकर्षित किया जा रहा है। जिसके बाद कृषि को नुकसान और पारंपरिक पुराना व्यवसाय मानने वाला युवा कृषि को आधुनिक व्यवसाय की तरह कर रहा है।
वर्तमान परिदृश्य में:
भारत आम, अदरक, जूट, केला, अरण्डी, कुसुम तेल बीज पपीता, बाजरा का विश्व में सबसे बड़ा उत्पादक है।
ऽ भारत विश्व में सर्वाधिक पशुधन आबादी के साथ दूध का सबसे बड़ा उत्पादक है।
ऽ भारत विश्वभर में दलहन का सबसे बड़ा उत्पादक है।
ऽ भारत विश्व का मसालों का सबसे बड़ा उत्पादक, उपभोक्ता, निर्यातक देश है।
ऽ भारत में विश्व के सबसे ज्यादा किसान जैविक खेती करते हैं।
ऽ भारत गेहंू, प्याज, आलू, लहसून, चावल, बिनौला, रेशम, चाय में चीन के बाद विश्व में दूसरा स्थान रखता है।
ऽ मूंगफली, सब्जियां और मछली उत्पादन में भारत विश्व में द्वितीय स्थान रखता है।
ऽ भारत गन्ने में ब्राजील के बाद दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है।
ऽ संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद विश्व में सबसे ज्यादा कृषि योग्य भूमि भारत के पास है।
ऽ भारत विभिन्न तरह के उर्वरकों का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता व तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक है।
ऽ भारत अंडा उत्पादन में विश्व में तीसरंे तथा चिकन मांस उत्पादन में पांचवे स्थान पर है।
ऽ भारत में कपास की खेती विश्व में सबसे बड़े क्षेत्रफल पर की जाती है और प्रति हेक्टेयर उत्पादन में भारत का चीन के बाद दूसरा स्थान हैं।
ऽ कृषि उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) के अनुसार कृषि और प्रसंस्कृत खाद उत्पादों का निर्यातं 2020-21 में 20.67 बिलियन डॉलर तक पहंुच गया है।
ऽ वर्तमान समय में भारत में कुल कृषि मशीनीकरण लगभग 40-45 प्रतिशत है। यह विकसित देशों अमेरिका, ब्राजील और चीन में यह आंकड़ा क्रमशः 95, 75, 57 प्रतिशत है।
ऽ भारत दुनिया में सबसे गतिशील जेनेरिक कीटनाशक निर्माताओं में से एक है। भारत की लगभग 32 कंपनियों द्वारा 45 से अधिक तकनीकी ग्रेड कीटनाशकों का निर्माण किया जा रहा है और भारत संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान और चीन के बाद कृषि रसायन का चौथा सबसे बड़ा उत्पादक देश है।
ऽ भारत में कृषि का सकल घरेलू उत्पादन जो आजादी के बाद के वर्षों में 25 बिलियन डॉलर था, वह भारत सरकार की जुलाई, 2020 की रिपोर्ट के अनुसार 619 बिलियन डॉलर हो चुका है।
ऽ कोरोना काल में जब सभी सेक्टर धाराशाही हो गए और भारत का सकल घरेलू उत्पाद 0 से 23.99 प्रतिशत ऋणात्मक दर्ज किया गया तो सिर्फ कृषि क्षेत्र ही ऐसा क्षेत्र था जिसमें वृद्धि दर्ज की गई और कृषि की बंपर पैदावार हुई और सरकार ने विभिन्न स्कीम व अनाज, चावल का वितरण किया।
ऽ कोरोना काल में कृषि उत्पादों का निर्यात 17.34 प्रतिशत बढ़कर 41.25 पहुंचा।
कृषि जनगणना के अनुसार भारत में औसत जोत का आकार 1.08 हेक्टेयर है तथा भारत की कुल आबादी में से 54.6 प्रतिशत आबादी 328.7 मिलियन हेक्टेयर भौगोलिक क्षेत्रफल पर कृषि और उससे संबंधित क्षेत्र में कार्य करती है। भारत के कुल भूमि क्षेत्रफल में लगभग 51 प्रतिशत पर कृषि, 4 प्रतिशत पर चारागाह और 21 प्रतिशत वन संपदा और 24 फीसदी बंजर और बिना उपयोग की है। भारत की कुल कृषि भूमि में से 35 प्रतिशत सिंचित भूमि है। राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) के अनुसार देश में 10.07 करोड़ परिवार खेती पर निर्भर है और भारत की जी.डी.पी. में कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी 19.9 प्रतिशत है। कृषि देश की 130 करोड़ जनसंख्या से अधिक को भोजन और 36 करोड़ से अधिक पशुओं को चारा प्रदान करती है। कृषि उत्पादन में भारत दूसरे स्थान पर है। कृषि का कुल राष्ट्रीय आय में हिस्सा 1950 में 50 प्रतिशत से बढ़कर 2021-22 में 70 प्रतिशत हो गया है। आज भी 60 प्रतिशत से अधिक श्रमिक कृषि में लगा हुआ है।
स्वतंत्रता से वर्तमान समय तक कृषि वैज्ञानिकों और किसानों नें कृषि क्षेत्र में बड़ी सफलता हासिल की है। भूमि उपयोग पैटर्न, फसल पैटर्न, इनपुट उपयोग पैटर्न, उत्पादन वृद्धि, खाद्यान्न की शुद्ध उपलब्धता और विभिन्न अन्य में बड़े बदलाव हुए हैं। कृषि क्षेत्र में कृषि वैज्ञानिकों द्वारा किसानों के लिए कृषि तकनीकों और कृषि प्रणालियां विकसित कीं, जिनमें रोग और कीट प्रबंधन, मिट्टी रहित कृषि, जलवायु-लचीला खेती, सूखा और अन्य पर्यावरणीय स्थिति प्रतिरोधी किस्में, संकर बीज, पानी पंप, स्थिर उत्पादन दर, उचित बुनियादी ढाँचा आदि प्रमुख है, जो कृषि और किसानों के विकास में काफी सहायक हुई है। वर्तमान समय में कुछ प्रमुख प्रौद्योगिकियां, जिन्हें कृषि वैज्ञानिकों द्वारा किसानों के लिए विकसित किया जा रहा है, उनमें शामिल हैं फसल स्वचालन, स्वायत्त ट्रैक्टर, सीडिंग और ड्रोन। फार्म ऑटोमेशन तकनीक बढ़ती वैश्विक आबादी, कृषि श्रमिकों की कमी और उपभोक्ता की बदलती पसंद जैसे प्रमुख मुद्दों का समाधान करती है। नई तकनीकी ने कृषि के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। हल के निर्माण से लेकर ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम संचालित सटीक कृषि उपकरण तक, मनुष्यों ने खेती को अधिक कुशल बनाने और अधिक भोजन उगाने के नए तरीके विकसित किए हैं। स्मार्ट खेती और कृषि प्रौद्योगिकी, मिट्टी परीक्षण-आधारित निर्णयों के साथ सटीक खेती, खाद्य गुणवत्ता और सुरक्षा में वृद्धि के लिए नैनो-प्रौद्योगिकी का उपयोग, इनपुट का कुशल उपयोग भविष्य में करने के लिए योजनाएं बनाई जा रही हैं। कृषि में नैनो-सामग्री रसायनिक खाद के खर्च को कम करेगी, उर्वरक में पोषक तत्वों की हानि को कम करेगी और कीट और पोषक तत्व प्रबंधन के माध्यम से उपज बढ़ाने के लिए उपयोग की जाएगी।वर्तमान समय में हम किसी भी क्षेत्र में आगे बढ़ रहे हैं तो इसका श्रेय हमारे किसानों और कृषि वैज्ञानिकों को जाता है। कृषि के क्षेत्र में आज भारत न केवल 130 करोड़ लोगों का पेट भर रहा है, बल्कि विदेशों में भी विभिन्न अनाजों की आपूर्ति कर रहा है।
संकलन: मौहम्मद अनस बघरा