डा. विष्णु सक्सेना की कविता को मिला पहला स्थान


अहमद हुसैन
सरधना-मेरठ। देश के सुप्रसिद्ध श्रृंगार के कवि डा. विष्णु सक्सेना की उपलब्धियों के खाते में एक और स्वर्णिम पन्ना जुड़ गया है।
आकाशवाणी के अधिकारियों की समिति ने उनकी कविता को हिन्दी में पहले स्थान के लिए चयनित किया है। इस चयनित कविता को देश भर के 400 आकाशवाणी केन्द्रों से गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर एक साथ प्रसारित किया गया। गैर हिन्दी भाषी क्षेत्रों के श्रोताओं के लिए इस कविता का 22 भाषाओं में अनुवाद भी प्रसारित किया गया है।
यश भारती पुरस्कार से सम्मानित डा. विष्णु सक्सेना की बाल कविता को महाराष्ट्र बोर्ड द्वारा कक्षा सात के पाठ्यक्रम में शामिल करने का गौरव पहले से ही प्राप्त है। देश भर कवि सम्मेलनों में अपनी श्रृंगार की रचनाओं और उम्दा प्रस्तुति के माध्यम से श्रोताओं के दिलों पर राज करने वाले डा. विष्णु सक्सेना के लिए गणतंेत्र दिवस की पूर्व संध्या एक और बड़ी उपलब्धि लेकर आई है। जिसे अपने सोशल मीडिया एकाउंट्स के माध्यम से शेयर करते हुए उन्होंने कहा कि हम आज बहुत प्रसन्न भी हैं और गौरवान्वित भी, क्यों कि सर्व भाषा कवि सम्मेलन 2022 हेतु हिंदी भाषा की कविता में हमारे एक गीत न सुलगती रात न दिन आंसुओं से भीगते को प्रथम स्थान पर चयनित किया गया है। ये कविता गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर देश के 400 आकाशवाणी केंद्रों पर एक साथ प्रसारित होगी। इस कविता का 22 भाषाओं में अनुवाद भी प्रसारित होगा। उनकी इस उपलब्धि पर देश-विदेश से बधाईया मिलने का सिलसिला शुरू हो गया है। जाने-माने हास्य व्यंग्य के कवि अरुण जैमिनी, डा. प्रवीण शुक्ला, चिराग जैन, गुलवीर राणा, रामगोपाल भारतीय, सुमनेश सुमन समेत अनेक कवियों और साहित्य प्रेमियों ने उन्हें बधाई संदेश प्रेषित किए हैं।
प्रथम स्थान के लिए चयनित और आकाशवाणी के 400 केन्द्रों से प्रसारित हुआ गीत
ना सुलगती रात- ना दिन आंसुओं से भीगते।
प्यार के बदले अगर तुम प्यार देना सीखते।।
हमने जब भी गुनगुनायी
नेह की आसावरी,
खुद-ब-खुद बहने लगी
तब शब्द की गोदावरी,
इक सुखद स्पर्श पाकर
गीत अनगिन हो गए,
देह तो जगती रही
मन प्राण दोनों सो गए,
मुंह छिपाते ना उजाले-ना अंधेरे रीझते।
प्यार के बदले अगर तुम प्यार देना सीखते।।
गोद में सर रख के मेरा
तुम जो देते थपकियाँ,
आंसुओं को पोंछ देते
बंद करते सिसकियां,
धडकनों, सांसों, निगाहों ने
निभाया हर धरम
पर तुम्हारे एक ही जुमले
ने तोड़े सब भरम,
फूल मुंह ना फेरते- कांटे न दामन खींचते।
प्यार के बदले अगर तुम प्यार देना सीखते।।
एक तितली फूल के
कहती है जब कुछ कान में,
तो समझ लो रुत
बसंती सी है बियाबान में,
तुम भी छू लेते जो पत्थर
तो ये बनता देवता,
माफ़ कर देता तुम्हारी
अगली पिछली सब खता,
ज़ख्म जो अन्दर छिपे-
गर वो भी तुमको दीखते।
प्यार के बदले अगर तुम
प्यार देना सीखते।
अहमद हुसैन
True story