साहित्य

मुज़फ्फरनगर में ‘इंतिख़ाब-9’ का इज़रा, क़मर अदबी सोसाइटी के मुशायरे में गूंजे जज़्बात और अशआर

UP क़े मुज़फ्फरनगर मे क़मर अदबी सोसाइटी क़े जेरे एहतमाम एक शानदार मुशायरे का आयोजन किया गया। जिसमें ‘इंतिख़ाब-9’ किताब का इज़रा भी किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ शायर शमीम किरतपुरी ने की, संचालन अल्ताफ मशल ने किया, और सोसाइटी के सचिव अब्दुल हक़ सहर ने सभी शायरों का परिचय कराया।

मुंबई से आए शायर हुक्मचंद कोठारी असगर और ताबिश रामपुरी को उनके साहित्यिक योगदान के लिए सपास नामा, रिदा-ए-क़मर, निशान-ए-क़मर, और मुजफ्फर अहमद मुजफ्फर पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

विशेष अतिथियों में नूर सुल्तान पुरी, अमीर नहटोरी, फरमान जहीर, और खुर्रम सुल्तान सहारनपुरी शामिल रहे। मुशायरे में देशभर के कई नामचीन शायरों ने शिरकत की और अपने अशआर से महफ़िल को रौशन किया।

✒️ महफ़िल में पेश किए गए अशआर:

शमीम किरतपुरी
“ऐ मेरे दोस्त बता क्या ये मुनासिब होगा,
तू मेरे सामने ग़ैरों से मुखातिब होगा।”

खुर्शीद हैदर
“हिज़्र में तेरे भटकता रहा संस्था सहरा,
इस सफ़र में कहीं आराम किया हो तो बता।”_

नूर सुल्तान पुरी
“पसंद आती है किसको क़ैद, सब ग़मगीन बैठे हैं,
मैं पिंजरे के परिंदों को उड़ा कर देख लेता हूँ।”_

– अमीर नहटोरी
“बड़े ख़लूस से हम तुम मिले थे जहां,
उदास उदास वो राहें सलाम कहती हैं।”_

ताबिश रामपुरी
“ताबिश तुझे फ़नकार तो कहता है ज़माना,
इस फ़न से मगर मां दवा तक नहीं आती।”_

तहसीन क़मर असारवी
“क्या ख़बर थी सामने ऐसा भी मंज़र आएगा,
आईना ही हाथ में ख़ुद लेके पत्थर आएगा।”_

हुक्मचंद कोठारी असगर
“प्यास शिद्दत की जला देती है कितनी रूहें,
सोचता कब है समंदर में नहाने वाला।”_

“अब ज़ुल्म की तारीख़ भला कौन लिखेगा,
जब ज़ुल्म को लिखने में क़दम टूट रहे हैं।”_

कार्यक्रम के अंत में संयोजक नाहीद समर कविश और सचिव अब्दुल हक़ सहर ने सभी मेहमानों और श्रोताओं का आभार व्यक्त किया।

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