साहित्य

पाठकों की नजर हो गया साहित्यकार डॉ. पुष्पलता का नया काव्य संग्रह “वामायण”

मुजफ्फरनगर। साहित्यकार डॉ. पुष्पलता का नया काव्य संग्रह वामायण पाठकों की नजर हो गया है। डॉ. पुष्पलता का वामायण नए तेवर का काव्य संग्रह है। साहित्यकारों की ही नजर में वामायण अतुकांत है। लेकिन बहुत से तीर लिए हुए है। रचना तो वेद और अन्य धार्मिक ग्रंथ की तरह ही प्रारंभ होती है। एक शक्तिमान कितना कमजोर होता है, यह इस रचना में निहित है।

मुजफ्फरनगर की सिविल लाइन निवासी डॉ. पुष्पलता की इस कृति पर वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. रमाशंकर चंचल कहते हैं कि भाषा का चमत्कार लिए कुछ लोग अपना विद्वान होने का गरूर लिए लिख रहे हैं। लेकिन, वामायण में ऐसा कुछ नहीं है। बस ऐसे समय जब सचमुच इस प्रकार की कविता पढ़ने को मिल जाती हैं तो मन प्रसन्न हो जाता हैं। उनका मानना है कि डॉ पुष्पलता की यह अद्भुत कृति अपनी रचनाओं से सचमुच बेहद प्रभावित करती है। जिसे हर कोई पढ़ेगा वही और को भी पढ़ने को प्रेरित करेगा यह एक सत्य है।

46 रचनाओं का संग्रह है वामायण

साहित्यकार डॉ रमाशंकर ने बताया कि 46 रचनाओं वाले इस काव्य संग्रह में डा.पुष्पलता आसपास घटती जिंदगी और घटनाओं को पिरोती हैं। बलात्कार की घटनाएं झकझोरती हैं। छद्म प्रेम की पीड़ा बोलती है, घर चलाने के लिए क्या दिया जाता है? यह दर्द भी उकेरती हैं तो वह यह सवाल भी करती हैं….क्यों आते हो लौटकर।

मन के उदगार पिरोए काव्य संग्रह में: डॉ. पुष्पलता

वामायण की लेखिका डॉ पुष्पलता कहती है कि काव्य संग्रह में सिर्फ मन के उदगार है। उन्होंने कहा कि आसपास के सामाजिक, राजनीतिक परिदृश्य से जो मन में चित्र उभरता है। उसे ही वह साहित्यिक रूप से कागज पर उकेर दिया है।

प्रभावित करती रही हैं अन्य रचनाएं

डॉ. पुष्पलता की मुक्त छंद व छंद मुक्त कविताओं में भी गीत व छंद जैसा प्रवाह रहता है। डॉ.पुष्पलता के ‘एक और वैदेही’ और ‘एक और अहिल्या’ जैसे प्रबंध काव्यों में भी इनकी इस बहती हुई शैली के साथ विषय के प्रति जागरूक व सूक्ष्म दृष्टि रहती है। उनके संग्रह ‘मन का चांद’ में सौंदयार्नुभूति और प्रेम की विविध छवियां हैं, ‘अरे बाबुल काहे को मारे’ कविता भ्रूण हत्या संबंधी बड़ी ही कारुणामयी कविता है। डॉ. पुष्पलता के ‘परत पर परत’ में अनेक विचारोत्तेजक विचार लेख हैं। स्व कुंवर बेचैन ने भी कहा था कि डॉ. पुष्पलता ने साहित्य की अनेक विधाओं में उच्च स्तर का लेखन करके हिंदी भाषा साहित्य के प्रचार प्रसार में महत्वपूर्ण कार्य किया।

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