साहित्य
तुम निष्ठुर हो सकते हो,पाषाण की तरह अपितु निर्मम नहीं…!

तुम निष्ठुर हो सकते हो
पाषाण की तरह अपितु
निर्मम नहीं…!
तुम्हारी हृदय वेदनाओं ने
पुकारा तो होगा प्रेम को
स्वंय से दूर जाते समय?
डाली होंगी बेड़ियाँ
बढ़कर तुमनें भी प्रेम प्रतिज्ञा की
निश्चित ही…!
रुन्धे हुए गले से
चीखने का प्रयत्न तो बहुत
किया होगा तुमनें भी?
गूंजी होंगी चारों दिशाओं में
तुम्हारी वेदनाओं की कराह
प्रिय को रोक लेने के प्रयासों में..!
तुम निष्ठुर हो सकते हो
अपितु निमर्म नहीं।।
डॉ. नाज़ परवीन