साहित्य

मुझको न पाओगे…

मुझको न पाओगे…

अबकी बार गये जो मुड़कर
फिर लौट के जब आओगे…
पाओगे तुम और बहुत कुछ
पर मुझको फिर न पाओगे…

सपनो के टूटे टूकडे होगे
कुछ तिरछे और नुकीले से
रखना पांव संभलकर देखो
वरना जख्मी हो जाओगे…

पाओगे तुम और बहुत कुछ
पर मुझको फिर न पाओगे…

धूल मिलेगी शायद तुमको
कुछ पिसे हुए अरमानो की
वो गर्द उड़ेगी आँखो मे जब
नजरो को धूमिल पाओगे….

पाओगे तुम और बहुत कुछ
बस मुझको फिर न पाओगे…

सूने आँगन मे कीचड़ होगा
नाउम्मीदी और एककीपन का
लाख समेटोगे तुम दामन
पर छींटों से बच ना पाओगे…

पाओगे तुम और बहुत कुछ
बस मुझको फिर न पाओगे…

जर्जर होगी विश्वास की छत
आशंकाएं टपक रही होगी
कितने ही निरुत्तर प्रश्नों से
तन -मन को भीगा पाओगे….

पाओगे तुम और बहुत कुछ
बस मुझको फिर न पाओगे…

कुछ टुकड़े होगे प्रेमपाश के
कुछ भूली बिसरी स्मृतियां
गुजरना उनसे नजर बचाकर
वरना वही सिमट रह जाओगे…

पाओगे तुम और बहुत कुछ
बस मुझको ही न पाओगे….

लंबी.. ठंडी ..आहें भरती
होंगी शुष्क वही दीवारें
जिनके सीने मे लिखा हुआ
अपना नाम अभी भी पाओगे….

पाओगे तुम और बहुत कुछ
बस मुझको फिर न पाओगे….

उग आई होंगी कितनी झाड़े
बेबसी और लाचारी की
“लेकिन”और “मगर” …के खंजर
से भी उनको काट न पाओगे…

पाओगे तुम और बहुत कुछ
बस इक मुझको न पाओगे…
हां तुम मुझको फिर न पाओगे…

सोनिया सिंह….

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