साहित्य
तेरी आंखों की झील में डूबना चाहता हूं..

तेरी आंखों की झील में डूबना चाहता हूं..
सारा समुंद्र तैरकर पार करना चाहता हूं।
आसमां की ओर उछालकर पत्थर फेंका है मैंने,
बाजुओं में कितनी ताकत है देखना चाहता हूं।।
रोशनी तो हुई है अभी, वर्षों अंधेरे में रहा हूं,
मेरे शहर की उदासी दूर हो ऐसी सहर चाहता हूं।
हर व्यक्ति खंजर लिए खड़ा है लियाकत,
उम्मीद बंधी है बस भरोसा चाहता हूं।।
कोई कत्ल न कर दे डरता हूं मैं,
मेरी कश्ती पार लगा दे, ऐसा नाखुदा चाहता हूं।
कलम तोड़ दी आज मैंने उनका नाम लिखकर,
अब तो शमां जला दो, मैं परवाना बनना चाहता हूं।।
लियाकत मंसूरी
मेरठ