स्पॉन्सरशिप योजना के पात्रों से सुविधा शुल्क वसूली की शिकायत के बाद योजना पर लगा ब्रेक… सैंकड़ो परिवार हुए परेशान

UP के मुजफ्फरनगर मे बाल संरक्षण एवं कल्याण के लिए बनी सरकारी योजनाएं भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ती नजर आ रही हैं। बाल कल्याण विभाग की एक महिला कर्मचारी पर रिश्वत मांगने के गंभीर आरोप लगने के बाद विभागीय प्रक्रिया पूरी तरह से ठप हो गई है। पीड़िता गुलिस्ता द्वारा लगाए गए आरोपों ने विभाग की कार्यशैली पर सवाल खड़े कर दिए हैं। इससे सैकड़ों गरीब परिवारों के बच्चों को योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा है।
2000 रुपये की मांग का आरोप, फॉर्म पास करवाने की थी शर्त
पीड़िता गुलिस्ता ने आरोप लगाया कि जब वह अपने बच्चे के लिए ’स्पॉन्सरशिप योजना’ का फॉर्म भरने विभाग पहुंची, तो वहां मौजूद महिला कर्मचारी ने उससे फॉर्म पास करवाने के बदले 2000 रुपये की रिश्वत मांगी। गुलिस्ता ने जब इसकी शिकायत उच्चाधिकारियों से की, तो विभाग में अफरा-तफरी मच गई। हालांकि, कार्रवाई के बजाय विभाग ने फिलहाल सभी नए आवेदन लेने पर ही रोक लगा दी।
सैकड़ों जरूरतमंद बच्चे योजना से वंचित..
रिश्वत प्रकरण के बाद से ’स्पॉन्सरशिप योजना’ की प्रक्रिया पूरी तरह से थम गई है। जिले के सैकड़ों गरीब परिवार, जिनके बच्चों को इस योजना के तहत शैक्षिक व आर्थिक सहायता मिलनी थी, अब भटकने को मजबूर हैं। स्थानीय निवासी सोनिया ने बताया, “मैं पिछले पांच दिनों से फॉर्म जमा करने आ रही हूं, लेकिन हर बार कहा जाता है कि अभी आवेदन नहीं लिए जा रहे। कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया जा रहा। हम गरीब लोग बार-बार दफ्तर आकर थक चुके हैं।”
आरोपों ने खोली विभाग की पोल…
गुलिस्ता ने बताया कि विभाग की कर्मचारी ने उससे स्पॉन्सरशिप योजना का फॉर्म पास करवाने के लिए 2000 रुपये की मांग की। जब उसने इसकी शिकायत की, तो विभाग में हड़कंप मच गया। हालांकि, आरोपों की जांच शुरू होने के बाद से विभाग ने नए आवेदन लेना बंद कर दिया है, जिससे लाभार्थियों को भारी परेशानी हो रही है।
क्या है स्पॉन्सरशिप योजना…
स्पॉन्सरशिप योजना भारत सरकार की एक सामाजिक सुरक्षा योजना है जो बच्चों की सुरक्षा, शिक्षा और देखभाल सुनिश्चित करने के उद्देश्य से चलाई जाती है। यह योजना ’बाल संरक्षण सेवाएं’ के अंतर्गत आती है और जुवेनाइल जस्टिस (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 के तहत संचालित की जाती है। स्पॉन्सरशिप योजना का उद्देश्य उन बच्चों की मदद करना है जो, अत्यंत गरीब हैं या किसी आपदा या पारिवारिक संकट से गुज़र रहे हैं या जिनके माता-पिता जेल में हैं या नहीं हैं या अनाथ या अर्ध-अनाथ हैं या जिन्हें किसी कारणवश संस्थागत देखरेख (जैसे शेल्टर होम) में भेजे जाने का खतरा है। इस योजना के तहत आमतौर पर प्रति बच्चा दो हजार से चार हजार प्रतिमाह तक की आर्थिक सहायता दी जाती है। यह सहायता एक वर्ष तक के लिए दी जाती है, जिसे स्थिति के अनुसार नवीनीकृत किया जा सकता है। इस योजना के लाभ उन बच्चों को मिलता है, जो बच्चे परिवार के साथ रह रहे हों, लेकिन आर्थिक तंगी के कारण शिक्षा या देखभाल से वंचित हों। या बच्चा शेल्टर होम में हो, लेकिन उसे परिवार या रिश्तेदार के पास भेजा जा सकता हो। या फिर कोई संस्थागत बाल देखभाल गृह उसे समाज में पुनर्स्थापित करना चाहता हो।
यह है स्पॉनसरशिप योजना में आवेदन की प्रक्रिया…
आवेदनकर्ता बाल कल्याण समिति के समक्ष प्रस्तुत होता है, संबंधित विभाग या एनजीओ द्वारा बच्चे की सामाजिक-आर्थिक स्थिति की जांच रिपोर्ट बनाई जाती है। सीडब्ल्यूसी जांच के बाद स्पॉन्सरशिप की अनुशंसा करता है। अंतिम स्वीकृति जिला बाल संरक्षण इकाई द्वारा दी जाती है। योजना की निगरानी जिला बाल संरक्षण इकाई और बाल कल्याण समिति द्वारा की जाती है। योजना में पारदर्शिता और समय पर सहायता सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी प्रशासन की होती है।
क्या कहते हैं जिला प्रोबेशन अधिकारी..
जब इस मामले में जिला प्रोबेशन अधिकारी संजय यादव से संपर्क किया गया, तो उन्होंने कहा कि आरोप गंभीर हैं और जांच चल रही है। उन्होंने कहा, ’अगर कर्मचारी दोषी पाई जाती है, तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी ’
क्या कहती हैं बाल कल्याण समिति की अध्यक्ष..
जब इस मामले में बाल कल्याण समिति की अध्यक्ष रीना पंवार से बात की गयी, तो उन्होंने बताया कि किन्हीं कारणों से स्पॉसरशिप योजना के फार्म नहीं लिये जा रहे हैं, संभवतः सोमवार से फार्म लेना शुरू कर दिये जायेंगे।
सामाजिक कार्यकर्ताओं ने उठाए सवाल..
स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता शादाब खान ने कहा, ’यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि गरीबों की मदद के लिए बनी योजनाओं में भ्रष्टाचार हो रहा है। प्रशासन को तुरंत इस मामले में पारदर्शी कार्रवाई करनी चाहिए और लाभार्थियों को राहत देनी चाहिए।’