सुप्रीम कोर्ट पहुंचा UP की मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण का मुद्दा, BKU आज़ाद ने दी दस्तक

सर्वोच्च अदालत में 9 दिसम्बर क़ो होगी सुनवाई, हो सकता है बड़ा निर्णय
नई दिल्ली ।
UP की मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) को लेकर भारतीय किसान यूनियन (आज़ाद) ने मौजूदा चार सप्ताह की समयसीमा पर गंभीर सवाल उठाए हैं। यूनियन का कहना है कि यूपी जैसे 15.35 करोड़ मतदाताओं वाले विशाल राज्य में सिर्फ 28 दिनों में घर-घर जाकर सत्यापन कर पाना न तो व्यवहारिक है और न ही इसके जरिए सही एवं पूर्ण मतदाता सूची बन पाना संभव है। यूनियन ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर समयसीमा को कम से कम तीन महीने बढ़ाने की मांग की है ताकि ग्रामीण क्षेत्रों, प्रवासी मजदूरों और खेत-मज़दूर परिवारों के नाम गलती से सूची से न हट जाएं।

याचिका में कहा गया है कि BLO को कई-कई बूथों का भार दे दिया गया है, कई गांवों में सत्यापन अभी तक शुरू ही नहीं हुआ, और खेतों में काम के दौरान किसान घर पर उपलब्ध नहीं होते। ऐसे में सही परिवारों तक पहुंचना मुश्किल है। संगठन का दावा है कि यदि प्रक्रिया जल्दबाज़ी में पूरी की गई तो लाखों वैध मतदाता ‘Deleted’, ‘Shifted’ या ‘Not Found’ कैटेगरी में डाल दिए जाएंगे, जिससे ग्रामीण वोटरों के अधिकार सीधे प्रभावित होंगे।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई 9 दिसंबर 2025 को तय कर दी है। अदालत यह देखेगी कि मौजूदा समयसीमा पर्याप्त है या इसे जनहित में बढ़ाया जाना चाहिए। यूनियन ने कहा कि मतदाता सूची किसी भी चुनाव की बुनियाद होती है और इसके साथ जल्दबाज़ी करना लोकतांत्रिक अधिकारों से खिलवाड़ है। दिल्ली प्रदेश सचिव मुहम्मद तैमूर ने कहा कि किसान दिन-रात खेतों में रहते हैं, BLO जब गांव पहुंचता है तो किसान अक्सर मौजूद नहीं होते। परिणामस्वरूप हजारों परिवार सूची से बाहर हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि यह सिर्फ तकनीकी मुद्दा नहीं बल्कि लोकतांत्रिक अधिकारों की लड़ाई है और वोट का अधिकार किसान के लिए उतना ही अहम है जितनी उसकी जमीन।
यूनियन का कहना है कि समय बढ़ने से BLO को गांव-ढाणियों में पर्याप्त समय मिलेगा, प्रवासी मजदूरों के परिवारों का डेटा सही दर्ज किया जा सकेगा और चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता बनी रहेगी। अब प्रदेश की नज़र 9 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर है, जिससे इस पूरी प्रक्रिया की दिशा तय होगी।




