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नहीं भूलेगी दुनिया…

नहीं भूलेगी दुनिया!

जब गुबार से उठता धुआँ थमेगा
बादलों की सांस में सांस आयेगी
फिर आसमाँ के तारे बादलों से
धरती में झाकेंगे
राख के टीलों से
फूल चुनने नन्ही कलियाँ आयेगी
फिर इतिहास बुलंद आवाज में दहाड़ेगा
-युद्ध का मंजर कमज़ोरों पर
कयामत बनकर उतरा था….
तब नहीं भूलेगी दुनिया
नये तानाशाहों को..
नहीं भूलेगी दुनिया
देश पर मर मिटने वालों को….
पिता को जंग में भेजने के लिए औजार सौपते
नन्हें हाथों को…
जाते, रुकते, मुड़ कर नजरों में कैद करती
तस्वीरों को,
इंतज़ार में पथरायी आँखों को,
दुआओं में उठे रह गए हाथों को
नहीं भूलेगी…
नहीं भूलेगी जंग की बेवजह लिखी
खौफनाक इबारत को…
काश! इतिहास की ताकीद भविष्य समझ पाए
कि युद्ध हर रूप में विंध्वसक् होता है…
और फिर कहीं जंग न होने पाए…
मानवता न मरने पाए…।

Dr. Naaz Parween

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