अपना मुज़फ्फरनगर

उपेक्षित है नईमा का मजार, 3 दशक पहले सरकार की चूले हिला दी थी आंदोलन ने

अब उड़ती है ख़ाक मेरी खाक पर…………………!!!???

जनआन्दोलन का प्रतीक बहन नईमा का मज़ार क्यूँ है उपेक्षा का शिकार

(काज़ी अमजद अली)

मुज़फ्फरनगर में  तीन दशक पूर्व घटे नईमा हत्याकांड को लेकर चले किसान आन्दोलन ने भारतीय किसान यूनियन के नेतृत्व में उस समय की उत्तर प्रदेश सरकार की चूलें हिला दी थी।एक बड़े आन्दोलन के जनक नईमा हत्याकांड को आज भी याद किया जाता है। आन्दोलन के प्रतीक के रूप में बने स्व.नईमा के मजार को स्मारक का रूप देना तो दूर की बात है।आज बहन नईमा की मज़ार उपेक्षा की शिकार है। मज़ार के आस–पास उगी झाड़ियाँ एक भूली सी दास्तान को उजागर करने के लिये काफी है।

मुज़फ्फरनगर जिला मुख्यालय से 15 km दूर लगभग दस हज़ार की आबादी वाला गाँव भोपा मिश्रित आबादी को सँजोए हुए गंग नहर पटरी पर आबाद है। 33 वर्ष पूर्व भोपा एक बड़े किसान आन्दोलन की रणभूमि बना था उसी आन्दोलन का प्रतीक बहन नईमा की मजार भोपा गंग नहर पटरी पर बना हुआ है।
इस आन्दोलन के इतिहास को भले आज की युवा पीढ़ी अधिक न जानती हो लेकिन भोपा नहर पुल से चन्द कदम की दूरी पर बनी पक्की कब्र एक बड़े आंदोलन की साक्षी रही है।सन 1989 में भोपा थाना क्षेत्र के गाँव सीकरी निवासी युवती का अपहरण किया गया था।युवती की बरामदगी को लेकर ग्रामीणों द्वारा भोपा थाने के सामने जाम लगाकर प्रदर्शन किया गया था।इसी दौरान प्रदर्शनकारियों पर पुलिस द्वारा लाठीचार्ज हुआ था। तथा किसानों के वाहन ट्रैक्टर्स को गंग नहर फेंक कर भीड़ को तितर –बितर कर दिया गया था।जिसके बाद भारतीय किसान यूनियन के जनक स्व.बाबा महेन्द्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में भारतीय किसान यूनियन द्वारा युवती की बरामदगी व परिजनों को न्याय दिलाने तथा जिन किसानों के ट्रैक्टर् गंग नहर फेंक दिए गए थे उन्हें मुआवजा अथवा नए ट्रेक्टर दिलाने की माँग को लेकर गंग नहर पटरी पर धरना शुरू किया ।  डेढ़ माह तक चले धरने के दौरान बहन नईमा के शव को पुलिस द्वारा थाना रतनपुरी क्षेत्र से बरामद किया गया था।परिजनों को न्याय दिलाने व नहर में फेंके गए किसानों के ट्रैक्टर्स का मुआवजा दिलाने आदि को लेकर चला धरना विशाल रूप लेता चला गया । धरना प्रदर्शन ने तत्कालीन काँग्रेस सरकार की चूलें हिला दी थी।सरकार द्वारा भारतीय किसान यूनियन की मांगों को स्वीकार करने के बाद धरना समाप्त किया गया था। उसके बाद कांग्रेस पार्टी प्रदेश में वापसी की बाँट जोहती रही हैं ।

इस आंदोलन के दौरान बने जाट –मुस्लिम गठजोड़ ने सामाजिक व सियासत की नई इबारत उस समय लिख दी थी। बदलाव और एक बड़े सामाजिक व राजनीतिक परिवर्तन की नज़ीर बने इस आन्दोलन को नईमा काण्ड से जाना जाता है। इस आन्दोलन ने किसानों में प्रशासन के खिलाफ मुखर होने की राह दिखाई थी। और अक्सर मामलों में किसानों की एकता व एकजुटता ने प्रशासन को बैकफुट पर ला दिया।

स्व.नईमा मजार की आज उपेक्षा का शिकार है। मजार के इर्द-गिर्द उगी झाड़ियां टूटी हुई दीवारें ,दीवारों पर लिखी अनाप –शनाप इबारतें पास में लगा गन्दगी का ढ़ेर इस बात का संदेश देती नजर आ रही हैं कि अब इस आंदोलन की स्मृतियों की भी किसी को परवाह नही है। अतीत और इदराक की एक भूली सी दास्तान बहन नईमा की कब्र पर कब किसी ने फातिहा पढ़ी होगी कब किसी ने श्रद्धांजलि दी होगी ये तो मरहूमा की रूह ही जानती होगी ।

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