अपना मुज़फ्फरनगर

लाखों के खर्च के बाद सफेद हाथी बने सुलभ शौचालय

बनते हैं बिगड़ जाने के लिये……….??
★तीर्थनगरी में सार्वजनिक शौचालयों पर लटक रहे गुमनामी के ताले
★वर्षों पूर्व MDA द्वारा कराया गया था तीन सार्वजनिक शौचालयों का निर्माण
(काज़ी अमजद अली)
मुज़फ्फरनगर।
बडे दिनों तक किसी समस्या को झेलने के बाद अगर सरकार सुन भी ले तब भी प्रशासन के रहमो करम की बांट जनता को देखनी पडती है। शुकतीर्थ में श्रद्धालुओं को सुलभ शौचालय प्रदान करने के लिए मुजफ्फरनगर विकास प्राधिकरण द्वारा तीन स्थानों पर एक बडी रकम को खर्च कर सार्वजनिक शौचालयों का निर्माण कराया गया था। प्रशासन की लापरवाही के कारण वर्षों बीत जाने के बाद आज भी इन तीनों शौचालयों पर ताले लटके हुए हैं। किस विभाग अथवा कर्मचारी के पास इनकी चाबियां हैं, कोई नही जानता। वहीं अधिकारी भी अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड रहे हैं। अपने शुभारम्भ की बांट जोह रहे सार्वजनिक शौचालयों को खुलवाने की मांग ग्राम प्रधान व समाजसेवी सहित साधु संतों ने की है।
मामला मुज़फ्फरनगर ज़िले के प्रसिद्ध महाभारतकालीन तीर्थस्थल शुकतीर्थ का है जहाँ विकास कार्यों, स्वच्छता आदि के लिए अनेक विभाग लाखों करोडों की रकम को प्रतिवर्ष खर्च करते हैं किन्तु आज भी अनेक समस्याएं जस की तस बनी हुई हैं। श्रद्धालुओं की भीड खुले में शौच न करें। इसके लिए सरकार द्वारा सार्वजनिक शौचालयों की स्थापना की गयी, जिसमें मुजफ्फरनगर विकास प्राधिकरण द्वारा पुलिस चौकी के पास विश्व कल्याणी अथवा वीआईपी घाट तथा गंगा सेतु के पास तीन शौचालयों का निर्माण कराया गया है। वर्षों बीत जाने के बाद भी आज तक शौचालय अपने उद्घाटन की बांट जोह रहे हैं तथा श्रद्धालुओं के लिए समस्या ज्यों की त्यों बरकरार है। लाखों की बडी रकम खर्च करने के बाद भी श्रद्धालु सार्वजनिक शौचालयों की सेवा से वंचित हैं।

शुकतीर्थ के ग्राम प्रधान राजपाल सैनी ने बताया कि शौचालयों को खुलवाने के लिए उन्होंने अनेक अधिकारियों से बात की है किन्तु अभी तक कोई सुनवाई इस सम्बंध में नहीं हुई है। बडे आयोजन के दौरान श्रद्धालुओं को भारी दिक्कत का सामना करना पड रहा है।
प्रसिद्ध समाजसेवी पँ.विनोद शर्मा ने बताया कि गणेश चतुर्थी के दौरान मुजफ्फरनगर व आसपास के श्रद्धालु गणेश जी मूर्ति के विसर्जन के लिए शुकतीर्थ में आ रहे हैं। बारिश के दौरान श्रद्धालु लघुशंका के लिए कहां जाये। गंगा घाट पर बने शौचालय पर ताला लटका हुआ है। लाखों की रकम खर्च करने के बाद भी श्रद्धालुओं को उसका लाभ नही मिल रहा है।

क्या इसलिए होती है देर???

सूत्रों की मानें तो सरकारी निर्माण की गारंटी का समय निर्धारित होता है। उसके बाद कार्यदायी संस्था अथवा ठेकेदार की जिम्मेदारी समाप्त हो जाती है। घटिया सामग्री के प्रयोग घटिया निर्माण पर पर्दा डालने के लिए जानबूझकर देरी की जाती है। वर्षाें से तैयार शौचालय क्या गारंटी का समय पूरा हो जाने की प्रतीक्षा में है। ऐसा जानकारों का कहना है। वीआईपी घाट पर बने शौचालय की खिडकी टूट चुकी है। शुभारम्भ से पहले ही शौचालय की दुर्दशा निश्चित लगती है। वहीं दो शौचालयों पर तो अभी सार्वजनिक शौचालय भी नहीं लिखा गया है। जिससे इन शौचालयों की ओर कोई ध्यान भी नहीं देता है।

इस सम्बंध में जानकारी प्राप्त करने के लिये मुज़फ्फरनगर विकास प्राधिकरण के सचिव से बात करने का प्रयास किया तो कॉल रिसीव नही की गयी अन्य विभागों के अधिकारी भी इस मामले मे कुछ भी कहने से बचते नजर आये।

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