धर्म

तालीम के साथ तरबियत भी है अनिवार्य: बिन यामीन

-मदरसा इजहारुल उलूम में 52वें वार्षिक दो दिवसीय जलसे का आयोजन
मुजफ्फरनगर। कस्बा भोकरहेड़ी में स्थित मदरसा इजहारुल उलूम में 52वें वार्षिक दो दिवसीय जलसे का आयोजन किया गया, जिसमें क्षेत्रीय व दूरदराज से आये आलिम ए दीन व शिक्षाविदों ने भाग लिया तथा अपने सम्बोधन में शिक्षा, जागरूकता व संस्कारशील समाज की स्थापना पर विशेष बल दिया। इस दौरान नाते पाक व मुंखबत प्रस्तुत की गयी। जलसे का आगाज कारी अब्दुल कय्यूम ने तिलावते कुरान पाक के साथ किया। मुख्य अथिति मुफ्ती बिन यामीन ने कहा कि अल्लाह से मुहब्बत करने वाले दयावान और क्षमा करने वाले होते हैं। अल्लाह के नजदीक वही हो सकता है जो हमेशा नमाज और सच्चाई को कायम करें। कोरोना काल में काफी परेशानियां उठानी पड़ी। कुछ परिवारों के वारिस ना रहे कोरोनाकाल में वारिसों को खोने वाले निर्धन परिवारों की निःस्वार्थ मदद करें। रमजान के पवित्र माह की कद्र करें। रोजे व तरावीह का खास एहतमाम करें। तालीम के साथ-तरबियत पर विशेष ध्यान दें। सदव्यवहार सबसे अच्छा अमल है। इंसान के कर्म ही उसके संस्कार व तरबियत का दर्पण होते हैं। जालिम की जगह जहन्नुम व दयावान के लिये जन्नत को बनाया गया है। मदरसे के प्रबंधक मौलाना अहमद हसन ने कहा कि अल्लाह के नबी हजरत मुहम्मद ने बड़े कष्ट उठाकर अल्लाह के दीन को कायम किया। आलिमे दीन उसी सिलसिले को आगे बढ़ा रहे हैं। इसलिये उनका सम्मान सर्वोपरि है। किसी भी हाल में नमाज को न छोड़ें। अल्लाह की इबादत इंसान के अंदर सब्र और सन्तोष व धैर्य को पैदा करती है। कार्यक्रम के अन्त में मौलाना हबीबुर्रहमान ने मुल्क व दुनिया में अमन व शान्ति के लिये दुआ कराई। नाते पाक कारी हुजैफा ने पढ़ी। अध्यक्षता मौलाना मौ. मुईनुद्दीन व संचालन कारी सुहैल अख्तर ने किया। व्यवस्थापक के रूप में मौलाना फरमान रहे तथा स्वागत कमैटी में मौलाना नुसरत, कारी अब्दुल कलाम, कारी लुकमान, कारी गय्यूर आदि उपस्थित रहे।

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