सात सदियो से संभालकर रखे हुए हैं मुगलों के शाही फरमान

लियाकत मंसूरी
मेरठ। मुगल दौर में जारी किए गए शाही फरमान आज भी शहर काजी परिवार संभालकर रखे हुए हैं। हालांकि, 1974 में पूर्व राष्ट्रपति फकरूद्दीन अली अहमद ने शाही फरमानों को भारतीय संग्राहलय में रखवा दिया था। नायब शहर काजी जैनुल राशिद्दीन बताते हैं कि शाही फरमानों की कुछ कॉपियां अभी भी उनके पास है, जो 1375 में जारी किए गए थे। इसके अलावा नायब शहर काजी का कहना है कि शाही फरमानों के अलावा 200 साल पुराने निकाहनामा के दस्तावेज भी उनके पास है। जिन्हें निकलवाने के लिए दूर दराज से लोग आते रहते हैं, क्योंकि आजादी से पहले कई जनपद मेरठ की सीमा में थे। बताया कि 700 सालों से उनका परिवार काजी की भूमिका निभा रहा है।
मेरठ का इतिहास क्रांतिकारी रहा है, इतिहास गवाह है कि आजादी के लिए मेरठवासियों ने अपने आपको बलिदान कर दिया। आजादी की आवाज प्रथम बार मेरठ से ही उठी थी। 1857 की क्रांति के बाद मेरठ के हर व्यक्ति ने अंग्रेजों से लोहा लिया। फांसी पर चढ़ गए, मगर गुलामी को स्वीकार नहीं किया। मुगल दौर में काजी रहे शहर काजी जैनुलसाजिद्दीन के वंशजों ने अंग्रेजों द्वारा दिए गए मासिक वेतन को स्वीकार नहीं किया। नायब शहर काजी जैनुलराशिद्दीन बताते हैं कि मुगल सल्तनत में काजी की भूमिका अहम होती थी। उनको मासिक वेतन मिलता था, लेकिन जब अंग्रेजी हुकूमत आयी तो सब कुछ बदल गया। हालांकि, काजी का ओहदा बरकरार रहा। अंग्रेजों ने भी मासिक वेतन देना चाहा, मगर उनके पूर्वजों ने उसको स्वीकार नहीं किया। और 1857 की क्रांति के बाद आजादी की लड़ाई में हिस्सा लिया।
मुगल दौर में जज की तरह होती थी काजी की भूमिका
बातचीत में बताया कि मुगल दौर में काजी की भूमिका एक जज की तरह होती थी। काजी से सलाह लेकर ही बादशाह हुकूम देता था। बादशाह द्वारा दिए गए शाही फरमान आज भी नायब शहर काजी ने संभालकर रखे हुए है। जानकारी दी कि आजादी के बाद उन फरमानों को राष्ट्रीय संग्राहलय में रखवा दिया गया, लेकिन उन फरमानों की कुछ कॉपियां आज भी उनके पास रखी हुई है। ये शाही फरमान सन 1325, 1360 और 1400 के हैं। एक शाही फरमान काजी हिजामुद्दीन के नाम है, जो उस वक्त के काजी थे। जो सन 1375 को जारी किया गया था, यह फरमान सैफुल दौला की ओर से फारसी भाषा में जारी किया गया था। सन 1410 में भी एक फरमान जारी किया गया।
1974 में भारतीय संग्राहलय में रखे गए शाही फरमान
नायब शहर काजी जैनुल राशिद्दीन बताते हैं कि उनके वालिद काजी आबिद्दीन जामिया मिलिया इस्लामिया दिल्ली में एक विभाग के हैड थे। भारत के तीसरे राष्ट्रपति डा. जाकिर हुसैन ने यह पहल की कि शाही फरमान को संग्राहलय में रखवा दिया जाए, मगर ऐसा नहीं हुआ। यह काम भारत के पांचवे राष्ट्रपति फकरूद्दीन अली अहमद के दौर में हुआ, उन्होंने मुगलों के सभी शाही फरमानों को संग्रालय में रखवा दिया था। यह बात 1974 की है। हालांकि, अभी भी शाही फरमान की कुछ कॉपियां उनके पास रखी हुई है।
700 सालों से काजी की भूमिका निभा रहा परिवार
नायब शहर काजी जैनुल राशिद्दीन का कहना है कि 700 सालों से उनका परिवार काजी की भूमिका निभा रहा है। उनके वंशज काजी कौअमुद्दीन यमन से भारत आए थे, उस वक्त दिल्ली की गद्दी पर बादशाह तुगलक बैठा हुआ था। यह सन 1325 का दौर था। तुगलक ने कौअमुद्दीन को रोहतक का काजी बनाया। जिनका मकबरा अभी भी रोहतक में है। उसके बाद गढ़मुक्तेश्वर (परिवार के दो काजियों के मकबरे अभी भी गढ़ में है) और फिर मेरठ। मेरठ में काजी का सिलसिला अभी भी जारी है। मौजूदा समय में जैनुल साजिद्दीन शहर काजी और जैनुल राशिद्दीन नायब शहर काजी है। इनसे पहले इनके पिता आबिद्दीन, दादा बशीरूद्दीन, परदादा अब्दुल हादी, अब्दुल बारी, महमूद बख्श, कादिर बख्श, इलाही बख्श आदि शहर काजी थे।
संभालकर रखी है शाही फरमान और निकाहनामा की विरासत
नायब शहर काजी बताते है कि जिस तरह से शाही फरमान की विरासत को उन्होंने संभालकर रखा है, उसी तरह से निकाहनामा के दस्तावेज भी महफूज है। लगभग 200 साल पुराने निकाह के कागज उनके पास रखे हुए हैं। जनपद की विभिन्न मस्जिदों में पढ़ाए गए निकाह के कागज पूरी तरह से संभालकर रख हुए हैं। जिनकी प्रतियां लेने के लिए दूर दराज से लोग उनके पास आते हैं। बताया कि बुलंदशहर, गौतमबुद्धनगर, सहारनपुर, बागपत, हापुड़, बिजनौर, मुजफ्फरनगर, शामली आदि जनपद मेरठ में ही आते थे।