उदयपुर हत्याकांड: समाज को तोड़ने की कोशिश

तारिक़ सलीम
तुम अपने अक़ीदों के नेज़े
हर दिल में उतारे जाते हो
अहमद फ़राज़
दशकों पहले अहमद फ़राज़ ने पाकिस्तान में बढ़ रही रूढ़िवादी हिंसा पर जब ये कविता लिखी थी तो किसी ने ख़्वाब में भी न सोचा होगा कि एक दिन ये अल्फाज हमारे देश में भी सच हो सकते है। पिछले कुछ सालों में देश में धर्म और विचारधारा के प्रति जो कट्टरता बढ़ रही है वो डराने वाली है। हमने देखा किस तरह उदयपुर में एक व्यक्ति की दो धर्मांधों ने निर्मम हत्या कर दी। हालांकि धर्मान्धता में हत्याये सदियों से होती आयी हैं, किंतु यहाँ हमने देखा कि इस जघन्य अपराध की वीडियो भी बनाई गयी और उसको वायरल भी किया गया। वैसे ये पहला ऐसा मामला नहीं है राजस्थान में ही कुछ साल पहले अफ़राज़ुल नामक एक मज़दूर की हत्या करते हुए एक धर्मांध ने वीडियो बनाया था। लेकिन ये सोच का विषय है कि आख़िर ये कौन लोग हैं जो हत्या जैसे अपराध को छुपाने के बजाये उसका इश्तिहार करने लगे हैं। ताकि अपने समाज में पब्लिसिटी पाई जाए। मगर आज इसका विपरीत हुआ। मुस्लिम समाज ने इस अपराध को नकार दिया और हर उलेमा से लाकर मुल्क के हर मुसलमान ने इस अपराध की निंदा की और कातिलों के लिए फांसी की मांग उठाई।
पिछले कुछ वर्षों में हमने देखा है कि इंटरनेट की उपलब्धता और फ़ेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सएप्प आदि के आम होने से किसी भी प्रकार की संकीर्ण मानसिकता वाले लोगों के विचार हमारे युवा के पास पहुँच रहे हैं। पहले संचार का माध्यम समाचारपत्र, पत्रिकाएं, रेडियो अथवा टीवी होते थे जिनमें संपादकीय टीम के निर्देशन में लोगों तक बात पहुंचे जाती थी। ऐसा नहीं कि उस समय भड़काऊ लेख नहीं होते थे लेकिन उसपर तब भी एक नकेल कसी जा सकती थी। आज जिसका जो मन है वो बोल या लिख कर बच्चों के दिलों में ज़हर घोल देता है। धर्म के नाम पर नफ़रत का कारोबार गर्म है।
ये नफ़रत करने वाले किसी धर्म को नहीं जानते। आप देखेंगे इनमें से अधिकतर अंग्रेज़ी स्कूल से पढ़े होते हैं और ज़िंदगी के एक पड़ाव पर अचानक धर्मगुरु बन जाते हैं।
वो शायर ने कहा है न –
“पीर फ़क़ीर तो अक्सर चुप ही रहते हैं मज़कूर
दुनियादार ही दीनी बातें करते हैं “
धार्मिक लोग जानते हैं कि –
“मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना”
ये कौन लोग हैं जो कि हमारे बच्चों को सिखा रहें हैं कि पैग़ंबर मुहम्मद की आलोचना करने पर हत्या करना इस्लाम धर्म सिखाता है?? आप देखिये इस्लाम के किसी भी मत के किसी मौलाना ने ये बात नहीं कही है। ये बातें यूट्यूब पर मौजूद स्वघोषित इस्लामिक स्कॉलर्स ने फैला दी है। मुहम्मद तो दुनिया के लिए अहिंसा का सन्देश लाये थे। उन्होंने तो लड़ाई के मैदान में उतरने से पहले अपने लश्कर जो ये कहा था कि अगर कोई दुश्मन फ़ौजी आपके लोगों का क़त्ल कर वापिस भागने लगे तब उसका पीछा कर उसे मारना ग़लत है। सिर्फ़ मुँह से की गयी आलोचना की तो बात ही जाने दीजिये।
पैग़म्बर मुहम्मद ने कभी किसी दुश्मन को न मारा न मारने को कहा जबतक कि वो जंग के मैदान में सामने न खड़ा हो। उनकी कोशिश यही रहती थी कि वो उसके मन में बैठी हुई बुराई और हठधर्मिता को दूर कर दें। वो दुआ करते थे कि लोग सही रास्ते पर आ जायें न कि उन्हें मार देते थे।
याद रखिये हम उस देश में रहते हैं जहाँ क़ुरान का प्रसार और प्रचार करने में नवल किशोर ने सबसे बड़ा योगदान दिया और संस्कृत को अंग्रेज़ों के कुप्रभाव से बचाने में मिर्ज़ा इस्माइल ने जद्दोजहद की। ये नफ़रतें उस देश को तोड़ने के लिए है।
लेकिन –
यूनान ओ मिस्र ओ रोमां सब मिट गए जहाँ से
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी
तो जो लोग हमारे देश में नफ़रत का ज़हर घोलना चाहते हैं याद रखें ख़ुद अपनी जलाई आग में जल जाएंगे।
लेखक तारिक सलीम इंटरनेशनल ख्याति प्राप्त फिजियोथेरेपिस्ट है। *यह उनके अपने विचार है। संपादक मंडल का सहमत होना आवश्यक नहीं है।