चार सौ वर्षों से होली के गीतों को संभाले हुवे हैं भोकरहेडी के बाशिंदे

(काज़ी अमजद अली)
मुज़फ्फरनगर।उल्लास व मस्ती से भरे त्यौहार होली की तैयारियां कई दिन पहले शुरू हो जाती है। सुहानी रातों में होली के गीतों पर ढोल मजीरों के साथ झूमते ग्रामीण पारम्परिक लोक कलाओं को जीवित किये हुए है। प्रतिवर्ष भोकरहेडी में निपुण ग्रामीणों द्वारा होली के गीतों को गाया जाता है। गायक कलाकारों के अनुसार 400 वर्षों से वह होली के गीतों को आज तक संभाले हुए हैं।
मुज़फ्फरनगर ज़िले के कस्बा भोकरहेडी में स्थित मौहल्ला नेहरू चौक में रामपाल सिंह की बैठक पर शाम होते ही ग्रामीण इकट्ठा होने लगते हैं। ग्रामीणों को बैठने के लिए चारपाई व बुजुर्गों के लिए मूढों की व्यवस्था होती है। शाम ढलते ही ढोल मंजीरों को बजाने के लिए तैयार हो जाते हैं। ढोल मंजीरों के साथ दर्जनों ग्रामीणों की टोली उल्लास के साथ तैयार है। प्रतीक्षा होती है, केवल रामपाल सिंह की। जो होली के गीतों को गाने में निपुण हैं। सादगी और प्राचीन संस्कृति में विश्वास रखने वाले रामपाल सिंह होली का गायन करते हैं।
इसके अलावा चौ. चन्द्रपाल सिंह व विरेन्द्र सिंह उनका साथ देते हैं। पूर्व में चौ. दिलावर सिंह, सुखवीर सिंह, धर्मवीर सिंह, बारू व बरकत सिंह द्वारा पूर्व में होली का गायन किया जाता था। होलिका दहन से एक पखवाडा पूर्व होली का गायन ढोल मंजीरों के साथ शुरू हो जाता है। चार दिन पूर्व से रात्रि के समय होली का जुलूस प्रतिदिन निकाला जाता है। जिसमें सैकडों ग्रामीण शामिल होते हैं। नेहरू चौक व सुभाष चौक में होली का दहन किया जाता है। चार दिनों तक निकलने वाले जुलूस में उत्साह का माहौल रहता है। चौ. रामपाल सिंह ने बताया कि पूर्वजों से गायन उन्हें विरासत में मिला है। होली के गीतों का गाना एक कला है। लगभग चार सौ वर्षों से भोकरहेडी के लोग इस विरासत को संभाले हुए है। बेहडा सादात में किसी जमाने में जन्में पं. रामशरण शर्मा द्वारा लिखित गीतों में महाभारत को काव्य के रूप में लिखा गया है। पं. रामशरण शर्मा महान विद्वान थे। उन्हीं के आशीर्वाद से आज तक भोकरहेडी में होली को गाया जाता है। भोकरहेडी की होली क्षेत्र में प्रसिद्ध है। फाग के दिन बडे जुलूस को नगर में निकाला जाता है, जिसमें भारी संख्या में ग्रामीण भाग लेते हैं। भाकियू नगर अध्यक्ष चौ. उदयवीर सिंह व भाजपा मण्डल अध्यक्ष डॉ. वीरपाल सहरावत ने बताया कि होली गायन की परम्परा को कायम रखने के लिए युवा पीढी को प्रेरित किया जा रहा है। होली के गायन में सहयोग देनेवालों में प्रमुख रूप से डॉ. चन्द्रपाल सिंह, ओमपाल सिंह, सतेन्द्र भगतजी, प्रमोद ठेकेदार, उमेश, सुधीर, रामश्री, कंवरपाल नेताजी, राजेन्द्र, रामपाल, यशपाल, धनवीर, भूपेन्द्र लम्बरदार, बिजेन्द्र लम्बरदार, हरेन्द्र नत्थू, मनोज आदि शामिल हैं।