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कोरोना की जद में आई जायद की फसल,तनाव में उत्पादक

(काज़ी अमजद अली)
मुज़फ्फरनगर। कोविड महामारी के पुनः बढ़ते संक्रमण ने प्रत्येक को चिन्ता में डाल दिया है।संक्रमण की रोकथाम के लिये प्रशासन द्वारा सप्ताह में दो दिन लॉक डाउन की घोषणा की गयी है। लोकडाउन का सीधा असर रोज़गार पर पड़ता है। जहाँ एक वर्ग आपदा को अवसर में बदलता है तो निर्धन वर्ग को दो जून की रोटी के भी लाले पड़ जाते हैं। पिछले वर्ष के अनुभव को अभी भूले भी नही थे कि लोकडाऊन का जिन्न फिर बोतल से निकल आया है। नदियों के किनारे रेतीली भूमि पर नकदी फसलों को उगाकर एक बड़ी आबादी परिवार का गुजर-बसर करती है।अप्रैल मई जून-जुलाई में सब्जियों की खेती कर नगद मुनाफा कमाने वाले परिवार गत वर्ष की भांति फिर लोकडाउन लगने से भारी नुकसान से आशंकित हो गये हैं।

मुज़फ्फरनगर ज़िले में शुकतीर्थ का गंगा खादर में हजारों हेक्टेयर भूमि पर ज़ायद की फसल अथवा प्लेज़ उगाने का कार्य भूमिहीन मजदूर परिवार करते हैं। हजारों मजदूर परिवार गंगा की रेतीली भूमि में खीरा, ककड़ी,तरबूज, खरबूज की फसल उगाने के साथ–साथ लौकी, टमाटर ,भिन्डी,कद्दू ,बैंगन आदि की फसलें लगाते है। अप्रैल के दूसरे सप्ताह से फसलों का उत्पादन आरंभ हो जाता है, जिससे बाजार में खीरा टमाटर लौकी व मीठा कद्दू काफी सस्ते हो जाते हैं। मई माह में तरबूज व खरबूजे का भारी उत्पादन होता है। सुबह सवेरे फसलों को बेल से तोड़कर उनको पैक किया जाता है तथा शाम के समय वाहनों में लोड किया जाता है। अगले दिन सुबह सवेरे शहर की मण्डियों में बोली लगाकर इन उत्पादों को थोक के रूप में बेचा जाता है। जहाँ से फुटकर दुकानदार, रेहड़ी ,फेरी वाले इन्हें घरों तक पहुँचाते हैं। लगभग चार माह तक चलने वाली ज़ायद फसलों की बुवाई दिसंबर माह में की जाती है।कड़े परिश्रम महंगे बीज व महंगे कीटनाशक की लागत के बाद फसल उगाने वालों का भविष्य सरकार के रहमो करम टिका हुआ है। लॉक डाउन के कारण उत्पादों की माँग घट जाती है तथा मण्डियों में ये उत्पाद ओने पोने भाव बेंचने पड़ते हैं। मुनाफा तो दूर लागत भी मिल जाये तो बड़ी बात है। शुकतीर्थ निवासी प्रवेश पुत्र पाल्लेराम का परिवार भी गंगा किनारे प्लेज़ उगाने का कार्य करता है, प्रवेश की पत्नी दीपा के साथ उत्पादों को तोड़ने का कार्य करता है। बच्चे कार्तिक,नेन्सी, श्री, गुनगुन ककड़ी आदि को पानी से धोने का कार्य करते है। नीटू,बलबीर,छंगा,राजू,रमेश,सतीश,अमित,प्रह्लाद, सुशील, प्रकाश,घिस्सू, सतबीर ,प्रमोद आदि ने भी इन फसलों को उगाकर नकद मुनाफ़ा कमाने की आस लगाई है। किन्तु लॉक डाउन की खबर ने इनकी उम्मीदों पर तुषारापात जैसे कर दिया है। प्रवेश के अनुसार शुक्रताल खादर से सब्ज़ियां व खरबूज तरबूज देहरादून व दिल्ली की मंडियों तक जाते हैं। उत्पादन करने वाले किसानों के अलावा इनको मण्डियों तक पहुंचाने वाले वाहन स्वामियों को भी रोज़गार मिलता है। लॉक डाउन लगा तो दिल्ली व देहरादून की मण्डियों तक उत्पाद नही पहुँचेगें जिससे लोकल की मंडियों में ही सस्ते दामों पर इन्हें बेंचना पड़ेगा। जहाँ उचित भाव नहीं मिलेगा साहूकार से कर्ज लेकर इन फसलों को उगाने वाले आंशिक किसानों के बारे में भी सरकार को ध्यान देना होगा ।