राजनीति

UP में सत्ता में वापसी के समीकरण भिड़ा रही भाजपा

कमल मित्तल
(वरिष्ठ पत्रकार)
सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी लगातार किसी न किसी तोड़फोड़ की जुगत में रहती है,फिर उसका लाभ लेना वह अच्छी तरह से जानती है ।बात चाहे 2013 के दंगों की हो-अन्ना आंदोलन की या अब किसान आंदोलन की। जब 2013 में मुजफ्फरनगर जनपद में दंगा हुआ उसको राजनीतिक रूप से भुनाने में भारतीय जनता पार्टी ने कोई कोर कसर बाकी नहीं रखी ,वहीं अन्ना आंदोलन का लाभ भी उन्हें मिल रहा था।जिसके कारण तत्कालीन केंद्र सरकार की बदनामी हो रही थी और यह आंदोलन कहीं ना कहीं भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के फाइनेंस से ही से ही चल रहा था।जिसमें बाबा रामदेव खुलकर भारतीय जनता पार्टी के समर्थक रहे हैं। जो कि आंदोलन को समर्थन दे रहे थे। इस आंदोलन व दंगे के बाद 2014 में भारतीय जनता पार्टी की सरकार केंद्र में और 2017 में उत्तर प्रदेश में बनी।उसके बाद 2019 में भारतीय जनता पार्टी और अधिक मजबूती के साथ केंद्र में आई और जनता को लगातार लोक लुभावने सपने दिखाना जारी रखा।जिन मुद्दों पर भारतीय जनता पार्टी के नेता तत्कालीन सरकार को घेरते नजर आते थे ,अब उन्हीं मुद्दों पर वह आंख बंद किये बैठे हैं, इसका कारण कहीं ना कहीं विपक्ष का कमजोर होना रहा है। वहीं 2014 के बाद भारतीय जनता पार्टी सरकार को चुनौती देना किसी के लिए भी असंभव लक्ष्य रहा। इस दौरान केंद्र सरकार और भारत के कुछ बड़े उद्योगपतियों की दोस्ती भारत में ही नहीं विदेशों में भी चर्चा का विषय बनीं रही है। इस दोस्ती को आर्थिक लाभ पहुंचाने के लिए केंद्र सरकार ने तीन कृषि बिल पास किये। जिनका पंजाब और हरियाणा में लगातार विरोध जारी रहा। पंजाब में ट्रेन बंद रही और कहीं ना कहीं भारी अवयवस्था से आम लोगों को जूझना पड़ा। वहीं उत्तर प्रदेश में इसका विरोध कुछ समय बाद शुरू हुआ और फिर सभी किसान संगठन दिल्ली में अपनी आवाज उठाने के लिए दिल्ली की सीमा पर पहुंच गए। सरकार की मंशा व्यापारियों को लाभ पहुंचाने की है, ऐसे में तीनों कृषि बिलों वापस लेना सरकार के लिए चुनौती भरा काम है ।किसान संगठनों को दिल्ली में प्रवेश नहीं मिला और वे दिल्ली बॉर्डर पर धरने देकर बैठ गए। कई दौर की बात के बाद कुछ भी आगे नहीं बढ़ा और बात वही की वही अटकी रही ।न एमएसपी पर कानून बनाने को सरकार तैयार हुई और न ही कृषि बिल वापस लेने को ।इस दौरान लगभग 240 किसान शहीद हो गए। जिस तरह 2013 में हिंदू और मुस्लिम में विभेद कर भारतीय जनता पार्टी ने सत्ता पर कब्जा किया था ,अब 2022 में उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं और भाजपा नेताओं को लग रहा है की जाट जाति यहां भाजपा के विरोध में लामबंद हो रही है, तो उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के जाट नेताओं को इकट्ठा कर जाट बिरादरी के बीच विभेद करने के लिए मंत्र फूंक दिया। अब भारतीय जनता पार्टी नेताओं की मंशा है जाट बिरादरी में आपस में ही टकराव कराया जाए और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को होने वाले बड़े नुकसान से बचा जा सके। 2013 से ही जिस तरह भारत की मीडिया का बड़ा हिस्सा भारतीय जनता पार्टी का सही तो सही ,गलत में भी पूरा साथ दे रहा है और जिसे अब गोदी मीडिया के नाम से भी अब जाने जाने लगा है। ऐसे माहौल में जाट जाति में जहर घोलने का काम मुजफ्फरनगर जनपद की बड़ी मीडिया द्वारा शुरू किया जा चुका है। मीडिया के बड़े नाम शाम ,दाम, दंड भेद किसी भी तरह भाजपा के पक्ष में माहौल बनाने में लगे हैं। लेकिन यदि जिस तरह राजीव गांधी सरकार में वीपी सिंह एक बड़े धड़े को साथ लेकर अलग हट गए थे और राजीव गांधी को सत्ता से हाथ धोना पड़ा था,इसी तरह वर्तमान सरकार में अपेक्षित बड़े राजनेता सांसदों की नाराजगी और किसान बिल के विरोध में खुलकर न बोल पाने की नाराजगी को ध्यान रख एक बड़ी संख्या में भारतीय जनता पार्टी सरकार का साथ छोड़ देते हैं तो यह मीडिया के साथ वर्तमान सरकार के हम दो हमारे दो के मुंह पर कड़ा तमाचा होगा।

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