CCS यूनिवर्सिटी के उर्दू विभाग में हुआ ‘बहुरूपिया’ का विमोचन

महविश जाकिर
मेरठ में सीसीएसयू के उर्दू विभाग में अंतर्राष्ट्रीय साहित्य कला मंच मेरठ के संयुुक्त तत्वावधान में आयोजित हिन्दी दिवस समारोह-2021 के अवसर पर प्रो. असलम जमशेदपुरी के कहानी संग्रह ‘बहुरूपिया‘ एंव ‘हिन्दी-उर्दू का आपसी रिश्ता‘ शीर्षक से संगोष्ठी एंव विमोचन का आयोजन किया गया। जिसकी अध्यक्षता प्रो. वेद प्रकाश बटुक ने की। मुख्य अतिथि के रूप में प्रो. वाई विमला प्रतिकुलपति और प्रसिद्व शायर डाॅ. नवाज़ देवबन्दी उपस्थित रहे। विशिष्ट अतिथियों के रूप में डाॅ. बीएस यादव (प्राचार्य डीएन काॅलिज, मेरठ), डा. रामगोपाल भारतीय (अध्यक्ष अंतर्राष्ट्रीय साहित्य कला मंच,) उपस्थित हुए। लेखक का परिचय डा. आसिफ अली ने प्रस्तुत किया। पुस्तक समीक्षा विख्यात लेखिका चाँदनी अब्बासी ने पेश की। स्वागत डाॅ. शादाब अलीम और आभार डा. इरशाद सियानवी ने प्रकट किया। संचालन का दायित्व डाॅ. अलका वशिष्ठ ने निभाया। कार्यक्रम का शुभारम्भ सईद अहमद ने पवित्र कुरान के पाठ से किया। इस अवसर पर लेखक का परिचय कराते हुए डा. आसिफ अली ने कहा कि प्रो. असलम जमशेदपुरी का अदबी सफर बहुत लम्बा है व काबिले रश्क भी, आपकी अब तक 36 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। प्रो. असलम जमशेदपुरी की शख्सियत व फन पर पांच पुस्तकें भी प्रकाशित हो चुकी हैं और पाँच विश्वविद्यालयों में आपकी कहानियों और पुस्तकों पर शोध हो चुके हैं। जिसमें एलेग्जेन्डर विश्वविद्यालय मिस्र सम्मिलित है। पाँच विश्व विद्यालयों के पाठ्यक्रमों में आपकी पुस्तकें शामिल हैं। प्रो. असलम जमशेदपुरी की बहुत सी कहानियों का हिन्दी, इंग्लिश, अरबी, जर्मन, बंगला एंव मलयालम में अनुवाद हो चुका है। पुस्तक की समीक्षा करते हुए चाँदनी अब्बासी ने कहा कि ‘‘बहुरूपिया‘‘ में बहुरंगी धज की कहानियाँ हैं, इन कहानियों में समाज के विभिन्न हिस्सों या वर्गों के लोग हैं। पढ़े लिखें हैं तो बेपढ़े भी हैं, शहरी हैं तो गाँवों के भी हैं, मालिक हैं तो नौकर भी हैं, देसी हैं, विदेशी हैं, हिन्दु हैं मुसलमान हैं, स्त्री हैं पुरूष हैं, बुलन्दशहरी हैं इलाहाबादी भी हैं। शोषण, बेरोजगारी और गरीबी है तो अपने प्राण देकर भी रवायतों को निभाने वाले और बाअदब-खानदानी लोग भी हैं। गरज़ यह की एक बहुवर्णी समाज जिसके वैविध्य को एकरूपता के ताने-बाने में कसने की कवायद आज के समय में दिखाई देती है, वह इन कहानियों में अपने वास्तविक और बहुरंगी रूप में मौजूद हैं।
हिंदी व उर्दू का रिश्ता बहुत गहरा
विमोचन के बाद HOD प्रो. असलम जमशेदपुरी ने संगोष्ठी के विषय पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हिन्दी-उर्दू की कवायद यानी कि व्याकरण एक है इसीलिए इनका रिश्ता बहुत गहरा है। दोनो का वाक्य विन्यास एक है। दोनों भाषाएँ एक-दूसरे से ऐसे गुथीं हुई हैं जैसे गुल और खुशबू चाहकर भी कोई इन्हें अलग नहीं कर सकता।इस अवसर पर सैयद अतहरूद्दीन मैमोरियल सोसायटी ने उर्दू अकादमी के सदस्य नामित होने पर प्रो. असलम जमशेदपुरी का सम्मान किया।
‘बहरूपिया’ को बताया अच्छी किताब
संगोष्ठी में अपने विचार व्यक्त करते हुए प्रो. वाई विमला ने कहा कि उर्दू विभाग रंगारंग कार्यक्रमों का आयोजन करता रहता है, इस कड़ी में आज की संगोष्ठी का विषय भी बड़ा खूबसूरत है ‘हिन्दी-उर्दू का आपसी रिश्ता‘ जो कि उर्दू विभाग के प्रेमचंद सेमिनार हाॅल में आयोजित हो रहा है, यह खुद अपने आप में हिन्दी-उर्दू के रिश्ते को दर्शाता है। उन्होंने ’बहुरूपिया’ को एक अच्छी पुस्तक बताते हुए कहा कि इस पुस्तक के माध्यम से लेखक समाज के कई रूप प्रस्तुत करके हमारे सामने आईना रख दिया है।
हिन्दी-उर्दू में कोई फर्क नहीं
डाॅ. बीएस यादव ने कहा कि हिन्दी उर्दू के दरम्यान गहरा रिश्ता है। ग्रामर और जुमलों की बनावट एक जैसी है और उसे समझने में किसी को कठिनाई नही होती है। मात्र लिपि बदल देने से पुस्तकें हिन्दी-उर्दू हो जाती है। साहित्य कलामंच के अध्यक्ष डाॅ. रामगोपाल भारतीय ने कहा कि हिन्दी-उर्दू में कोई फर्क नहीं है। हम भाषाओं के नहीं, साहित्य के गुलाम हैं।
भाषाएँ नफरतों का नहीं, प्रेम का प्रतीक होती है: नवाज़ देवबंदी
आलमी शायर व सूबे की सरकार में मिनिस्टर रहे डा. नवाज देवबंदी ने कहा कि भाषाएँ नफरतों का नहीं प्रेम का प्रतीक होती हैं, राजनेता उन्हें अपने-अपने स्वार्थ के लिए प्रयोग करते हैं। अगर इन दोनों भाषाओं को जोड़कर महात्मा गाँधी की सोच के अनुरूप एक कर दिया जाए तो हमारे देश की बहुत सी समस्याएं स्वयं समाप्त हो जाएंगी। श्री ज्ञानप्रकाश ने कहा, कि भाषाओं का रिश्ता सांसो और दिल से जुड़ा होता है हमारी भाषाओं से जो शब्द निकलते हैं वो हिन्दी और उर्दू दोनो के जानकार आसानी से समझ लेते हैं इसलिए उन्हे उर्दू और हिन्दी के खानो मे नहीं बाँटा जाना चााहिए।