साहित्य

फेमिनिस्ट:कौन लोग होते है, मतलब क्या है इस शब्द का..

दिव्या  शर्मा
फेमिनिज्म की जब बात आती है तो फेमिनिज्म को अश्लीलता के अनुमोदक, स्वछंदता के पक्षधर व संस्कारहीन विचारों के अनुयायियों से लगाया जाता है।हमारे देश में फेमिनिस्ट होने का मतलब समाज में दुराग्रह फैलाने वाले बन चुका है।
किसी महिला ने अपने ऐसे विचार रख दिए जो धारा के विपरीत हैं तो उसे फेमिनिस्ट कह दिया जाता है।फेमिनिस्ट शब्द गाली की तरह प्रयुक्त करने का प्रयास चलता रहता है।
असल में क्या है #फेमिनिज्म ,इसकी अवधारणा क्या है और आप किन्हें फेमिनिस्ट समझ सकते हैं इन्हें समझना बहुत जरुरी है।
फेमिनिस्ट का अर्थ-
फेमिनिस्ट कौन लोग होते है? फेमिनिस्ट का मतलब क्या है?
फ़ेमिनिस्ट का अर्थ है नारीवाद जोकि राजनीतिक, आर्थिक, व्यक्तिगत और सामाजिक लिंग सम्बंधी समानता को परिभाषित करने, स्थापित करने और उनको प्राप्त करने के एक लक्ष्य को साझा करते हैं। इसमें महिलाओं के लिए पुरुषों के समान शैक्षिक और पेशेवर अवसर देना शामिल है ।नारीवादी सिद्धांतो का उद्देश्य लैंगिक असमानता की प्रकृति एवं कारणों को समझना तथा इसके फलस्वरूप पैदा होने वाले लैंगिक भेदभाव की राजनीति और शक्ति संतुलन के सिद्धांतो पर इसके असर की व्याख्या करना है। स्त्री विमर्श संबंधी राजनैतिक प्रचारों का जोर प्रजनन सम्बंधी अधिकार, मातृत्व अवकाश, एक समान वेतन का अधिकार, घरेलू हिंसा, यौन उत्पीड़न आदि पर नारी व पुरुष के एक समान अधिकार व उसके फलस्वरूप उत्पन्न भेद भाव से है । स्त्रीवादी विमर्श का मूल आधार है कि कानूनी अधिकारों का आधार लिंग भेद न बने, पुरुषों को विशेष अधिकार व स्त्री का शोषण ना हो और जो लोग इस अवधारणा की पैरवी करते हैं वो फ़ेमिनिस्ट कहलाते हैं।किसी भी मनुष्य को उसके मनुष्य होने के लिए संघर्ष का नाम ही फेमिनिज्म है।
स्पष्ट और व्यापक अर्थ होने के बाद भी ऐसे विचारों को फेमिनिज्म में स्थापित करने का प्रयास किया जा रहा जो विचार महिलाओं के विचारों को गलत दिशा में मोड़ने की चाल चल रहे हैं।अधिकारों के साथ कर्तव्यों को भी समझना बेहद जरूरी होता है।समाज में रहने के लिए कुछ कर्तव्य,स्त्री और पुरूष दोनों के लिए जरुरी है।स्वतंत्रता और समानता के नाम पर सिगरेट और शराब का सेवन की पैरवी फेमिनिस्ट होने की निशानी नहीं है क्योंकि यह एक किस्म का अपराध है जो मानव जाति के लिए घातक है और यह महिला पुरुष दोनों के लिए ही हानिकारक है।यह बात अलग है हमारे गाँव देहातों में बीड़ी और हुक्का महिलाएं भी वर्षों से पीती आ रही हैं।
        यौन इच्छा की स्वतंत्रता मनुष्य का व्यक्तिगत मामला है उसे स्त्री विमर्श से जोड़कर स्त्रियों को खुद के उपभोग के लिए मानसिक रूप से तैयार करना है।यह फेमिनिज्म नहीं है बल्कि फेमिनिज्म के नाम पर महिलाओं को वस्तु बनाएं रखने की चाल है।
   समानता के नाम पर ब्रा न पहनने की मुहिम एक बेवकूफी से बढ़कर कुछ नहीं थी।पुरूषों को तुम्हारे ब्रा पहनने और न पहनने में क्या रूचि होने लगी?ब्रा तुम्हारे वक्षःस्थल के सपोर्ट के लिए जरुरी है कि नहीं यह तुम निर्धारित करो।इसके लिए मुहिम चला कर फेमिनिज्म का कौन सा विशिष्ट उदाहरण पेश किया गया समझ नहीं आया।आज से तीस साल पहले महिलाएं ब्रा का रेगुलर इस्तेमाल करती भी नहीं थी।गाँव में अभी भी हमसे पहले की पीढी ब्रा पहनना पसंद नहीं करती।यदि यह फेमिनिस्ट होने की निशानी है तो गाँव में अधिकतर महिलाएं फेमिनिस्ट है।
शिशु को स्तनपान कराने के लिए आपको अपने वक्षःस्थल को उघाड़ना है तो यह तुम्हारी मर्जी है।
इसके लिए ब्रांड एंबेसडर बनकर प्रदर्शन बुद्धिमत्ता तो कतई न थी।महिलाओं को समानता के अधिकार में इसकी आवश्यकता है ऐसा मुझे नहीं लगता क्योंकि सड़कों पर मजदूरी करती महिलाएं आपको इस प्रकार अपने बच्चे को स्तनपान कराती दिख जायेगी।
माहवारी पर बात करें क्योंकि यह आपके स्वास्थ्य और आपके आराम के लिए जरूरी है।माहवारी का संबंध नयी संतति से है तो इस पर बात करना शर्म का विषय नहीं है लेकिन माहवारी से निकलने वाले रक्त को अपने शरीर पर मलना फेमिनिज्म नहीं मानसिक कुपोषण की निशानी है।जहाँ जरूरी है शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर बात करना।जहाँ जरूरी है आर्थिक विकास में महिलाओं के योगदान की बात करना।वहाँ यह बेवकूफी भरे क्रियाकलापों को शामिल कर फेमिनिस्ट होना मुर्खता की निशानी बना दिया गया है।
दिव्या  शर्मा
गुडगांव हरियाणा
सम्पर्क सूत्र- sharmawriterdivya@gmail.com

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