साहित्य

ये छूटते बीतते बिछड़ते से पल-गुजरते बरस के गुजरते से पल

ये छूटते बीतते बिछड़ते से पल
गुजरते बरस के गुजरते से पल
पाना खोना आना जाना है जीवन की रीत जाते-जाते यही समझाते से पल…

कभी आसां रही कभी दुश्वारियां
कभी बीते है तन्हा कभी मिली यारियां
कभी लाए सुकून तो कभी बेचैनियां
कभी डूबी गमों में कभी खुशवारियां
रहे हर रंग में डूबे चितेरे से पल ..
ये गुजरते बरस के गुजदते से पल..

सीमा पर लड़े कभी खाकी पहन
लड़े अस्पतालों में बांध सर पे कफन
आंसुओं से लड़े ये मुस्कानें पहन
हौसले उनके लेकिन ना हुए कभी कम
आसमां पे तिरंगे से फबते ये पल…
ये गुजरते बरस के गुजरते से पल…

मिली ठोकरे अपनों से कभी
हंस के गैरों ने दामन है थामा कभी
कभी शिकवे मिले तो तारीफें कभी
कभी ठिठके तो सरपट है भागे कभी
ये मौसमों से होकर गुजरते से पल…
गुजरते बरस के गुजरते से पल..

कुछ आईने दिखाएं कुछ सबक दे गए
कुछ का छीना है सब कुछ को सब दे गये
चंद सांसे किसी को उधार ना मिली
कुछ को जीने का फिर से ये हक दे गए
फलसफा जिंदगी का पढ़ाते से पल …
गुजरते बरस के गुजरते से पल….

       …सोनिया सिंह

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