मुजफ्फरनगर के नुमाईश पंडाल में आयोजित हुआ आल इंडिया मुशायरा

मुजफ्फरनगर में एक बार फिर अदब की महफ़िल सजी। नुमाइश पंडाल शायरों के कलाम और अशआरो से गुजिश्ता रात गुलो-गुलजार हो गया।
जिंदगी को लफ्जों के पैमाने से झांकती शायरी को शायरों ने पेश किया। मुहब्बत की नर्म आहें और सियासत के सीने में नश्तर की तरह चुभते तंज के तीर। कुछ ऐसे लम्हो के बीच नुमाइश पंडाल में आल इंडिया मुशायरे की महफिल खूब जमी।
श्रोताओं ने भी प्रो. वसीम बरेलवी, नवाज देवबंदी और मंजर भोपाली सहित मुकामी शायरों के कलाम सुन दादो तहसीन से नवाजा।
संजीदा शायर प्रो. वसीम बरेलवी ने सदारत के फरायज अंजाम देते हुए पढ़ा-
आंखे मूंद लेने से खतरा न जाएगा। देखना पड़ेगा जो देखा न जाएगा। उन्होंने बदगुमानी से बाहर आने की हिदायत देते हुए पढ़ा-बदगुमानी को नहीं छोड़ते खामोशी पर, अरे बात कीजिये तो कोई हल भी निकले। उन्होंने मौजूदा हालात पर तंज कसा-शोर होता था तो कानों से सुना जाता था, अब तो ये हाल हुआ के नजर आता है।
मुल्क के मशहूर शायर मंजर भोपाली ने अपने संजीदा अंदाज में गजल और नज्म दोनों पेश की।
उन्होंने बेटियों का दर्जा बयान करते हुए पढ़ा-बेटियों के लिए हाथ उठाओ मंजर, सिर्फ अल्लाह से बेटा नहीं मांगा करते। इनको आंसू भी जो मिल जाएं तो मुस्काती हैं, बेटियां तो बड़ी मासूम हैं जज्बाती हैं। इनसे कायम है तकद्दुस हमारे घर का, सुबहो वो अपनी नमाजो से यह महकाती हैं। लोग बेटों से रखते हैं तवक्को लेकिन, बेटियां अपनी बुरे वक्त में काम आती हैं।

मुजफ्फरनगर के मशहूर शायर डॉक्टर तनवीर गौहर ने अपने अंदाज में कुछ यू कहा-
मुझको भुला दो तुमने खत में लिखा है।भूल के तुझको जिंदा रहना मुश्किल है…
नवाज देवबंदी ने उस्ताद का मर्तबा बयां करते हुए पढ़ा-जूते सीधे कर दिये थे एक दिन उस्ताद के, उसका बदला ये मिला तकदीर सीधी हो गई। उन्होंने घमंड करने वालों को नसीहत दी-ज्यादा वजन पर अपने कभी मगरूर मत होना, तिनका तैरता रहता है पत्थर डूब जाते हैं।
हाशिम फिरोजाबाद ने अपने पुरखुलूस अंदाज में शायरी पेश कर समा बांध दिया। उन्होंने पढ़ा
ऐ खाके वतन तेरे निगहबां बहुत हैं, भारत की हिफाजत को मुसलमां बहुत हैं।
विजय तिवारी भोपाली ने खास अंदाज में शेर सुनाकर लोगों के दिलों को झकझोर दिया। उन्होंने पढ़ा
खेल खिलाने ले जा बाबू, मुन्ना दिल बहला लेगा। तेरा मुन्ना खेलेगा तो मेरा मुन्ना खा लेगा।
शायर खुर्शीद मुजफ्फरनगरी ने पढ़ा-मेरी जानिब मुहब्बत से न देखो, मूुहब्बत पर जवाल आया हुआ है।
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खुश्बू मुजफ्फरनगरी ने पुरखुलूस अंदाज में शेर पढ़ा।इस तरह सोचना भी कोई शान है, वो है हिंदू, वो सिक्ख…
मुशायरा देर रात तक चला। हज़ारो की भीड़ ने मुशायरे की संजीदगी से सुना।