प्रदेश का जनाधार गठबंधन के साथ: सोमपाल शास्त्री

मुजफ्फरनगर। राष्ट्रीय लोकदल के रणनीतिकार, पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री एवं योजना आयोग के सदस्य रहे सोमपाल शास्त्री ने आज वरिष्ठ पत्रकार एवं किसान चिंतक कमल मित्तल के साथ फोन पर उत्तर प्रदेश में हूए प्रथम चरण के मतदान के बारे में बेबाकी से अपनी बात रखी।
चौधरी सोमपाल शास्त्री ने कहा कि 10 फरवरी को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 58 सीटों पर मतदान हुआ है,मैंने इसको बहुत नजदीक से देखा है।मै सारी चुनावी प्रक्रिया को पिछले 3 महीने से देख रहा हूं। मैं आपसे और अन्य मित्रों से भी बात करता रहा हूं और जो भी हुआ है 10 तारीख को, इसको भी मैंने बहुत नजदीक से देखा है।भारतीय जनता पार्टी का 2017 में इन 58 सीटों में से 53 सीटों पर कब्जा रहा है , लेकिन इस बार स्थिति इसके बिल्कुल विपरीत जा रही है । मैंडेट इन के पक्ष में नहीं है इनके विरोध में है। मैं सीटें गिनता जा रहा हूं ,आप थानाभवन ,शामली , कैराना ,छपरौली ,बागपत बड़ौत ,मोदीनगर, मुरादनगर ,गाजियाबाद, मुजफ्फरनगर की छ: की छ: सीट गठबंधन के पक्ष में जा रही है , एक भी सीट भारतीय जनता पार्टी की दिशा में जाती हुई नहीं दिखाई दे रही है और तो और मै एक बात स्पष्ट करना चाह रहा हूं कि एक बात देखने में आई है कि शहरी क्षेत्र और अर्ध शहरी क्षेत्र जहां आम मतदाता अभी भी काफी संख्या में भारतीय जनता पार्टी के साथ जुड़ा है , ऐसा माना जाता है कि वहां मतदान कम हुआ है और इसमें वास्तविकता भी है। ग्रामीण क्षेत्रों में मतदान बहुत अधिक हुआ है,जहां अल्पसंख्यक वर्ग का घनत्व ज्यादा हैं वहां मतदान बहुत अधिक हुआ है ,उदाहरण के तौर पर कैराना में रिकॉर्ड मतदान हुआ है 75% । एक बात और देखने में आई है कि जो मतदाता भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में मतदान करने वाला है,जिससे अपेक्षा की जाती है कि भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में उत्साह के साथ मतदान करेगा ,उनमें उत्साह की भारी कमी थी और भारतीय जनता पार्टी के कई प्रत्याशियों ने अपनी हताशा , निराशा का कई जगह स्पष्ट प्रदर्शन भी किया,जैसे कि एक समाचार पत्र टाइम्स ऑफ इंडिया में मेंने पढ़ा और वह सोशल मीडिया पर भी देखने को मिला है । सरधना क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी ने पोलिंगअधिकारी के साथ गाली गलौज एवं मारपीट किए हैं जिसके लिए भाजपा प्रत्याशी के खिलाफ प्राथमिकी भी दर्ज की गयी है। यह क्या दिखलाता है,निराशा दिखती है । हमारे मित्र राजनाथ सिंह जी के पुत्र प्रिय पंकज नोएडा से चुनाव लड़ रहे हैं और पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में नोएडा में सबसे कम मतदान हुआ है क्योंकि वहां शहरी क्षेत्र में प्रबुद्ध वर्ग रहता है और भी कई जगह देखेंगे जहां शहरी क्षेत्र है जैसे आगरा वहां मतदान का प्रतिशत कम रहा है,ग्रामीण क्षेत्र के मतदाताओं ने डटकर वोट डाला है ,अल्पसंख्यक वर्ग के लोगों ने भी डटकर वोट डाला है। इस सब की भूमिका किसान आन्दोलन में पिछले वर्ष बन चुकी थी।
श्री सोमपाल शास्त्री ने कहा कि मुझे तो लगता है कि इन 58 सीटों में से 40 सीटें समाजवादी पार्टी और रालोद गठबंधन को जाती हुई दिख रही है। यह बात मैं धरातल से सूचनाएं एकत्रित हुई हैं, उसके आधार पर कह रहा हूं। उसमें एक बात निकल कर आई है पहले दौर में बहुजन समाज पार्टी प्राय समाप्त होती दिखाई दे रही है। अगर बहुजन समाज पार्टी को एक या दो सीट मिलती है तो यहआश्चर्य की बात होगी। सहारनपुर के रामपुर मनिहारान में बताया जाता है कि बसपा का प्रत्याशी अच्छे से चुनाव लड़ा है इसका भी कुछ कारण रहा होगा, वैसे वहां दलित समुदाय की संख्या काफी तादाद में है। अधिकांश सीटों पर जैसे गाजियाबाद ,साहिबाबाद सीट को देखें ,जिन्हें भारतीय जनता पार्टी की सीट माना जाता था ,वहां पर भी मतदान बहुत कम हुआ है। ये जो सब सूचनाएं है ,इस बात की ओर इशारा करती हैं कि भारतीय जनता पार्टी को बहुत बड़ी हानि होने जा रही हैं मतदान के पहले दौर में ।ऐसी ही स्थिति दूसरे दौर में भी रहने वाली है,हो सकता है की दूसरे दौर की स्थिति कुछ इससे भी बद्तर हो। पहले दो चरणों में कम से कम 70से 80 सीट का नुकसान भारतीय जनता पार्टी को होगा। बाकी जो पांच चरण भी मिलाएं तो मुझे तो यह बहुमत के निकट जाते दिखाई नहीं देते, ऐसा मेरा आंकलन है। जहा तक बात माननीय प्रधानमंत्री जी के वक्तव्य को लेकर , चाहे उनके वादे रहे हो या मेक इन इंडिया का सवाल रहा हो, स्वच्छ भारत का सवाल रहा हो या प्रशासन में स्वच्छता और पारदर्शिता लाने का सवाल रहा हो वह जिस तरह की भाषा बोलते हैं ,वह प्रधानमंत्री पद की गरिमा के अनुकूल नहीं है। पहले भी मैं कर चुका हूं इस तरह की बड़ी बात कहना उनके स्वभाव का अंग है,इसको बहुत गंभीरता से लेने की आवश्यकता नहीं है।
श्री सोमपाल शास्त्री ने बताया कि वोटर प्राय तीन प्रकार का होता है एक वोटर होता है जो विपक्ष के साथ कमेटिड होता है , एक वोटर सत्ता पक्ष के साथ कॉमेटिड होता है तथा तीसरा वोटर ऐसा होता है जिसे पार्टी में कोई रुचि नहीं होती वह सत्ता पक्ष या विपक्ष के साथ नहीं होता वह सत्ता पक्ष की इनकंबेंसी व स्थानीय इनकंबेंसी से प्रभावित होता है। पहले समाचार यह आया था कि जो कुछ बुद्धिमत्ता की बात है कि भारतीय जनता पार्टी अपने पुराने लगभग 40% प्रत्याशियों को बदलने के बारे में कह रही थी ।लेकिन पहले पहले दौर में सभी नाम लगभग पुराने ही रखे गए हैं। पश्चिम उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा समस्या गन्ना किसानों की रही है, 2013-14 के चुनाव ,2017 के चुनाव ,2019 के चुनाव में जितने भी वायदे किए थे भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने माननीय प्रधानमंत्री सहित और आंकड़ों के साथ किए थे। गन्ने के दाम ₹400 होना चाहिए , 14 दिन में भुगतान होगा, किसानों की आय दोगुनी की जाएगी, स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट लागू की जाएगी , ऐसे किसी भी वादे पर सरकार खरी नहीं उतरी,लेकिन आखिरी कील ठोकी इस एक वर्ष से अधिक के किसान आंदोलन ने ,जिससे ग्रामीण जन समुदाय खासतौर से किसानों की मानसिकता को बिल्कुल सरकार के विपरीत कर दिया बहुमत में, कुछ लोग तो रहते हैं सरकार के साथ। दूसरी बात जो बीच का मतदाता था जिसे तटस्थ मतदाता कहा जाता है जो चुनाव की हवा देखकर और उस समय तक सरकार के क्रियाकलाप का आंकलन करके जैसा उसके मन के ऊपर उसका प्रभाव पड़ता है उससे प्रभावित होता है, वह जो तटस्थ मतदाता है अधिकांशत वह पिछले तीन चुनावों में 2014, 2017,2019 में भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में गया था ,वह बड़ी भारी संख्या में मुड़कर विपक्ष की ओर हो गया है। विपक्ष का मतदाता उत्साह में देखा गया,सत्तापक्ष का मतदाता अनुत्साहित था , उनके अंदर फूट भी थी, तटस्थ मतदाता अधिकांशतः सरकार के विपरीत गया है।मुजफ्फरनगर में 2013 में हिंसा की घटना के बाद उसका रिएक्शन आसपास के जनपदों बागपत में भी दिखाई दिया थाऔर आपको याद होगा कि उस समय मुझे समाजवादी पार्टी का प्रत्याशी घोषित कर दिया गया था चुनाव से लगभग 1 वर्ष पहले। मैंने दुखी होकर खिन्न होकर अपनी लोकसभा प्रत्याशी पद त्याग दिया था।2013 के झगड़े का लाभ भारतीय जनता पार्टी को मिला। 2013 के झगड़े के बाद हमारा समाज जाति में बट गया इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता, कि किसी भी जाति ने अल्पसंख्यक वर्ग के साथ झगड़ा नहीं किया, इसमें हमारी जाति के लोगों जाट के साथ ही अल्पसंख्यक वर्ग का झगड़ा रहा और जाट समुदाय का प्रभुत्व पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कितना है, आप जानते हैं और उसी का परिणाम आपके सामने है। दोनों वर्गों ने स्वयं समझा किस तरह धार्मिक उन्माद फैलाकर भारतीय जनता पार्टी तीन बार सत्ता का लाभ ले चुकी है और एक बार फिर इसी आधार पर सत्ता में आने के लिए प्रयत्नशील है। दोनों पक्षों ने स्वत ही आपसी दूरी को कम किया और साथ मिलकर चलें जिसका नतीजा आपके सामने है।