रमज़ान के पहले जुमे की नमाज में खुदा की बारगाह में रोजेदारों का सजदा

देश में अमन चैन की दुआ को उठे हजारों हाथ
-दो सालों बाद लौटेगी रौनक, जिला प्रशासन भी मुस्तैद

मुजफ्फरनगर। कोरोना की पाबंदियों के बीच दो सालों से रोजेदारों को एकसाथ नमाज पढ़ने की मनाही थी। पाबंदियां हटने के बाद रमजान के पहले पहले जुमे को शहर की सभी मस्जिदों में रोजेदारों के द्वारा नमाज अता की गयी। दौरान देश में अमन-चैन की दुआ मांगी गयी। मस्जिदें तो रमजान की शुरुआत से ही गुलजार हो गई थी, लेकिन जुमे की नमाज के साथ दो साल पुरानी रौनक भी लौट आई। मुकद्दस रमजान में की गई रोजे की इबादत न सिर्फ इंसानी जिस्म को कूवत पहुंचाती है, बल्कि उसको रुहानी (आत्मिक) सुकून भी अता करती है। सहरी में रोजे की नीयत से लेकर इफ्तार तक सब्र और खाने-पीने की पाबंदी किसी भी रोजेदार के गुनाहों को अल्लाह की बारगाह में बख्शवाने का बड़ा जरिया साबित होते हैं। मुजफ्फरनगर शहर में ही करीब 200 मस्जिदें आबाद हैं, जहां आज नमाजे जुमा अदा की गई। इस्लामी हिजरी कैलेंडर का नौंवा महीना रमजान कहलाता है। इस पाक और मुकद्दस महीने की खास इबादत रोजा है। इस पूरे महीने 30 दिन तक यदि कोई बुराई को छोड़ दे, तो समझा जाता है कि वह बुराई से हमेशा दूर हो गया। 30 दिनों के रोजों की इबादत इंसान के नफ्स का पाक यानी उसके अंतर्मन को पवित्र कर देती है। मुफ्ती जुल्फिकार फरमाते हैं कि रोजे का मतलब होता है सोम, यानी बुरे काम से बचना। उन्होंने फरमाया कि जुमे का दिन बाजमात दो रकअत नमाज के लिए है। इस दिन रोजे की इबादत और नमाज इंसान के ईमान के लिए खास है। उन्होंने फरमाया कि अल्लाह ने हुक्म दिया है कि ऐ ईमान वालों रोजे तुम्हारे लिये फर्ज कर दिए गए हैं। जैसे तुमसे पहले लोगों पर फर्ज किए गए थे। शायद तुम अल्लाह से डरने वाले बन जाओ। शहर मुफ्ती जुल्फिकार हुसैन फरमाते हैं कि दिन भर भूखा प्यासा रहने का मतलब ही रोजा नहीं है। बल्कि अपने नफ्स पर काबू कर बुराईयों को छोड़ने का नाम रोजा है। अपने को पाक रखकर रोजे में दूसरों की भलाई और नमाज में उनके लिए दुआ इस माह की बेहतरीन इबादत में शुमार है। इस माह में अल्लाह अपने खास बंदों को नेमत देता है।




