जेल में बैठकर अपराधों का संचालन आखिर कैसे?
NarvijayYadav
पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, चंडीगढ़ और दिल्ली में फिरौती, हत्या और नशीले पदार्थों का नेटवर्क चलाने वाला कुख्यात गैंगस्टर लॉरेंस बिश्नोई देश की सबसे सुरक्षित मानी जाने वाली तिहाड़ जेल से अपना नेटवर्क चलाता आ रहा है। वह अपने गैंग को एक कंपनी की तरह ऑपरेट करता है, वह भी तिहाड़ जेल से। उसके इशारे पर काम करने वाले बाकी गैंगस्टर दुबई, कनाडा, ऑस्ट्रिया जैसे देशों में बैठे हैं और वहीं से अपने गुर्गों और शॉर्प शूटर्स के जरिए उत्तर भारत में अपराधों को अंजाम देते हैं। लॉरेंस जेल में बैठकर हत्या और अवैध वसूली का धंधा कर रहा है, ऐसे में सवाल यह उठता है कि तिहाड़ जैसी जेल से वह यह सब कैसे कर पा रहा है। जाहिर है कि वह जेल में मोबाइल इस्तेमाल करता है, क्योंकि और तो कोई तरीका हो नहीं सकता बाहर की दुनिया से जुड़ने का। जेलों में बंद गैंगस्टर और कुख्यात अपराधियों के पास मोबाइल फोन होना बहुत ही खतरनाक ट्रेंड है। पंजाब के जेल मंत्री ने स्वीकार किया है कि राज्य की जेलों में मोबाइल फोन इस्तेमाल होते हैं। उन्होंने घोषणा की है कि प्रदेश की जेलों को 6 महीने के अंदर मोबाइल मुक्त कर दिया जाएगा। वैसे तो मोबाइल को नाकाम करने के लिए जैमर टैक्नोलॉजी मौजूद है। जेलों में जैमर लगाने से कोई भी अनधिकृत व्यक्ति मोबाइल फोन का प्रयोग नहीं कर पाएगा।
इन दिनों चारधाम यात्रा नित नए रिकॉर्ड बना रही है। पिछले माह अकेले केदारनाथ धाम 14 लाख लोग पहुंच गए। पिछले 7 महीनों में 34 लाख लोग केदारनाथ जा चुके हैं। चारधाम यात्रा के इतिहास में ऐसा पहली बार हो रहा है कि इतनी भारी भीड़ वहां पहुंची है। पता लगा है कि पैदल यात्रियों से ही रास्ते में जाम लगने लगा है। लगता है कोविड के दौरान दो वर्षों तक घरों में बैठे रहे लोग अब आंखें मूंद कर पहाड़ों की ओर भाग रहे हैं। पिछले दिनों केदारनाथ मार्ग पर बहुत सारे घोड़े और खच्चरों की मौत हो गई। पैसों के लालच में खच्चरों से कई-कई चक्कर लगवाए जा रहे थे। घोड़ों को आराम नहीं करने दिया जाता था और उनके खाने-पीने का भी ख्याल नहीं रखा जा रहा था। मृत पशुओं को मंदाकिनी नदी में फेंक दिया जाता था। सोशल मीडिया पर इस मुद्दे ने तूल पकड़ा, तब कहीं उत्तराखंड सरकार एक्शन में आई और अनधिकृत लोगों पर कार्रवाई की गई। सरकार ने घोड़े-खच्चरों का सिर्फ एक चक्कर लगाने की अनुमति दी है और ऊपर पहुंचने पर उन्हें 3 घंटे विश्राम करने दिया जाएगा। यह एक अच्छा बदलाव है, जो पशु-प्रेमियों की सजगता और सोशल मीडिया की वजह से संभव हुआ है।
गर्मी सारे रिकॉर्ड तोड़ रही है और सूरज की तपिश कम होने का नाम नहीं ले रही है। धूप के कारण गर्मी होती है, ऐसे में यदि धूप को धरती पर आने से रोका जा सके तो गर्मी कम हो सकती है। यह एक विचार है, जिसकी पुष्टि हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के एक रिसर्चर, डॉ. ये टाउ ने की है। वह कहते हैं कि अगर खेतों और मकानों की छतों पर दर्पण लगा दिए जाएं, तो सूरज के हानिकारक विकिरण और ताप से बचाव हो सकता है। दर्पण सूरज की किरणों को परावर्तित कर देंगे, जिससे धूप वापस आकाश की ओर चली जाएगी और पृथ्वी गर्म होने से बच सकती है। आइडिया तो अच्छा है अगर वास्तव में कारगर हो जाए।
सोशल मीडिया की मदद से हम दूरदराज बैठे लोगों के निरंतर संपर्क में बने रहते हैं और अपने विचार पलक झपकते ही दुनिया भर में फैला सकते हैं। परंतु इससे हमारे आसपास के लोगों और रिश्तेदारों से हमारा संपर्क कम हुआ है, फलस्वरूप अकेलेपन की समस्या सिर उठा रही है। महामारी के समय में यह समस्या और भी जटिल हो गई, जब लॉकडाउन के चलते लोगों का आपस में मिलना-जुलना ही बंद हो गया था। अकेलेपन से सिर्फ बोरियत ही नहीं होती, बल्कि इसके कारण कैंसर, डायबिटीज, हृदय रोग और असमय मृत्यु के मामले बढ़े हैं। परिपक्व उम्र के लोग तो फिर भी ऐसी परिस्थितियों से निबटने के तरीके जानते हैं, लेकिन युवाओं के लिए अकेलापन एक बड़ी समस्या है। अकेलेपन से की समस्या को कम किया जा सकता है।
क्या आपने इस ओर ध्यान दिया है कि हमारे आसपास पक्षी बहुत कम हो गए हैं। जो पक्षी 20-30 साल पहले हम देखा करते थे, उनकी संख्या घटती जा रही है। बहुत सी प्रजातियां एकदम से गायब हो गई है। इसके पीछे एक बड़ा कारण तो यह है कि दुनिया भर में कीट-पतंगों की संख्या और उनकी प्रजातियां बहुत तेजी से नष्ट हुई है। एक आकलन के अनुसार कीटों की 75% प्रजातियां समाप्त हो चुकी हैं। ये कीट पक्षियों का भोजन बनते थे। जाहिर है कि कीटों को खाकर जीवित रहने वाले पक्षी भी कम हो गए हैं। ऐसा खेतों में कीटनाशकों के अधिक प्रयोग के कारण हुआ। इससे न सिर्फ कीटों का खात्मा हो गया, बल्कि कृषि भूमि की गुणवत्ता भी बिगड़ गई। मिट्टी की गुणवत्ता को बिगड़ने से बचाने और इस बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए इशा फाउंडेशन के सद्गुरु जग्गी ने हाल ही में कई देशों की यात्रा की है। पर्यावरण को बिगाड़ने में मनुष्य की लालची प्रवृत्ति ने बड़ा रोल प्ले किया है। विकास के नाम पर पिछले 25 सालों में 13 लाख वर्ग मील से अधिक जंगल काट दिए गए। विश्व बैंक का अनुमान है कि मनुष्य ने बीसवीं सदी में अब तक एक करोड़ वर्ग मील जंगल काट कर समाप्त कर दिए, जिससे जैव विविधता नष्ट हुई है और पृथ्वी पर तापमान में वृद्धि हुई है। कोरोना काल में प्रकृति ने अनेक तरीकों से मनुष्य का ध्यान इस ओर आकर्षित किया कि यदि धरती का नुकसान किया जाएगा तो प्रकृति को संतुलन बनाना आता है।
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लेखक एक वरिष्ठ पत्रकार एवं कॉलमिस्ट हैं।
टि्वटर @NarvijayYadav