साहित्य
सखी री आया रे मधुमास…
सखी री देखो
आया रे मधुमास…
मुकुलित है चतुर्दिक्
नवजीवन का आभास…
नव किसलय का स्पन्दन
अलि का मनभावन गुंजन
बासंती बयार की सन-सन
मोह मन कोकिल का कूंजन
अमराई करती परिहास…
सखि री देखो
आया रे मधुमास….
झूम रही गेहूं की बाली
नाच रही सरसों की डाली
सतरंगी चुनर में लिपटी
धरा लगे कुछ और निराली
प्रकृति के अधरों पे मधुर
खेल रहा है हास…
सखि री देखो…
आया रे मधुमास….
खलिहानो में सोना बिखरे
देख किसानों के मुख निखरे
वृष दौड़ रहे उन्मत्त चाल
सपने सभी के जैसे संवरे
कंगन खनके खेतों में
भरे खुशियों का हुलास
सखी री देखो
आया रे मधुमास…
सोनिया सिंह