मेघा बरसो रे…..

सूनी हर आंख में तुम्हारी ही अभिलाषा है…
मेघा बरसों न झूम के मेरा बुंदेलखंड प्यासा है…
पथरीली हैं राहें, पथरीली पगडंडियां
पथरीले दुर्गों से, सजी संवरी सी बस्तियां
सूखे के खौफ से ,हर वासी पथराया है…
मेघा बरसों न झूमके ,मेरा बुंदेलखंड प्यासा है…
सूखी धरती पर छाती ,फाड़ता किसान है
लिए पेशानी पर ,आशंकाओं के निशान हैं
तुम्हारी अगवानी की ,उसे दृढ़ प्रत्याशा है…
मेघा बरसों न झूम के, मेरा बुंदेलखंड प्यासा है…
चौतरफा तुम घूम रहे ,जोर-जोर बरस रहे
तेरा सुनने को गर्जन , हम ही क्यों तरह रहे
आ जाओ कि टूट रही ,जन-जन की आशा है…
मेघा बरसों न झूम के, मेरा बुंदेलखंड प्यासा है…
बेतवा,धसान , केन,कालीसिंध और नर्मदा
तुम प्रसन्न हो तो , हो ये सभी सर्वसिद्दप्रदा
तुम रूठे तो घेर लेंगी, हर मन को निराशा है…
मेघा बरसों न झुम के मेरा बुंदेलखंड प्यासा है…
मेघा गरजो न ऐसे ,कि दहाड़े हो छत्रसाल
बिजुरिया चमको न ऐसे ,कि आल्हा की तलवार
है भरोसा तुम आओगे , न मन में हताशा है…
मेघा बरसों न झूम के, मेरा बुंदेलखंड प्यासा है…
अनमने से नदियां नारे, अनमने ताल तलैया
तपती रेत पे किनारे पड़ी , अनमनी सी नइया
टेर लगाते तुमको सारे ,अपनी अपनी भाषा है…
मेघा बरसों न झूम के, मेरा बुंदेलखंड प्यासा है…
जीव जंतु भटक रहे,भूख प्यास से तड़प रहे
पेड़ पौधे भी सूरज की , आग से झुलस रहे
जीव, जंतु ,वृक्ष सबको नीर की पिपासा है…
मेघा बरसो न झूम के मेरा बुंदेलखंड प्यासा है…
स्वरचित
सोनिया सिंह
उत्तर प्रदेश बांदा