साहित्य

ऑक्सीजन के अजस्र स्रोत है पेड़-पौधे:डॉ. मोनू सिंह

पेड़ पौधों में भी प्राण है। उनमें भी दिल होता है ये भी प्रेम के भूखे होते हैं। प्रकृति मय वातावरण बहती नदी, झरने, जलप्रपात, लहराते खेत, तालाब, हवा संग झूमते वृक्ष, तरंगायित सागर की लहरें,आसमान में उड़ते पक्षियों के समूह छलांग मारते हिरण आसमान में उदित होते सूरज चांद तारे ,लहराती फसलें , फलदार वृक्ष आदि मनोरम प्रकृति के दृश्य हम सबके मन को अच्छे लगते हैं प्रकृति के बिना जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती जरा सोचो और विचार करो वृक्ष यदि फल देना छोड़ दें नदियां जल देना छोड़ दें गाय दूध देना छोड़ दे मेघ जल वृष्टि छोड़ दें तो दुनिया में हाहाकार मच जाएगा।
विद्यालय में गुरुजी कक्षा 6 के विद्यार्थियों के साथ एक वृक्ष के नीचे बैठे हैं प्रकृति संस्कृति और सभ्यता तीनों छात्राओं ने एक साथ गुरु जी को प्रणाम किया और कहां सर कोई कहानी सुनाओ तभी संस्कार, सदाचार, परोपकार तीनों छात्रों ने कहा सर कहानी नहीं कोई गीत सुनाओ नहीं – नहीं आज हम किसी की बात नहीं मानेगे आप सबको हमारी बात माननी पड़ेगी बोलो तैयार हो हां सर हम सब तैयार हैं देखो बच्चों हम सबकी जिंदगी में हमारी मां का बहुत बड़ा योगदान होता है एक मां अपने बच्चों को जो शिक्षा दे सकती है उस शिक्षा का एक अंश भी सम्पूर्ण विश्व मिलकर नहीं दे सकता आज आप सब याद करके बताओ कि जब कभी आपने कोई गलती की हो और उस समय आपकी मां ने आपको महत्वपूर्ण शिक्षा दी हो उल्लास ने उल्लसित होकर हाथ उठाया सर मैं बताऊं हां हां बताओ क्या शिक्षा दी तुम्हारी मां ने सर एक दिन मेरी चाची ने तुलसी पत्ती लाने को कहा मैंने एक झटके से बहुत सी तुलसी पत्ती खींच कर तोड़ ली मेरी मां ने मुझे ऐसा करते देख कर कहां बेटा तुलसी ऐसे नहीं तोड़ी जाती सबसे पहले बैठ कर के तुलसी से आज्ञा ली जाती है मां मैं आपसे कुछ पत्तियां औषधि के लिए चाहता हूं मुझे आज्ञा दो फिर धीरे से पत्ती चुनकर तुलसी मां से क्षमा मांगो मां आपको जो कष्ट हुआ उसके लिए क्षमा चाहता हूं बेटा यह वृक्ष देवता है प्रकृति देवता है जो हमें देता है वह देवता है तब कहीं तुलसी औषधि का कार्य करेगी इन पेड़ पौधों का भी दिल होता है यह भी प्रेम के भूखे होते हैं अच्छा तुम्हारी मां ने इतनी अच्छी शिक्षा दी क्या है तुम्हारी मां का नाम श्रीमती मनोरमा देवी उल्लास की मां की प्रशंसा सुन संस्कृति बोली सर एक दिन हम बस से घूमने जा रहे थे रास्ते में एक जगह बस खड़ी हुई खिड़की में से हाथ डालकर मैंने एक वृक्ष के कुछ पत्ते तोड़ लिए मेरी मां ने कहा बेटा व्यर्थ में वृक्ष के पत्ते नहीं तोड़ते यह अच्छी बात नहीं है वृक्ष को भी कष्ट होता है सर अपनी मां का नाम बता दू हां बेटा बताओ सर मेरी मां का नाम है दयावती प्रकृति बोली सर हमारे घर में एक कुत्तिया ने बच्चों को जन्म दिया था हम सब घर के छोटे-छोटे बच्चे एक दिन छोटे-छोटे कंकड़ उन बच्चों को मार रहे थे वह बच्चे रो रहे थे मेरी मां ने देख लिया मां ने डांटते हुए मेरे सिर के बाल खींचे और जोर से पीठ में मारकर पूछा कैसा लगा मैं बोली मां बाल छोड़ो दर्द हो रहा है मां बोली इन बच्चों को भी तुम्हारे कंकड़ मारने से दर्द हो रहा है अतः कभी भी किसी दीन हीन को निर्बल को पशु को नहीं सताना चाहिए मनुष्य की प्रकृति क्रूरता नहीं करुणा है सर मेरी मां का नाम भी करुणा है सभी बच्चों ने ताली बजा दी।
सभ्यता बोली सर जब हम हाथ धोते हैं तो मां कहती है बेटी नल थोड़ा कम खोलो ताकि व्यर्थ में पानी ना बहे जब हम गिलास में पानी छोड़ देते हैं तो मां कहती है पानी उतना ही लो जितना पीना है पानी को व्यर्थ में मत फेंको किसी भी चीज का व्यर्थ में दुरुपयोग करना पाप है संस्कार ने डरते हुए पूछा सर मेरी तो मां है ही नहीं मुझे जन्म देते ही मेरी मां मर गई थी मेरे पिता ने ही मुझे पाला है क्या मैं पिताजी की शिक्षा बताऊं हां हां बेटे बताओ सर एक दिन मैं उद्यान से फूल तोड़कर फेंक रहा था तब मेरे पिताजी ने एक कहानी सुनाई थी कि भगवान महावीर की मां त्रिशला देवी अपने बालों में फूल लगाकर महावीर से पूछ रही थी बेटा मैं कैसी लग रही हूं तब महावीर स्वामी ने कहा था किसी दूसरे का घर उजाडकर आप कैसे सुंदर लग सकती हो मेरे पापा ने सिखाया बेटा फूल चुने जाते हैं तोड़े नहीं जाते और वैसे भी फूल अपनी डाली पर ही सुंदर लगते हैं सदाचार बोला सर जब हम अपने माता पिता के साथ में किसी के घर जाते हैं तो मां हमें बताती है कैसे उठना कैसे बैठना कैसे बात करना खाने के लिए कुछ नहीं मांगना और किसी चीज को गंदा नहीं करना परोपकार भला कहां चुप रहने वाला था परोपकार बोला सर मेरे पिताजी पड़ोसी के लड़के का बहुत ख्याल रखते हैं इससे मुझे जलन होती थी मैं चिढ़ता था एक दिन मैंने पिता जी से पूछा आप उसका इतना ख्याल क्यों रखते हैं उसको पढ़ाते हैं उसकी फीस भरते हैं तब पिताजी बोले बेटा इस बच्चे के पिता के पिता ने मेरी पढ़ाई करवाई थी मेरी सहायता की थी तो आज मैं अपने पैरों पर खड़ा हूं आज उसके पिताजी नहीं है मेरा कर्तव्य बनता है कि उसका ख्याल रखू। बेटा उसका साथ दे कर जीवन में परोपकार को कभी नहीं भूलना चाहिए।परोपकार के नीर से ही मानवता की बगिया महकती है अंत में सर ने कहा बच्चों प्रकृति को हम जो देते हैं प्रकृति वही हमें लौटा देती।प्रकृति को हम जीवन देंगे तो प्रकृति हमें भी जीवन देगी हम प्रकृति का जीवन छीनेगेें उसका आदर नहीं करेंगे प्रकृति को बर्बाद करेंगे तो प्रकृति भी हमें बर्बाद कर देगी संसार में प्रकृति से बड़ी कोई ताकत नहीं है प्रकृति पर किसी का बस नहीं है अतः हम सबको प्रकृति के अनुरूप जीवन जीना चाहिए इसी में मनुष्य होने की सार्थकता है।

डॉ.मोनू सिंह गुर्जर

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