साहित्य
जीवन जीने की कला

जीवन जीने की कला में,
प्रवीण होना चाहिए इंसान।
जीवन मे बिना कला के,
हैवान हो जाता है इंसान।
मानव जीवन मिलता है,
लख चौरासी के बाद।
जीवन नही रहे तब भी,
कर्म रहे आपके आबाद।
जब हम पैदा हुए,
जग हंसे हम रोए।
करनी ऐसी कर चलो,
हम हंसे जग रोए।
जीवन जीने की कला में,
प्रेम का होता है खास स्थान।
प्रेम मोहब्बत के द्वारा ही,
सबके दिल में पाते है स्थान।
जीवन में हमेशा देना,
दूसरों को मान सम्मान।
जीवन जीने की कला से,
आपका भी होगा यशोगान।
सबके साथ हो व्यवहार,
समानता और समता का।
जीवन जीने की कला में,
महत्व है वाणी की ममता का।
सादा जीवन उच्च विचार,
जीवन जीने का है महामंत्र।
इसको जीवन मे अपनाने से,
कभी नही बिगड़ता पाचन तंत्र।
कला ही बनाती है,
जीवन को निर्मल व सुंदर।
जीने में आता है आनंद,
खुशी होती है मन के अंदर।
✍️Tr हंसराज हंस