देश मे असमानता की खाई को पाट रहा है मोबाइल इंटरनेट

टॉकिंग पॉइंट्स
– नरविजय यादव
दुनिया में अमीरों और गरीबों के बीच गहरी खाई है। शिक्षा और अशिक्षा के बीच भी भारी अंतर है। इसी तरह सूचनाओं और ज्ञान तक सबकी पहुंच नहीं हो पाती थी, लेकिन इंटरनेट के प्रसार और उपलब्धता ने इस तरह की खाई को कम करना शुरू कर दिया है। इंटरनेट के पहियों पर सवार सोशल मीडिया और इन दोनों का वाहक बनता स्मार्टफोन अब गरीबों के हाथों में भी पहुंचता जा रहा है। भारत में तो अब ‘रोटी, कपड़ा और मकान’ की जगह लोग ‘रोटी, कपड़ा और मोबाइल’ तक कहने लगे हैं। पहले कभी लग्जरी माना जाता था मोबाइल, लेकिन अब यह एक आवश्यकता बन गया है और ताकत भी। वायरल होने वाले ज्यादातर वीडियो अक्सर मजदूरों, छात्रों, राहगीरों या किसी भी सामान्य व्यक्ति के बनाये होते हैं। जो जहां है, वहीं से वीडियो बनाकर अपलोड कर देता है, जिसे बाद में नेशनल टीवी और बड़े मीडिया हाउस तक इस्तेमाल करते हैं। एक सामान्य व्यक्ति को यह शक्ति मोबाइल, इंटरनेट और सोशल मीडिया के गठजोड़ से ही प्राप्त हुई है।
आर्थिक असमानता को कम करने और आम नागरिकों के सशक्तिकरण में इंटरनेट भले ही अपनी भूमिका निभा रहा है, लेकिन गरीबी और अमीरी की खाई चिंता की बात तो है ही, क्योंकि दुनिया में यह गैप निरंतर बढ़ता जा रहा है। कोरोना काल की बात करें तो चालू वित्त वर्ष में विश्व के दस फीसदी लोगों के पास 76 प्रतिशत पूंजी और 52 प्रतिशत आय रही। यह आंकड़ा 2022 की वैश्विक असमानता रिपोर्ट के हैं। इसके अनुसार, इस साल दुनिया की 50 प्रतिशत आबादी के हिस्से में सिर्फ दो प्रतिशत पूंजी और आठ प्रतिशत आय रही। यह रिपोर्ट यह भी खुलासा करती है कि जलवायु परिवर्तन में सबसे ज्यादा दोषी अधिक आय वाला तबका ही है। अधिक आय वाले 10 प्रतिशत लोग 50 प्रतिशत कार्बन उत्सर्जन करते हैं, जबकि कम आय वाला 50 प्रतिशत तबका महज 12 प्रतिशत कार्बन उत्सर्जित करता है। अर्थात, अधिक आमदनी वाले लोग ऐश ज्यादा करते हैं और पृथ्वी को नुकसान पहुंचाने के मामले में भी ये ही दोषी हैं।
वैश्विक असमानता रिपोर्ट बताती है कि भारत में एक ओर गरीबों की संख्या बढ़ रही है, तो दूसरी ओर धनी वर्ग और अधिक साधन संपन्न होता जा रहा है। देश में वयस्कों की सालाना औसत राष्ट्रीय आय 2.05 लाख रुपये है। देश के 50 प्रतिशत लोग बमुश्किल 53,000 रुपये सालाना कमा पाते हैं। टॉप के 10 प्रतिशत लोग इनसे 20 गुना ज्यादा, यानी करीब 12 लाख रुपये हर साल कमाते हैं। इन 10 प्रतिशत अमीरों की आय देश की कुल आय की 57 प्रतिशत है। रिपोर्ट के अनुसार, अंग्रेजों के शासन काल में, भारत में अमीरी गरीबी की खाई अधिक थी। तब 10 फीसदी लोगों के पास देश की कुल आय का 50 फीसदी हिस्सा होता था। सबको साथ लेकर चलने में वित्त और तकनीक का गठजोड़ भी उपयोगी साबित हो रहा है। फिनटैक यानी फाइनेंस और टैक्नोलॉजी के मेल से देश में एक नये किस्म की क्रांति आकार ले रही है। फिनटैक की वजह से गरीब-अमीर हर किसी की जिंदगी में सुखद बदलाव देखने को मिल रहा है। धन का लेनदेन त्वरित होने लगा है। बिचौलिए खत्म हो रहे हैं और आम आदमी भी फिनटैक की सुविधाओं का लाभ ले पा रहा है।
नरविजय यादव वरिष्ठ पत्रकार व कॉलमिस्ट हैं।
ईमेल: narvijayindia@gmail.com