हाथी वोट नहीं देते इसलिए परेशान हाल हैं..
क्रोधित हाथी का वीडियो देखकर मुझे देहरादून से ऋषिकेश जाने वाली सड़क याद आ गयी, जहां अनेक स्थानों पर बोर्ड लगे हुए हैं- सावधान, धीमी गति से चलें। यह हाथियों के गुजरने का मार्ग है। वीडियो असम के धुबरी जिले का था, जहां तामारहट गांव में एक जंगली हाथी धान के खेतों में घुस आया था। उसने कनक राय नाम के एक 30 वर्षीय युवक को दौड़ा कर पटक दिया। घायल युवक का इलाज चल रहा है। असम में करीब 6000 जंगली हाथी हैं। वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड के अनुसार, राज्य में 2010 से 2019 के बीच हाथियों और मनुष्यों के बीच टकराव के कारण 249 हाथियों और 761 मनुष्यों की मृत्यु हो चुकी है। राज्य में 65 प्रतिशत से ज्यादा वनभूमि पर खेती होने लगी है या आबादी बस गयी है। जाहिर है कि हाथियों को रहने घूमने के लिए पर्याप्त जंगल नहीं बचे हैं। ऐसे में वे गांवों और खेतों की ओर निकल आते हैं, जिससे टकराव की स्थिति बन जाती है। देश के बाकी राज्यों में भी हालात ठीक नहीं हैं।उड़ीसा के वन एवं पर्यावरण मंत्री बिक्रम केशरी अरुख ने राज्य विधानसभा में जानकारी दी कि गत पांच वर्षों में विभिन्न कारणों से राज्य में 406 हाथियों की मौत हुई है। रेलवे लाइन पार करते समय ट्रेन की चपेट में आने से 14 हाथी मारे गए, वहीं अन्य दुर्घटनाओं में 162 हाथियों की जान चली गयी। करंट लगने से 54 और हाथियों की मौत हो गयी। विशेष रूप से, शहरीकरण के चलते हाथियों के नैसर्गिक निवास स्थलों पर निर्माण कार्य होने लगे हैं, जिससे मानव-हाथी संघर्ष की स्थितियां बनती हैं। राज्य सरकार हाथी संरक्षण में विफल रही है, इसीलिए उड़ीसा को भारत के हाथियों का कब्रिस्तान तक कहा जाने लगा है। मनुष्यों की मौत के लिए हमेशा हाथियों को दोष देना ठीक नहीं है। 1979 में, उड़ीसा में 2,044 हाथी थे, 2017 की जनगणना के अनुसार वहां अब हाथियों की संख्या 1,976 है। वे जहां रहते थे उन जंगलों को छोड़ने के लिए मजबूर होते गये। छोटे समूहों में बंट गये और कई अन्य जिलों में फैल गये हैं। देेेश में लगभग 27,300 जंगली हाथी हैं, जो एशियाई हाथियों की दुनिया भर की आबादी का 50 प्रतिशत से अधिक है। पहले अवैध शिकार से जंगली हाथियों को खतरा था, अब बिजली के तारों से हाथियों की मौत हो रही है। केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय के अनुसार, 2014 से 2020 के बीच 474 हाथियों को बिजली का करंट लगा था। करंट लगने से असम में 90, उड़ीसा में 73, तमिलनाडु में 68, कर्नाटक में 65 और केरल में 24 हाथी मारे गये। उत्तरी पश्चिम बंगाल में मानव-हाथी संघर्ष और रेलवे दुर्घटनाओं के कारण हाथियों की मृत्यु हो रही है। हाथी वोट बैंक नहीं हैं, इसीलिए राजनीतिक दलों को उनकी समस्याओं से वास्ता नहीं है। सरकारें समस्याएं खड़ी करती हैं, या सुलझाती नहीं हैं, जिससे मनुष्यों और हाथियों के बीच संघर्ष के हालात पैदा होते हैं। हाथियों को हर रोज भारी मात्रा में हरे चारे की जरूरत होती है। जंगल न बचने के कारण जब वे खेतों की ओर रुख करते हैं तो मनुष्यों के साथ उनका संघर्ष हो जाता है। हाईवे, एक्सप्रेसवे, रेल मार्ग और नहरें बनाते समय हाथियों के आवागमन का रास्ता छोड़ना आवश्यक है, जिस पर ध्यान नहीं दिया जाता है।
नरविजय यादव वरिष्ठ पत्रकार व कॉलमिस्ट हैं।
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