साहित्य
गुरुर ताकत का भी इस कदर ना रहे दर्द की फिर किसी के खबर ना रहे…

( सोनिया सिंह)
गुरुर ताकत का भी इस कदर ना रहे
दर्द की फिर किसी के खबर ना रहे…
साए वहम के आंखों में इस कदर
खुदा बनने चले.. जो इंसान न रहे…
चंद सांसे भी देने की औकात नहीं “औ”
सौदागिरी वो जिंदगियों की कर रहे..
हुक्मरानों की अपनी साख बड़ी है
बेकसूर बेवजह उसकी भेंट चढ़ रहे…
मासूमों की आंखों में खौफ का मंजर
भूखे प्यासे नादान दरबदर भटक रहे…
इंसान का इंसानों से खौफ इस कदर
कीड़े मकौड़े से सब जमीदोज हो रहे…
हारे जीते कोई मगर अंजाम यही है
उजड़ी हुई कोखें बच्चे अनाथ हो रहे..
ना कोई हो हाकिम ना कोई गुलाम
क्यों नहीं ऐसी कोई मिसाल रख रहे…
हम भी फूले फलें रहो तुम भी आबाद
ये बाग-ए-गुलिस्ता महकता रहे..
मेरे मालिक इंसानों को अकल इतनी दे
जीने दे औरों को भी खुद भी जिंदा रहे…