राजनीति

कॉमन सिविल कोड से ज़्यादा कॉमन क्रिमिनल कोड ज़रूरी, ताकि सत्ता से जुड़े अपराधी भी जेल जा सकें:शाहनवाज़

लखनऊ से अल्पसंख्यक कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष शाहनवाज़ आलम ने Media को जारी बयान में कहा कि प्रदेश और देश को इस समय कॉमन सिविल कोड से ज़्यादा कॉमन क्रिमिनल कोड कि ज़रूरत है। ताकि सरकार चाह कर भी अपनी पार्टी से जुड़े अपराधियों को बचा न सके और लोगों में संदेश जाए कि क़ानून कि नज़र में सभी अपराधी समान हैं।

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि अगर कॉमन क्रिमिनल कोड होता तो मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ अपने ऊपर लगे गंभीर धाराओं के मुकदमों में खुद को ही निर्दोष बता कर अपने मुकदमे खत्म नहीं कर पाते। इन धाराओं के अन्य आरोपियों की तरह वो भी जेल में सड़ रहे होते। इसी तरह कॉमन सिविल कोड की ज़रूरत बताने वाले उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या भी जिन पर दुर्गा पूजा की फर्जी रसीद छपवा कर चंदा इकट्ठा करने के आरोप में धारा 420, 467 और 468 के तहत मुकदमे दर्ज हैं, जेल में होते। जिस तरह जालसाजी के अन्य आरोपी विभिन्न जेल में बन्द हैं। या फ़िर फ़र्ज़ी मार्कशीट लगा कर चुनाव लड़ने और पेट्रोल पंप लेने वाले मुकदमे में ही जेल जा चुके होते जो ख़ुद भाजपा के ही वरिष्ठ नेता दिवाकर त्रिपाठी ने इलाहाबाद में दर्ज कराया है।

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि तकनीकी तौर पर राज्य सरकार कॉमन सिविल कोड नहीं बना सकती। इसीलिये किसी भी राज्य में यह नहीं है। जिस गोवा का उदाहरण मीडिया में सरकार के लोग दे रहे हैं उसे पूर्तगाल सिविल कोड कहते हैं और वो 1867 से यानी 1961 में गोवा के भारत का हिस्सा बनने से पहले से लागू है।
मोदी सरकार अगर कॉमन सिविल कोड लाना ही चाहती है तो उसके प्रावधानों पर पहले सार्ववजनिक चर्चा कराये ताकि लोग जान सकें कि इसमें क्या है। लेकिन सरकार इस पर चर्चा नहीं कराना चाहती क्योंकि इसका सबसे ज़्यादा विरोध खुद बहुसंख्यक समुदाय ही करेगा। क्योंकि सबसे ज़्यादा सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता उसी समुदाय में है।

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