साहित्य
वो अकसर कहती है!! ….

वो अकसर कहती है
ख़्वाब थोड़े ऊँचे रखना
पाँव जमीं पर धरना
लेकिन उड़ना आसमानों में।
टूटकर मोहब्बत करना
दुनिया भर की किताबों से,
तुम मिटा देना वो अल्फ़ाज
जो सदियों पहले लिखे थे
हमारे नाम…
‘काला अक्षर भैस बराबर’
मुट्ठी भर इंसानों ने।
वो अकसर कहती है
तुम कद्र करना किताबों की
बड़ा जादूई तिलिस्म है इनके भीतर
तुम उन्हें पढ़ना, समझना
और पढ़ाना औरों को…
जगमगाना अंधेरी रातों में
ताकि मिट सके वो इलजाम
जो बरसों पहले लगा था हमारी मेहनत पे
कि ‘हम आखिर करतीं क्या हैं?
घर के चंद कामों के अलावा’!!
वो अकसर कहती है
तू काबिल बन पढ़ लिख कर
तोड़ देना रूढ़ियों की बेड़ियों को
वो कहती है..
कुबेर का खजाना है तेरी मुठ्ठी में
बंध जाए तो दौलत है
खुल जाए तो रौनक है
वो जो मेरी माँ है..
अकसर मुझसे कहती है
पाँव जमीं पर धरना
लेकिन उड़ना आसमानों में!!
Dr. Naaz parween